जनाबाई की सहायता करते थे भगवान
एक समय था जब भगवान खुद आते थे अपने भक्त जनाबाई की सेवा करने लेकिन आज कल न बहुत गंदा वाला ट्रेंड चल रहा है, लोग कहीं भी धाम में जाते है तो बस रील बनाना, सेल फोन यूज करना शुरू हो जाते है | इसमे कोई गलत बात नही है लेकिन जब तक मंदिर प्रांगड़ में है तब तक तो न ही करे | मंदिर में बस जिसके लिए आप आए है उसके साथ समय बिताइए, उसे निहारिए, उससे बाते करे | क्योंकि वहाँ के प्रशासन द्वारा शायद आपको उस मालिक के सामने 20 sec, या ज्यादा से ज्यादा 1min ही मिलने वाला है उसे ना गवाये | क्योंकि वहाँ जो बैठा है न वो हमारे भाव का भूखा है, न की हमारे प्रसाद का, न की हमारे द्वारा दिए गए चंद दान का |
उसके प्रेम में कोई छोटा बड़ा नहीं है सभी सामान है कोई जाति-वाति, हीन–दीन, धन-ऐश्वर्य, स्त्री- पुरुष, रंक-राजा सब एक सामान है | और आज की कथा भी है एक बहुत ही सुंदर भाव, ईश्वर के प्रति प्रेम का एक प्रबल उदाहरण है | जिनकी भक्ति भाव ऐसे थे कि खुद भगवान उनकी सेवा करने के लिए आते थे | उनके चक्की चलाते थे, कपड़े धोते थे | आईए जानते है उन परम भक्त के बारे में –
महराष्ट्र के एक प्रमुख संत थे जिनका नाम था भक्त नामदेव जी (Sant Naamdev ) | इनके बारे में मैंने एक कथा में वर्णन किया है, आप जाके उसे पढ़ सकते है | संत नामदेव भी काफी प्रबल और सच्चे भक्त थे विट्ठल भगवान के | तो नामदेव जी के घर में एक नौकरानी कार्य करती थी, जिसका नाम था जनाबाई ( Janabai) जो संत नामदेव जी के घर का कपड़े, बर्तन धोने का कार्य व घर में झाड़ू करने का कार्य करती थी | संत नामदेव जी प्रबल संत थे तो उनके घर में अक्सर निरंतर भगवान विट्ठल की बात और भजन भाव हुआ करते थे | और इसी सत्संगति और भगवद् चर्चा के प्रभाव से उन काम करने वाली नौकरानी के मन में भी भगवान के प्रति भक्ति प्रेम का उद्भव हुआ | और वो भी भगवान विट्ठल का नित स्मरण करने लगी |
एक दिन एकादशी के रात में संत नामदेव जी के घर पर जागरण था तो जनाबाई भी उस जागरणमें रात भर भगवान विट्ठल के भजनों पर बहुत झूमी और इसी कारण से जब उनकी आंखे लगी तो सुबह उन्हे उठने में देरी हो गई | और जैसे ही उनकी आखे खुली उन्हे अपने समस्त कार्य में देरी का आभास हुआ वो भाग कर संत नामदेव जी के घर पहुंची और जल्दी जल्दी अपने कार्यों को पूर्ण करने में लग गई | घर के कार्य पूर्ण होने के बाद जनाबाई ( Janabai ) ने धोने के लिए कपड़े उठाए और चंद्रभागा नदी किनारे पहुँच गई | जैसे ही जनाबाई (Janabai) कपड़े धोने जा ही रही थी कि उन्हे कुछ याद आया तो वो कपड़ों को वैसे ही छोड़ कर घर की तरफ भागी | इसी भागम भाग में एक वृद्ध ने जनाबाई (Janabai) का हाथ पकड़ा और इस हड़बड़ी बड़ी का कारण पूछा तो जनाबाई (Janabai) ने उसे देरी होने का कारण बताया तो उस वृद्ध ने जनाबाई (Janabai) से कहाँ बेटी तू घर जाके घर का कार्य कर ले | मैं यहाँ तेरे कपड़े धो दूँगी | उस वृद्ध के प्रेमयुक्त, स्नेहिल वाणी सुनकर जनाबाई (Janabai) मंत्रमुग्ध हो गई और झूमते झूमते घर चली गई |
घर से वापस आकार जनाबाई (Janabai) ने देखा कि सारे कपड़े धूल गए है और यह देख वह अत्यंत खुश हुई | इसके पश्चात उस वृद्ध ने जनाबाई (Janabai) को कपड़े उठा कर दिए तो जनाबाई (Janabai) जाने लगी | तो इसी बीच जनाबाई (Janabai) को उस वृद्ध का ख्याल पुन: आया तो उसने पीछे मुड़कर उस वृद्ध का नाम जानने का सोचा लेकिन जैसे ही जनाबाई (Janabai) पीछे मुड़ी उसने देखा वहाँ कोई नहीं था वो वृद्ध को इधर उधर ढूंढने लगी | लेकिन वो कहीं ना मिली | फिर वह यह सोचते सोचते नामदेव जी के पास आई और उन्हे उसके साथ घटित घटना के बारे में वितान्त में बताया | जिसे सुनकर श्री नामदेव जी मुस्कराए क्योंकि वो सब समझ गए और बोले जनाबाई (Janabai) तू धन्य है जिसके कपड़े धोने के लिए खुद परम पिता परमेश्वर भगवान विट्ठल वृद्ध के रूप में आए | लेकिन ये सुनकर जनाबाई (Janabai) जोर जोर से रोने लगी और भगवान को कष्ट देने के लिए खुद को ही कोसने लगी | वहाँ बैठा समस्त संत समाज ये बाते सुनकर आनंद से झूम उठा |
संत महाराज बताते है कि इस प्रेमरूपी कृपा के बाद जनाबाई (Janabai) का प्रेम भाव अपने मालिक अपने भगवान के प्रति अत्यंत बढ़ गया | अब तो भगवान भी समय समय पर जनाबाई (Janabai) को दर्शन देकर कितार्थ करने लगे | जनाबाई (Janabai) अपने विट्ठल के प्रेम में इस तरह डूबी की वो अब काम करते समय भी अभंग गाया करती थी | यू ही भजन भाव में जनाबाई (Janabai) ऐसे डूबी की उसे कुछ सुध ही न रहता था | जब जनाबाई (Janabai) भजन भाव के चक्कर में कार्य न कर पाती थी तो खुद भगवान जनाबाई (Janabai) के बदले में चक्की से आटा पीसते तो कभी कपड़े धोते तो कभी झाड़ू पोंछा करते थे |
नामदेवजी (Sant namdevji) के साथ जनाबाई का कोई परम पारलौकिक सम्बन्ध था। इसलिए संवत 1407 में जब नामदेवजी ने समाधि ग्रहण की तो, उसी दिन कीर्तन करती, नाम रटती भाव विभोर हुई जनाबाई भी विठ्ठल भगवान में विलीन हो गई |
जना बाई के भक्ति का चमत्कार
एक दिन भगवान विट्ठल के गले का अचानक से रत्न पदक नहीं खो गया या कहीं चोरी हो गया | तो जनाबाई (Janabai) ही थी जो सबसे ज्यादा मंदिर में आया जाया करती थी इसलिए मंदिर के पुजारियों ने जनाबाई (Janabai) पर ही संदेह किया | यहाँ तक कि जनाबाई (Janabai) के द्वारा अपने प्रभु की कसम खाने के बाद भी लोगों ने विश्वास न किया | तो लोगों ने जनाबाई (Janabai) को सूली पर चढ़ाने के लिए चंद्रभागा नदी के तट पर ले गए | जनाबाई (Janabai) विकल होकर विट्ठल विट्ठल पुकारे जा रही थी | तो जैसे ही जनाबाई (Janabai) को सूली पर लटकाने आगे बढ़े सूली अपने आप पिघलने लगी और कुछ देर में वो सूली पानी हो गई | ये देख वहाँ खड़े सभी लोगो को अपनी भूल का एहसास हुआ और सभी जनाबाई (Janabai) के सामने नतमस्तक हो गए |
उपलों ने भी विट्ठल विट्ठल की आवाज लगाई
ऐसा ही एक बार कबीरदास जी जनाबाई (Janabai) के दर्शन पाने की इच्छा से उनके गाँव पंढरपुर गए | तो वहाँ पहुँच कर उन्होंने देखा की विट्ठल की परम भक्त जिसके बारे में उन्होंने बहुत कुछ सुन रखा था जिसके भक्ति के चर्चे सुन सुन कर ही कबीरदास जी यहाँ उनके दर्शन के लिए आये हुए थे वो जनाबाई किसी दूसरी महिला से गोबर के उपलों के लिए लड़ाई कर रही थी | वो काफी संदेह में पड़ गए इसलिए पास जाकर जनाबाई से पुछा – जनाबाई क्या आपको अपने उपलों की कोई पहचान है ? तो जनाबाई (Janabai) ने उत्तर दिया – हाँ मेरे बनाये गए समस्त उपलों से आपको विट्ठल-विट्ठल की ध्वनि आएगी और जिसमे ध्वनि आये वो उपले मेरे होंगे | संत बताते है कि जब कबीर दास जी ने उन उपलों को अपने कानो के पास ले जाकर देखा तो उन्हें उन उपलों में विट्ठल-विट्ठल की ध्वनि सुनाई दिया | जिसे सुनकर कबीरदास जी भी जनाबाई की भक्ति के प्रेमी हो गए और उन्होंने झुककर जनाबाई को प्रणाम किया |
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