एक सांप के डसने से हुई थी राजा परीक्षित की मृत्यु | इसलिए राजा जनमेजय ने अपने पिता परीक्षित की मृत्यु का बदला लेने के लिए संसार के सभी सांपों को खत्म करने का लिया था संकल्प |

और इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए ऋत्विजों ने राजा को महायज्ञ करने का सुझाव दिया जिसमे ऋषियों द्वारा मंत्रों से संसार के समस्त सापो कि आहुति देंगे |

बातों को सुनकर राजा जन्मेजय अत्यंत खुश हुए और उन्हे ये एहसास हुआ कि निश्चित ही अब तक्षक (सांप जिसने परीक्षित को डसा था ) जल जाएगा |  

अब नाग यज्ञ की विधि से यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ | सभी ऋत्विज् अपने-अपने कामों में लग गये। सभी ऋत्विजों की आँखें धूएं से लाल-लाल हो रही थीं।  

उस यज्ञ के मन्त्रोच्चारण से समस्त सांप जाति भयभीत हो रखी थी | अब बेचारे नाग तड़पते, बिलखते, उछलते कूदते न चाहते हुए भी आग में गिरने लगे |  

सफेद, काले, नीले, पीले, बच्चे, बूढ़े सभी प्रकार के नाग बिलखते चिल्लाते हुए वर्षा की भाति आग के मुँह में गिरने लगे। और सभी कुंड में आहुति बन रहे थे | 

नागों के चिल्लाहट से समस्त भू-मण्डल डोल गया | और जब यह समाचार तक्षक नाग ने सुना तो वह डर कर भागने लगा |

लेकिन बीच में विद्वान् ब्राह्मण बालक आस्तीक से प्रसन्न होकर जन्मेजय ने उसे एक वरदान देने की इच्छा प्रकट की | 

तो उसने वरदान में यज्ञ की तुरंत समाप्ति का वर मांगा। इसी कारण तक्षक बच गया ज्यों उसके नाम के आह्वान के समय वह बस अग्नि में गिरने ही जा रहा था