ताज बेगम: मलेच्छ खानदान से वृंदावन तक की भक्ति की अद्भुत कथा

ताज बेगम: मलेच्छ खानदान से वृंदावन तक की भक्ति की अद्भुत कथा


परिचय

धार्मिक और आध्यात्मिक कथाओं में भगवान की भक्ति की कहानियां हमें यह सिखाती हैं कि सच्चे मन से भगवान का स्मरण करने वाला व्यक्ति जाति, धर्म और समाज की सीमाओं से ऊपर उठ सकता है। ऐसी ही एक प्रेरणादायक कथा है ताज बेगम की, जिन्होंने मलेच्छ खानदान में जन्म लेकर भी अपने भक्ति के बल पर भगवान श्रीकृष्ण का साक्षात्कार किया। उनकी जीवन यात्रा यह प्रमाणित करती है कि भगवान के द्वार पर सब समान हैं।

ताज बेगम ki Katha


ताज बेगम का प्रारंभिक जीवन

ताज बेगम का जन्म एक मलेच्छ खानदान में हुआ। वे अकबर की पत्नी थीं और एक विलासितापूर्ण जीवन जी रही थीं। धर्म और भक्ति से उनका कोई सीधा नाता नहीं था।

उनके जीवन में परिवर्तन का कारण बनीं बीरबल की बेटी। बीरबल की बेटी स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त थीं। वह रोज ताज बेगम को श्रीकृष्ण के रूप, स्वरूप और महिमा का वर्णन सुनातीं। धीरे-धीरे ताज बेगम के हृदय में भी भक्ति का अंकुर फूटने लगा।


गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से मिलन

ताज बेगम ने बीरबल की बेटी के साथ मिलकर श्रीनाथजी के सेवक गोस्वामी विट्ठलनाथ जी से मिलने का निश्चय किया। विट्ठलनाथ जी से मुलाकात ने ताज बेगम के जीवन को बदल दिया। उनके प्रवचनों ने ताज बेगम के मन में वृंदावन जाकर भगवान का भजन करने की इच्छा जगा दी।

ताज बेगम ने गोस्वामी जी से अपनी व्यथा साझा की:
“मैं एक मलेच्छ खानदान की कन्या हूं। मुझे कौन स्वीकार करेगा?”

विट्ठलनाथ जी ने उन्हें सांत्वना दी और एक ताबीज दिया। उन्होंने कहा:
“इस ताबीज को पहन लो, तुम्हारा जीवन मंगलमय होगा।”

 

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अकबर का संशय और विट्ठलनाथ जी का प्रभाव

ताज बेगम की भक्ति को देखकर अकबर की अन्य रानियों ने उन्हें भड़काया। उन्होंने कहा कि यह ताबीज जादू-टोना है। अकबर ने ताबीज को खोलने का आदेश दिया।

जब ताबीज खोला गया, तो उसमें एक पर्ची निकली। उस पर लिखा था:
“टोना-टोटका सब छोड़ो, जो पति कहे वही करो।”

यह पढ़कर अकबर बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने स्वयं विट्ठलनाथ जी से मिलने का निर्णय लिया। विट्ठलनाथ जी की आभा और उनके प्रवचनों ने अकबर को भी प्रभावित किया।

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वृंदावन की ओर ताज बेगम का रुख

अकबर से अनुमति लेकर ताज बेगम वृंदावन गईं। वे प्रतिदिन गोविंद देव जी के दर्शन करने जातीं। लेकिन मंदिर के भीतर प्रवेश की अनुमति नहीं थी।

एक दिन ताज बेगम ने ठाकुर जी से प्रार्थना की:
“मैं मलेच्छ खानदान में जन्मी हूं। आपके मंदिर में प्रवेश नहीं कर सकती। लेकिन आप तो नंद नंदन हैं। यदि मेरी भक्ति सच्ची है, तो कृपया मुझे दर्शन दें।”

ताज बेगम ने अन्न-जल का त्याग कर व्रत किया। तीन रातों तक उपवास करने के बाद, ठाकुर जी ने उनकी कुटिया में प्रकट होकर दर्शन दिए।

ताज बेगम ki Katha ताज बेगम ki Katha


ठाकुर जी का साक्षात्कार

ठाकुर जी ने ताज बेगम को त्रिभंग मुद्रा में दर्शन दिए। वे अपने हाथों में जल और भोजन की थाली लेकर आए। उन्होंने ताज बेगम से कहा:
“भक्त की भक्ति का सम्मान करना मेरा कर्तव्य है। यह भोजन ग्रहण करो।”

दर्शन के बाद ठाकुर जी अंतरध्यान हो गए, लेकिन जल और भोजन की थाली वहीं रह गई।

ताज बेगम ki Kathaताज बेगम ki Katha


सामाजिक विरोध और ताज बेगम की निष्ठा

ताज बेगम की भक्ति ने उन्हें समाज के ताने और अपमान का सामना करने पर मजबूर कर दिया। लोग उन्हें मलेच्छ खानदान का कलंक मानते थे।
लेकिन ताज बेगम ने सबकुछ सहते हुए एक सुंदर पद लिखा:

“सुनो दिलजानी, मेरे दिल की कहानी,
तेरे हाथ हुँ बिकानी, बदनाम भी सहूँगी।”

सुनो दिलजानी, मेरे दिल की कहानी,
तेरे हाथ बनी बदनाम भी सही।"


महावन में अंतिम दिन

ताज बेगम ने वृंदावन छोड़कर महावन की शरण ली। वहां एकांत में रहकर उन्होंने श्रीकृष्ण का स्मरण किया और अपने प्राण त्याग दिए। उनकी समाधि आज भी वृंदावन में स्थित है।


संगति का महत्व

इस कथा से यह स्पष्ट होता है कि संगति का हमारे जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बीरबल की बेटी की संगति ने ताज बेगम को एक विलासी जीवन से भक्ति के पथ पर ला खड़ा किया।


कथा से मिलने वाली शिक्षा

  1. संगति का प्रभाव:
    सही संगति व्यक्ति के जीवन को सकारात्मक दिशा में बदल सकती है।
  2. भक्ति का बल:
    सच्ची भक्ति भगवान को भी अपने भक्त के प्रति झुकने पर मजबूर कर देती है।
  3. आत्मसमर्पण:
    भगवान की भक्ति में पूर्ण आत्मसमर्पण से ही दिव्य अनुभूतियां प्राप्त होती हैं।
  4. धैर्य और निष्ठा:
    ताज बेगम ने कठिन परिस्थितियों में भी अपने विश्वास को बनाए रखा।

निष्कर्ष

ताज बेगम की कथा यह प्रमाणित करती है कि भगवान की भक्ति जाति, धर्म और सामाजिक सीमाओं से परे है। सच्चे मन से भगवान का स्मरण करने वाला व्यक्ति अपने जीवन को आध्यात्मिक रूप से समृद्ध बना सकता है। यह कथा हमें प्रेरित करती है कि भक्ति के मार्ग पर चलते हुए हमें धैर्य और निष्ठा बनाए रखनी चाहिए। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )


FAQs (Frequently Asked Questions):

  1. ताज बेगम कौन थीं?
    ताज बेगम अकबर की पत्नी थीं, जो मलेच्छ खानदान में जन्मी थीं और भगवान श्रीकृष्ण की अनन्य भक्त बन गईं।
  2. ताज बेगम की भक्ति का प्रेरणा स्रोत कौन था?
    बीरबल की बेटी, जो स्वयं भगवान श्रीकृष्ण की भक्त थीं, ने ताज बेगम को भक्ति के मार्ग पर प्रेरित किया।
  3. ताज बेगम ने गोविंद देव जी के दर्शन कैसे किए?
    उन्होंने मंदिर के अंदर प्रवेश न कर पाने की व्याकुलता में अन्न-जल त्याग कर अनशन किया। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर ठाकुर जी ने उनकी कुटिया में दर्शन दिए।
  4. गोस्वामी विट्ठलनाथ जी ने ताज बेगम को क्या दिया?
    उन्होंने ताज बेगम को एक ताबीज दिया और उनकी भक्ति को प्रोत्साहित किया।
  5. अकबर ने विट्ठलनाथ जी से क्या सीखा?
    अकबर विट्ठलनाथ जी की भक्ति और उनके उपदेशों से प्रभावित हुए।
  6. ताज बेगम का अंतिम समय कहां बीता?
    ताज बेगम ने वृंदावन छोड़कर महावन में अपना जीवन बिताया और वहीं कृष्ण स्मरण करते हुए प्राण त्याग दिए।
  7. ताज बेगम की समाधि कहां स्थित है?
    उनकी समाधि वृंदावन में स्थित है, जो आज भी भक्ति का प्रतीक है।
  8. ताज बेगम के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
    यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी जाति, धर्म, या समाज की सीमाओं में नहीं बंधी होती।
  9. ताज बेगम के भक्ति पद कौन से हैं?
    उनके द्वारा रचित पदों में “सुनो दिलजानी मेरे दिल की कहानी” बहुत प्रसिद्ध है।
  10. ताज बेगम की भक्ति का समाज पर क्या प्रभाव पड़ा?
    उनकी भक्ति ने यह सिद्ध किया कि भगवान की कृपा सभी पर समान रूप से होती है और सच्चा भक्ति मार्ग सबसे बड़ा है।

ताज बेगम ki Katha

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