एक बार की बालक श्री नामदेव जी ने बड़े ही प्यार दुलार और कोमल हृदय से भगवान विट्ठल की पूजा करके उन्हे एक कटोरे में भगवान को दूध का भोग लगाया |  

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और कुछ समय पश्चात उन्होंने आंखे खोल कर देखा तो उन्होंने पाया की भगवान विट्ठल ने दूध तो पिया ही नहीं |  

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तो बालक नामदेव जी को लगा कि शायद उन्ही से कोई त्रुटि हो गई है इसलिए भगवान विट्ठल ने उनके दिए हुए दूध ग्रहण न किया | 

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तो बालक श्री नामदेव जी बड़े ही कोमल मन से रो-रो कर उनसे प्रार्थना करने लगे और बोले – विठोबा!

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सुन ले अगर आज आपने मेरा दिया हुआ दूध ना पिया तो मैं भी जिंदगी भर दूध ना पियूँगा |  बालक श्री नामदेव जी के वो मूर्ति नहीं 

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बल्कि साक्षात भगवान विट्ठल पांडुरंग थे | जो रूठने के कारण दूध न पी रहे थे |  लेकिन कहते है जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी  और  

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जब बात भक्त के अपार भावना की हो तो प्रभु क्षण भर देर न लगाते है | बालक श्री नामदेव जी की इस भाव को देख कर उनके इस प्रतिज्ञा को सुनकर प्रभु रीझ गए और  

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भगवान विट्ठल प्रकट होकर दूध पिया | उस दिन के बाद से ये परंपरा हो गई भगवान रोज आते थे अपने नन्हे से भक्त के हाथों से दूध पीने |

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