परमभक्त संत नामदेव जी महाराज का जन्म दक्षिण हैदराबाद में हुआ। श्री नामदेव जी महाराज के माता पिता भी निरंतर भगवान के चरणो में उनके नाम का जप किया करते थे | और श्री नामदेव जी के घर का माहौल इतना पतित-पावन था जिसका बहुत ही सुंदर सा असर उन पर भी हुआ श्री नामदेव जी भी इस मौहाल में विट्ठलमय हो गए |
एक बार की बालक संत नामदेव जी ने बड़े ही प्यार दुलार और कोमल हृदय से भगवान विट्ठल की पूजा करके उन्हे एक कटोरे में भगवान को दूध का भोग लगाया | और कुछ समय पश्चात उन्होंने आंखे खोल कर देखा तो उन्होंने पाया की भगवान विट्ठल ने दूध तो पिया ही नहीं | तो बालक नामदेव जी को लगा कि शायद उन्ही से कोई त्रुटि हो गई है इसलिए भगवान विट्ठल ने उनके दिए हुए दूध ग्रहण न किया | तो बालक श्री नामदेव जी बड़े ही कोमल मन से रो-रो कर उनसे प्रार्थना करने लगे और बोले – विठोबा!
सुन ले अगर आज आपने मेरा दिया हुआ दूध ना पिया तो मैं भी जिंदगी भर दूध ना पियूँगा | बालक श्री नामदेव जी के वो मूर्ति नहीं, बल्कि साक्षात भगवान विट्ठल पांडुरंग थे | जो रूठने के कारण दूध न पी रहे थे | लेकिन कहते है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी और जब बात भक्त के अपार भावना की हो तो प्रभु क्षण भर देर न लगाते है | बालक श्री नामदेव जी की इस भाव को देख कर उनके इस प्रतिज्ञा को सुनकर प्रभु रीझ गए और भगवान विट्ठल प्रकट होकर दूध पिया | उस दिन के बाद से ये परंपरा हो गई भगवान रोज आते थे अपने नन्हे से भक्त के हाथों से दूध पीने |
परमभक्त श्री नामदेव जी महाराज
संत बताते है – कि एक बार संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज और श्री नामदेवजी साथ भगवदचर्चा करते हुए यात्रा पर निकलते है । रास्ते में दोनों को बहुत तेज प्यास लगी, वही पास में एक सुख कुआं था तो संत ज्ञानेश्वर ने अपने योग विदया से कुएं के भीतर जमीन के अंदर जाकर पानी पिया और श्री नामदेव महाराज के लिए थोड़ा सा जल उनके लिए लेकर ऊपर आए | लेकिन श्री नामदेव महाराज ने उस जल को ग्रहण न किया | और बड़े ही मार्मिक शब्दों में कहाँ क्या मेरे विट्ठल को मेरी चिंता नहीं है ? श्री नामदेव महाराज के मुख से ये बात निकली ही थी कि देखते ही देखते उसी क्षण कुआं जल से भर गया, फिर नामदेव जी ने जल ग्रहण किया |
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हर कण में देखते थे अपने आराध्य भगवान विट्ठल को
ऐसे ही एक कथा में गुरुदेव भगवन बताते है कि एक बार श्री नामदेव महाराज की कुटिया में आग लग गई थी |जोहि कुटिया में आग लगी श्री नामदेव महाराज प्रेम में मस्त एकदम उन्होंने कुटिया के बाहर पड़ी समस्त बिन जली हुई वस्तुओ को उठा उठाकर आग में फेकने लगे और जोर जोर से कहने लगे – मालिक! आज तो आप लाल लाल लपटों का रूप बनाए मेरी कुटिया में पधारे हो,लेकिन प्रभु बाकी वस्तुओ ने ऐसा क्या अपराध किया है, जो आप इन्हे नहीं स्वीकार कर रहे हो, इन्हे भी स्वीकार करे प्रभु! ऐसे ही बोलते बोलते कुछ क्षण में आग बुझ गई | और फिर उनकी चिंता करने वाले भगवान विट्ठल स्वयं मजदूर बनकर आए और उन्होंने अपने हाथों से अपने परम भक्त की कुटिया बनाकर छान छा दी | तब से पांडुरंग नामदेव जी की छान छा देने वाले प्रसिद्ध हुए।
ऐसे ही एक बार श्री नामदेव जी किसी जंगल में पेड़ के नीचे रोटी बना रहे थे | इतने में एक कुत्ता आया और श्री नामदेव जी द्वारा बनाई गई रोटिया उठाकर भाग गया | तो श्री नामदेव जी घी का कटोरा लेकर उस कुत्ते के पीछे पीछे भागने लगे और आवाज लगाकर बोल रहे थे भगवन! रोटियां रूखी है, रुकिए मैंने घी भी नहीं लगाई है, मुझे घी लगाने दीजिए, फिर आप भीग लगाईएगा | फिर भगवान ने कुत्ते के स्वरूप को त्याग कर शंख-चक्र-गदा-पदम् धारण किये, और अपने प्रिय भक्त को अपने दिव्य चतुर्भुज रूप में भगवान ने दर्शन दिया |
श्री नामदेव जी की भक्ति बढ़ी ही सरल लेकिन बहुत ही उच्य थी | जिसका छोटा सा अंश आपने सभी ऊपर के घटनाओ से ग्रहण किया | श्री नामदेव जी ने अनेकों लोगों को भक्तिमय मार्ग में लगाकर वि.सं.- 1407 में 80 वर्ष की अवस्था में अपने नश्वर शरीर का त्याग कर परमधाम परमात्मा में विलीन हो गए |
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