त्याग, तपस्या और चमत्कार – करमैती बाई जी का वृंदावन प्रवास और खंडेला के बांके बिहारी जी के प्रकट होने की रहस्यमयी कहानी

करमैती बाई जी: श्रीकृष्ण प्रेम में विलीन एक अनूठी भक्त


भारत भूमि संतों, भक्तों और त्यागियों की पावन धरा रही है। यहां समय-समय पर अनेक महापुरुष और भक्त आत्माएँ अवतरित हुईं, जिन्होंने भगवद् भक्ति की अलौकिक गाथाएँ रचीं। ऐसी ही एक महान भक्त थीं करमैती बाई जी, जिन्होंने सांसारिक सुखों को तिलांजलि देकर केवल श्रीकृष्ण को अपना सर्वस्व मान लिया। उनका जीवन त्याग, वैराग्य और अनन्य भक्ति का अनुपम उदाहरण है। इस कथा में हम उनके जीवन की उन घटनाओं को विस्तार से जानेंगे, जिन्होंने उन्हें साधारण कन्या से एक महान संत बना दिया।

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1. करमैती बाई जी का जन्म और पारिवारिक पृष्ठभूमि

करमैती बाई जी राजस्थान के खंडेला क्षेत्र में जन्मी थीं। वे शेखावत राजा के राजपुरोहित श्री परशुराम जी की सुपुत्री थीं। उनका परिवार विद्वानों और वैदिक परंपरा से जुड़ा हुआ था। परशुराम जी का जीवन भक्ति, कीर्तन और श्रीहरि की चर्चा में बीतता था। ऐसे भक्त परिवार में जन्म लेने से करमैती बाई के हृदय में भी श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम और अनुराग बचपन से ही जागृत हो गया।

परशुराम जी के घर में नियमित भागवत चर्चा होती थी। बाल्यकाल से ही करमैती जी ने इन कथाओं को सुनते-सुनते कृष्ण को ही अपना जीवन साथी मान लिया। उनके लिए श्रीकृष्ण केवल एक भगवान नहीं, बल्कि उनके हृदय के स्वामी थे

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2. करमैती बाई जी का विवाह और संसारिक जीवन की दुविधा

प्राचीन समय में कन्याओं के विवाह यौवन से पूर्व ही कर दिए जाते थे ताकि वे सुसंस्कारित जीवन व्यतीत करें। करमैती बाई का भी विवाह बाल्यकाल में ही कर दिया गया। लेकिन भारतीय परंपरा के अनुसार, गौना (विदाई) बाद में होता था

समय बीतने के साथ जब करमैती जी किशोरावस्था में पहुँचीं, तो उनके गौने की तैयारी शुरू हो गई। उनके माता-पिता ने सुंदर वस्त्र और आभूषण तैयार करवाए। लेकिन जब उन्हें पता चला कि उन्हें ससुराल जाना होगा, तो उनके मन में अत्यधिक चिंता उत्पन्न हो गई

संसार और भक्ति के बीच संघर्ष

करमैती बाई जी के मन में यह प्रश्न उठने लगा—

  • “क्या ससुराल में श्रीकृष्ण की भक्ति संभव होगी?”
  • “क्या वहाँ भागवत कथा और भजन-कीर्तन होंगे?”
  • “यदि नहीं, तो मैं कैसे जी पाऊँगी?”

यही चिंता उनके मन में गहरी पीड़ा का कारण बनी। उन्होंने महसूस किया कि यदि भक्ति और भजन न हो, तो ऐसा जीवन व्यर्थ है

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3. करमैती बाई जी का श्रीकृष्ण के प्रति अनन्य प्रेम

करमैती बाई ने अपने हृदय में स्पष्ट निर्णय ले लिया कि उनका जीवन केवल श्रीकृष्ण को समर्पित होगा। उन्होंने संसार के मायाजाल और अस्थायी सुखों को त्यागने का निश्चय किया

त्याग और वैराग्य की भावना

करमैती बाई जी को यह भली-भाँति समझ में आ गया कि—

  • धन-संपत्ति नश्वर है।
  • यौवन और सौंदर्य क्षणिक हैं।
  • सांसारिक संबंध परिवर्तनशील हैं।
  • केवल श्रीकृष्ण का प्रेम ही शाश्वत है।

उनके मन में यह विश्वास दृढ़ हो गया कि यह शरीर तब तक सार्थक है जब तक यह प्रभु की सेवा में लगा रहे। उन्होंने गृहस्थ जीवन के स्थान पर भक्ति का मार्ग अपनाने का निश्चय किया

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4. करमैती बाई जी की घर छोड़ने की साहसिक यात्रा

गौने की तिथि निश्चित हो चुकी थी। ससुराल वाले उन्हें लेने आने वाले थे। लेकिन करमैती बाई इस सांसारिक बंधन को स्वीकार नहीं करना चाहती थीं

एक ऐतिहासिक रात

रात के समय, जब सभी लोग गहरी नींद में थे, तब करमैती जी ने—

  1. माता-पिता को प्रणाम किया
  2. श्रीकृष्ण का स्मरण किया
  3. अश्रु बहाते हुए घर से निकल पड़ीं

उनका लक्ष्य था— वृंदावन। लेकिन उन्हें यह भी नहीं पता था कि वृंदावन की दिशा किस ओर है। फिर भी, प्रभु के प्रति अटूट विश्वास ने उनके कदम बढ़ा दिए

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5. करमैती बाई जी का छिपना और भगवान की कृपा

घर से भागने के बाद उनके पिता ने राज सैनिकों को उनकी खोज में भेज दिया। घुड़सवार सैनिक उनकी तलाश कर रहे थे। करमैती जी ने देखा कि वे उनके बहुत करीब आ गए हैं।

ऊँट के कंकाल में छिपने की घटना

सैनिकों से बचने के लिए उन्होंने—

  • एक ऊँट के कंकाल में शरण ली
  • वह कंकाल पूरी तरह सड़ चुका था और अत्यंत दुर्गंधयुक्त था।
  • वहाँ तीन दिन और तीन रात तक बिना जल और भोजन के रहीं।

लेकिन उनके मन में किसी प्रकार की पीड़ा नहीं थी। उनके लिए तो केवल श्रीकृष्ण की प्राप्ति ही जीवन का एकमात्र उद्देश्य था

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6. करमैती बाई जी का वृंदावन आगमन और तपस्या

तीर्थयात्रियों के एक दल के साथ चलते हुए वे गंगा स्नान करने पहुँचीं। वहाँ उन्होंने अपने कीमती आभूषण ब्राह्मणों को दान कर दिए और वृंदावन की यात्रा पर निकल पड़ीं

वृंदावन में करमैती बाई का जीवन

  • उन्होंने वटवृक्ष के पत्तों से अपना शरीर ढका
  • पूरे शरीर पर मिट्टी का लेप कर लिया
  • दिन-रात भजन और श्रीकृष्ण की ध्यान साधना में लीन रहने लगीं

वृंदावन उस समय एक घना जंगल था, जहाँ सिंह, बाघ और सर्प विचरण करते थे। लेकिन करमैती जी ने इन सभी भयों को त्याग दिया और केवल कृष्ण में तल्लीन हो गईं


7. करमैती बाई जी की भक्ति और कठिन तपस्या

वृंदावन पहुँचने के बाद करमैती बाई जी ने संसार के सभी बंधनों से पूरी तरह मुक्ति पा ली। उन्होंने दिन-रात श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन रहने का संकल्प लिया। उनकी भक्ति इतनी गहन थी कि उन्होंने भोजन और वस्त्र का भी त्याग कर दिया। वे केवल श्रीकृष्ण के नाम-स्मरण और ध्यान में लीन रहने लगीं।

करमैती बाई का तपस्वी जीवन

  • उन्होंने मिट्टी के लेप से अपने शरीर को ढक लिया, ताकि सांसारिक सौंदर्य का मोह समाप्त हो जाए।
  • वृंदावन के कुञ्जों में रहकर भजन-कीर्तन करने लगीं
  • भोजन के नाम पर गिरि गोवर्धन से गिरी हुई सूखी पत्तियाँ खातीं
  • ठंड, गर्मी और बरसात की परवाह किए बिना खुले आसमान के नीचे श्रीकृष्ण का ध्यान करतीं

भगवान श्रीकृष्ण की कृपा

करमैती बाई जी का यह तप देखकर स्वयं श्रीकृष्ण उनसे प्रसन्न हो गए। एक दिन उन्होंने बालक रूप में प्रकट होकर उनसे कहा
“माता! तुम इतनी कठिन साधना क्यों कर रही हो? क्या तुम्हें कष्ट नहीं होता?”

करमैती जी ने भाव-विह्वल होकर उत्तर दिया—
“हे गोविंद! जब तक आप प्रत्यक्ष दर्शन नहीं देंगे, तब तक यह तपस्या चलती रहेगी।”

भगवान मुस्कुराए और बोले—
“यदि मैं स्वयं तुम्हारे पास रहूँ, तो क्या तुम संतुष्ट हो जाओगी?”

करमैती जी ने श्रद्धापूर्वक कहा—
“यदि आप मेरे हृदय में सदा के लिए निवास कर लें, तो मेरा जीवन सफल हो जाएगा।”

तभी भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी अलौकिक शक्ति से करमैती जी के हृदय में वास कर लिया

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8. करमैती बाई जी और वृंदावन के संतों का संग

वृंदावन संतों और भक्तों की पावन स्थली रही है। यहाँ अनेक संत रहते थे, जो नाम-संकीर्तन, भगवत चर्चा और भक्ति-प्रचार में संलग्न थे। करमैती बाई जी ने भी इन संतों का सत्संग किया और श्रीकृष्ण भक्ति की महिमा को और अधिक गहराई से समझा।

भागवत कथा और कीर्तन में उनकी भागीदारी

  • वे रासलीला और श्रीमद्भागवत कथा के आयोजनों में शामिल होतीं
  • वृंदावन के प्रसिद्ध संतों के साथ मिलकर कीर्तन करतीं और नृत्य करतीं
  • उनकी मधुर वाणी और गहरी भक्ति भावना देखकर अन्य भक्त भी प्रेरित होते

गोपियों जैसी भक्ति की मिसाल

करमैती बाई जी की भक्ति गोपियों के समान मानी जाती थी। जैसे गोपियाँ श्रीकृष्ण के प्रेम में पागल थीं, वैसे ही करमैती जी भी अपने आराध्य के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थीं

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9. करमैती बाई जी की भक्ति का प्रसार

करमैती बाई जी की भक्ति और त्याग की गाथा धीरे-धीरे पूरे वृंदावन और आसपास के क्षेत्रों में फैलने लगी। लोग उनकी तपस्या और भक्ति भावना को देखकर चमत्कृत होते और उन्हें संत मानने लगे

स्त्रियों के लिए भक्ति का आदर्श

उस समय समाज में स्त्रियों के लिए धर्म और भक्ति का मार्ग कठिन माना जाता था। लेकिन करमैती जी ने यह सिद्ध कर दिया कि यदि मन में सच्ची लगन हो, तो कोई भी स्त्री भगवान की प्राप्ति कर सकती है

उनकी कथा सुनकर अनेक स्त्रियाँ संसार के मोह से मुक्त होकर भक्ति मार्ग पर चल पड़ीं

करमैती बाई जी के प्रवचन

  • उन्होंने भगवद्भक्ति के महत्व को लोगों को समझाया
  • उन्होंने यह सिखाया कि सच्ची भक्ति धन-वैभव से नहीं, बल्कि त्याग और प्रेम से होती है
  • उन्होंने विशेष रूप से स्त्रियों को प्रेरित किया कि वे भी भगवान की भक्ति में स्वयं को समर्पित कर सकती हैं

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10. करमैती बाई जी के जीवन की अंतिम अवस्था

भक्ति की इस महान यात्रा में करमैती बाई जी ने श्रीकृष्ण प्रेम में पूर्णतः विलीन होकर अपना जीवन अर्पित कर दिया। वे वृंदावन में अनेक वर्षों तक रहीं और अंततः श्रीकृष्ण के प्रेम में लीन होकर इस नश्वर संसार से विदा हो गईं

महाप्रयाण (स्वधाम गमन)

  • करमैती बाई जी ने संन्यासियों की तरह शरीर त्यागने का निर्णय लिया
  • वे यमुना किनारे बैठकर गहरे ध्यान में लीन हो गईं
  • अंत में उन्होंने अपने प्राण श्रीकृष्ण के चरणों में समर्पित कर दिए

उनके महाप्रयाण के बाद वृंदावन के संतों और भक्तों ने उनकी समाधि बनाई, जो आज भी वृंदावन में स्थित है और भक्तों को उनकी अनन्य भक्ति की याद दिलाती है।


निष्कर्ष: करमैती बाई जी की भक्ति से हमें क्या सीख मिलती है?

करमैती बाई जी की कथा हमें सिखाती है कि—

  1. सच्ची भक्ति त्याग और समर्पण में निहित है।
  2. भगवान की प्राप्ति के लिए संसार के मोह-माया को त्यागना आवश्यक है।
  3. यदि प्रेम सच्चा हो, तो भगवान स्वयं अपने भक्त के हृदय में निवास कर लेते हैं।
  4. संतों और भक्तों का संग जीवन को आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचा सकता है।

करमैती बाई जी की यह गाथा आज भी हमें प्रेरणा देती है कि यदि हम अपने हृदय से श्रीकृष्ण को प्रेम करें, तो वे हमें कभी अकेला नहीं छोड़ते


FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. करमैती बाई जी कौन थीं?

करमैती बाई जी राजस्थान के खंडेला क्षेत्र की एक महान भक्त थीं, जिन्होंने श्रीकृष्ण की भक्ति में अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया।

2. करमैती बाई जी ने अपना घर क्यों छोड़ा?

उन्होंने सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर श्रीकृष्ण की भक्ति के लिए अपना घर त्याग दिया और वृंदावन में तपस्या करने लगीं।

3. करमैती बाई जी की भक्ति कैसी थी?

उनकी भक्ति अनन्य और पूर्ण रूप से श्रीकृष्ण के प्रति समर्पित थी। वे गोपियों की तरह कृष्ण प्रेम में लीन थीं।

4. करमैती बाई जी का समाधि स्थल कहाँ है?

उनकी समाधि वृंदावन में स्थित है, जहाँ भक्त आज भी उनकी भक्ति की प्रेरणा लेने जाते हैं।

5. करमैती बाई जी की कथा से हमें क्या सीख मिलती है?

हमें यह सीख मिलती है कि सच्ची भक्ति प्रेम, त्याग और समर्पण से ही संभव होती है। भगवान श्रीकृष्ण अपने भक्तों के प्रेम को कभी व्यर्थ नहीं जाने देते।

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