आज जब हम भारतीय इतिहास की ओर देखते हैं, तो मुगलों की कहानियाँ किताबों में भरी पड़ी हैं, लेकिन मराठा योद्धाओं का संघर्ष हमें शायद ही विस्तार से पढ़ाया जाता है।
अगर छत्रपति शिवाजी महाराज शेर थे, तो उनके पुत्र संभाजी महाराज ‘छावा’ थे। लेकिन अफसोस की बात यह है कि संभाजी महाराज की वीरगाथा को इतिहास से लगभग मिटा दिया गया।
अगर आप सच सुनने का साहस रखते हैं, तो इस कथा को जरूर पढे । यह सिर्फ़ एक स्टोरी नहीं, बल्कि उस योद्धा की कहानी है जिसने मुगलों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों और डचों के खिलाफ निरंतर युद्ध लड़ा और कभी हार नहीं मानी।
छत्रपति संभाजी महाराज: एक अनसुना योद्धा
शिवाजी महाराज का सपना और संभाजी महाराज की भूमिका
छत्रपति शिवाजी महाराज ने स्वराज्य की नींव रखी थी, लेकिन यह यात्रा इतनी आसान नहीं थी।
उस समय भारत विभिन्न विदेशी और मुस्लिम आक्रमणकारियों से ग्रसित था।
भारतीय लोग गुलामी को अपनी नियति मान चुके थे।
लोगों ने यह मान लिया था कि हम दास थे, दास हैं और दास रहेंगे।
मगर शिवाजी महाराज ने स्वतंत्रता का बीज बोया और मराठाओं को एकजुट किया।
शिवाजी महाराज का सपना था – हिंदवी स्वराज्य! लेकिन जब शिवाजी महाराज का निधन हुआ, तो दिल्ली में जश्न मनाया गया।
औरंगज़ेब ने सोचा कि अब मराठों की ताकत खत्म हो गई।
लेकिन क्या सच में ऐसा हुआ? बिल्कुलनहीं!
उस समय संभाजी महाराज मात्र 23 वर्ष के थे। उन्होंने 1681 से 1689 तक मुगलों, पुर्तगालियों, अंग्रेजों और डचों से युद्ध किया।
संभाजी महाराज की अविश्वसनीय युद्ध क्षमता
छत्रपति संभाजी महाराज केवल एक योद्धा नहीं थे, बल्कि एक कुशल सेनापति, निडर योद्धा, अद्भुत रणनीतिकार और दूरदर्शी शासक भी थे। जब छत्रपति शिवाजी महाराज का निधन हुआ, तब मराठा साम्राज्य एक कठिन दौर से गुजर रहा था। उस समय, चारों ओर से आक्रमणकारी ताकतें मराठों को मिटाने के लिए तैयार थीं – मुगल, पुर्तगाली, अंग्रेज और डच।
लेकिन संभाजी महाराज ने न केवल इस चुनौती को स्वीकार किया, बल्कि अपने कौशल और नेतृत्व से दुश्मनों को पराजित कर दिखाया।
उनकी सेना मात्र 20,000 सैनिकों की थी, लेकिन उन्होंने 8 लाख मुगलों को पराजित किया।
उन्होंने 120 युद्ध लड़े और एक भी नहीं हारे।
उनकी रणनीति के कारण औरंगज़ेब का ध्यान राजस्थान, पंजाब और बुंदेलखंड से हटकर दक्षिण भारत पर चला गया।
संभाजी महाराज का सबसे बड़ा योगदान यह था कि उन्होंने सिर्फ मराठों के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए स्वराज्य का सपना देखा।
मराठा बनाम मुगल: पहचान का संघर्ष
क्या मराठा और मुगलों में कोई अंतर था?
जहाँ औरंगज़ेब खुद को तुर्क मानता था और भारतीय संस्कृति से दूर था, वहीं संभाजी महाराज ने 13 भाषाएँ सीखकर देश को अपनाया।
औरंगज़ेब ने इस्लामिक कानून (शरिया) लागू किया, जबकि संभाजी महाराज ने भारतीय संस्कृति को महत्व दिया।
औरंगज़ेब ने हिंदुओं पर जज़िया कर लगाया, जबकि संभाजी महाराज ने धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा दिया।
क्योंकि यह सिर्फ़ महाराष्ट्र का नहीं, पूरे भारत का इतिहास है।
क्योंकि यह हिंदू-मुस्लिम विवाद नहीं, बल्कि स्वतंत्रता संग्राम की कहानी है।
क्योंकि यह हमें हमारी असली पहचान से जोड़ती है।
🚩 अगर आप सच जानना चाहते हैं, तो ‘छावा’ ज़रूर देखें और इस लेख को हर भारतीय तक पहुँचाएँ।
❓ Frequently Asked Questions (FAQs)
1️⃣ संभाजी महाराज कौन थे?
उत्तर: छत्रपति संभाजी महाराज छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र और मराठा साम्राज्य के दूसरे शासक थे। उन्होंने मुगलों, पुर्तगालियों और अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी और 120 युद्धों में कभी हार नहीं मानी।
2️⃣ संभाजी महाराज को औरंगज़ेब ने कैसे यातनाएँ दीं?
उत्तर: औरंगज़ेब ने संभाजी महाराज को 40 दिनों तक अमानवीय यातनाएँ दीं। उन्हें उल्टा लटकाया गया, पत्थर मारे गए, नाखून निकाले गए, आँखों में मिर्च डाली गई और उनकी जीभ काट दी गई। बावजूद इसके, उन्होंने इस्लाम स्वीकार नहीं किया।
3️⃣ संभाजी महाराज की सबसे बड़ी उपलब्धियाँ क्या थीं?
उत्तर: उन्होंने मात्र 20,000 सैनिकों के साथ 8 लाख मुगलों को हराया। उन्होंने मराठा नौसेना को मजबूत किया, 120 युद्ध लड़े और कभी हार नहीं मानी। उन्होंने हिंदवी स्वराज्य के विचार को पूरे भारत में फैलाया।
4️⃣ ‘छावा’ फिल्म किस पर आधारित है?
उत्तर: ‘छावा’ फिल्म छत्रपति संभाजी महाराज के जीवन, उनके बलिदान और औरंगज़ेब के अत्याचार के खिलाफ उनकी लड़ाई पर आधारित है। यह फिल्म उनकी अनकही कहानी को सामने लाने का प्रयास करती है।
5️⃣ हमें संभाजी महाराज के इतिहास को क्यों याद रखना चाहिए?
उत्तर: संभाजी महाराज भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले महान योद्धा थे। उनका संघर्ष और बलिदान हमें सिखाता है कि सच्ची स्वतंत्रता केवल तलवार से नहीं, बल्कि आत्मबलिदान से भी प्राप्त की जाती है।
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