हम सभी ने या तो सुना है या तो देखा है या तो पढ़ा है कि संसार में कहीं भी भगवान कृष्ण का मंदिर है तो वहाँ खिचड़ी का भोग जरूर से लगता है | यहाँ तक कि उड़ीसा के पुरी में स्थित प्रभु जगन्नाथ जी के मंदिर में प्रतिदिन प्रभु जगन्नाथ जी को खिचड़ी का भोग जरूर ही लगाया जाता है | इसके पीछे भी एक अनोखी, बहुत सुंदर, ममतामयी कहानी है | कथा है एक बच्ची के प्रेम की, बच्ची के अति दुर्लभ भाव की |
पौराणिक मान्यताओ के अनुसार भगवान श्री कृष्ण की एक परम उपासक हुई जिनका नाम था कर्मा बाई | जिनका निवास स्थान भी प्रभु के धाम जगन्नाथ पुरी में ही था | कर्मा बाई सिर्फ नाम नहीं है एक भाव है जो आपको इस कथा के माध्यम से पता चलेगा और आखिर क्यों जगन्नाथ जी में प्रतिदिन खिचड़ी का भोग लगता है ? आईए जानते है इस कथा को और विस्तार में –
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आखिर कौन थी कर्मा बाई ?
कर्मा बाई जी जिनका प्रेम अपने लल्ला श्री कृष्ण के लिए अपार था | कर्मा बाई का जन्म 1615 में हुआ था । कर्मा बाई को मारवाड़ की मीरा भी कहा जाता है | कर्मा बाई बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण की भक्त थी बचपन से ही उनकी सेवा करती थी लाड़ दुलार लगाती थी | कर्मा बाई के पिता का नाम जीवनराम डूडी था | भगवान की बहुत मन्नतें मांगने के बाद इसका जन्म हुआ था। नाम रखा- करमा | कर्मा बाई जब 13 साल की थी तो उनके माता पिता पुष्कर स्नान के लिए जाना चाहते थे, वे चाहते थे कि कर्मा बाई भी उनके साथ चले लेकिन घर में विराजमान लड्डूगोपाल को भोग कैसे लगेगा इसलिए, इसलिए कर्मा बाई के माता पिता अकेले गए और कर्मा बाई को लल्ला की सेवा के लिए घर पर ही छोड़ दिया |
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र्मा बाई ने भगवान के लिए बनाया खिचड़ी
तो कर्मा बाई ने अपने लड्डू गोपाल के भोग के लिए एकदम मस्त, स्वादिष्ट खिचड़ी बनाया और उसमे ऊपर से ढेर सारा घी, गुड रखा और जाके मंदिर में भगवान के आगे रख दिया खाने के लिए | क्योंकि कर्मा बाई को तो यही पता था कि रोज उसके माता पिता भोग लगाते है और संवारा उसमे जीमता है मतलब भोग ग्रहण करते है | अब कर्मा कुछ देर के बाद जब आकर देखा तो खिचड़ी वैसी की वैसी रखी थी | तो उसने सोचा लगता है मेरे खिचड़ी में घी या गुड की कमी है इसलिए उसने उसमे और घी और गुड डाल दिया | और फिर से भगवान के आगे रखकर काम करने में व्यस्त हो गई | थोड़ी देर बाद कर्मा ने आकार फिर देखा लेकिन अभी भी खिचड़ी वैसी की वैसी रखी थी | तो वो जाके बैठ गई ठाकुर जी के सामने और बोली क्या है क्यू नहीं कहा रहे हो माता-पिता खिलाते तो बड़े प्यार से कहा लेते थे आज भी खाओ | फिर कर्मा बाई ने कहाँ माँ और पिता जी पुष्कर गए है कुछ दिन में वापस आएंगे तब तक तो मेरे हाथ का ही खाना पड़ेगा और जब तक आप नहीं खाएंगे तब तक में भी नहीं खाऊँगी | लेकिन फिर भी भगवान नहीं आए |
कर्मा बाई का गुस्सा और शिकायत भगवान से
अब कर्मा बाई को गुस्सा आ गया और वो अपने कन्हैया से शिकायत करने लगी | माँ-बापू जब जीमते थे तो बड़े प्यार से भोग लगा लेते थे और आज इतनी देर लगा रहे हो | खुद तो खाना नहीं है और मुझे भी भूखा रख रखा है | ऐसे ऐसे कर्मा बाई अपने आराध्य से बहुत सी शिकायते की अनत: भगवान अपने इस छोटे से भक्त के भाव से रीझ ही गए | अपने भक्त की करुण पुकार सुनकर खुद कन्हैया दौड़े दौड़े आए और कर्मा बाई से बोले पर्दा किया ही नहीं कैसे भोग लगाऊ तो कर्मा बाई ने अपने ही अंचल से पर्दा किया और फिर भगवान कृष्ण ने अपने भक्त के खिचड़ी का भोग लगाया |
और उस दिन के बाद से ये सिलसिला निरंतर और रोज का हो गया | रोज कर्मा बाई अपने मालिक भगवान श्री कृष्ण के लिए खिचड़ी बनाती थी और भगवान उसके उस प्रेम रूपी खिचड़ी का भोग लगाते थे | भक्त और भगवान का रिश्ता ऐसे ही अटूट होता है बस भाव सच्चा और पक्का होना चाहिए | भगवान हमेशा अपने भक्तों के लिए आए थे, आए है और आते रहेंगे | अब कर्मा के माता पिता भी तीर्थ यात्रा से वापस आ गए | उनकी नजर जैसे ही गुड के मटके पर गई तो वो खाली था बल्कि जाते समय तो वो भरा हुआ था | तो उन्होंने अपनी पुत्री कर्मा बाई से पूछा बेटी सारे गुड कहाँ गए ?
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भगवान कृष्ण ने की कर्मा बाई के सत्य की रक्षा
तो कर्मा ने बताया कि रोज भगवान श्री कृष्ण उसके पास आते है और खिचड़ी का भोग लगाते है तो कहीं मिठास कम न हो जाए मैंने ज्यादा ज्यादा गुड डाल दिया इसलिए गुड खत्म हो गए | ये सब सुनकर माता-पिता चकित रह गए | कर्मा ने उन्हे पहले दिन हुए समस्या के बारे में भी वितान्त से बताया | तो उसके पिता ने सोचा ये कैसे हो सकता है ? कहीं उनकी बेटी बावली तो नहीं हो गई है ? उन्होंने खुद को दिलासा देने के कहा कहाँ कि हो सकता है करमा ने ही सारे गुड कहा लिए हो तो इसपर कर्मा ने कहाँ, अगर आपको यकीन नहीं है तो कल स्वयं देख लीजिएगा में खुद अपने श्री कृष्ण को भोग लगाऊँगी |
दूसरे दिन कर्मा ने खिचड़ी बनाया और अच्छे से उसपर घी, गुड डाला और पहुँच गई अपने भगवान कृष्ण के पास उन्हे भोग लगाने भोग रखा और हाथ जोड़ उनसे कहा प्रभु मेरे सत्य की रक्षा करना और फिर पर्दा कर दिया जैसे ही पर्दा किया भगवान श्री कृष्ण खिचड़ी का भोग लगाने आ गए | ये सब देख कर कर्मा के माता पिता चकित रह गए और इस रूप में उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के साक्षात दर्शन किये |
इसके बाद से ही कर्मा बाई सम्पूर्ण विश्व में विख्यात हो गई | और अपने वृद्ध समय में कर्मा बाई भगवान जगन्नाथ की नगरी चली गई और वही अपने जीवन का समापन किया |
करमा बाई की भक्ति का प्रसिद्ध भजन
थाळी भरके ल्याई रे खीचड़ो, ऊपर घी की बाटकी।
जीमो म्हारा श्याम धणी, जीमावै बेटी जाट की।।
बाबो म्हारो गांव गयो है, कुण जाणै कद आवैलो।
बाबा कै भरोसै सांवरा, भूखो ही रह ज्यावैलो।।
आज जीमावूं तन्नैं खीचड़ो, काल राबड़ी छाछ की।
जीमो म्हारा
बार-बार मंदिर नै जड़ती, बार-बार पट खोलती।
जीमै कयां कोनी सांवरा, करड़ी-करड़ी बोलती।।
तूं जीमै जद मैं जीमूं, मानूं न कोई लाट की।
जीमो म्हारा.
पड़दो भूल गई रे सांवरिया, पड़दो फेर लगायो जी।
धाबळिया कै ओलै, श्याम खीचड़ो खायो जी।।
भोळा भगतां सूं सांवरा, अतरी कांई आंट जी।
जीमो म्हारा
भक्त हो तो करमा जैसी, सांवरियो घर आयो जी।
भाई लोहाकर, हरख-हरख जस गायो जी।।
सांचो प्रेम प्रभु में हो तो, मुरती बोलै काठ की।
जीमो म्हारा.
जब एक भक्त राजा के लिए खुद ठाकुर जी को करना पड़ा युद्ध
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