जब कोर्ट ने भेजा बाँके बिहारी जी को कोर्ट का सम्मन

जब कोर्ट ने भेजा बाँके बिहारी जी को कोर्ट का सम्मन ?? लेकिन कहते है ना जिसकी रक्षा श्याम उसका क्या ही बिगाड़े संसार | ये आज कि कथा भी हमारे बाँके बिहारी जी सरल और दयालु ह्रदय की है | जिसने भी अपना सर्वस ठाकुर जी पर लुटाया है, ठाकुर जी ने भी एक पल भी ना देरी किए उसकी समस्या में उसके समक्ष उपस्थित होकर समाधान करते है | इससे पहले भी मैंने बिहारी जी लीलाओ के बारे में बताया है, लिंक पर जाकर उसे भी पढ़ सकते है आप सभी ( बाँके बिहारी जी के निधिवन की सच्ची घटना ) | आईए कथा जानते है –

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भक्त गोवर्धन दास जी

ये कथा है एक बिहारी जी अन्नय भक्त गोवर्धन दास जी की, जो अलीगढ़ के पास स्थित एक गाँव में रहते थे | गोवर्धन दास जी पेशे से अध्यापक थे वो वैसे वाले अध्यापक नहीं थे, जैसे आज है पहले पैसा देखते है फिर शिक्षा | संत बताते है पहले के समय में अगर आपको गुरु बना दिया गया तो उससे ज्यादा श्रेष्ठ कुछ नहीं माना जाता था | वैसे ठाकुर जी कृपया से गोवर्धन दास जी का जीवन सुखमय था लेकिन फिर भी एक दिन गोवर्धन दास जी के मन में ये विचार आया कि मैं अपनी पत्नी से पूछता हूँ कही उसको तो किसी चीज कि कमी तो नहीं है ? तो गोवर्धन दास जी अपनी पत्नी के पास जाके उससे पूछा कि क्या तुझे किसी चीज की जरूरत है तो पत्नी ने उत्तर दिया | श्री बिहारी जी की कृपया से आप ने मुझे जो कुछ भी दिया मैंने उसे भोगा उसके अलावा मुझे वस्तु की आवश्यकता नहीं है |
लेकिन मैं एक माँ भी हूँ और आपको ज्ञात होगा ही कि हमारी जी बेटी है वो बड़ी हो रही है क्या आपने उसके विवाह के लिए कुछ सोचा है ? तो गोवर्धन दास जी सोच में पड़ गए क्योंकि बात तो सही ही थी तो उन्होंने अपनी पत्नी से कहाँ तू चिंता क्यों करती है | हम सेठ लक्ष्मी चंद्र के पास जाकर कुछ पैसे उधर ले लेंगे जिससे हमारी बेटी का विवाह हो जाएगा और उसके बाद धीरे धीरे उसके कर्ज को भी चुका देंगे | पत्नी ने जैसे ही सेठ लक्ष्मी चंद्र का नाम सुना उसने कहाँ नहीं नहीं वो लक्ष्मी चंद्र नियत का बईमान इंसान है उसके चक्कर में जो पड़ा है उसने फिर कोर्ट के चक्कर ही लगाए है | पत्नी की बात सुन गोवर्धन दास जी बड़े चिंतित हुए और सोच में पड़ गए कि क्या होगा कैसे होगा | ( बांके बिहारी जी के चमत्कार की अद्भुत कथा )

भक्त गोवर्धन दास जी ने मजबूरी में लिया एक बईमान इंसान से पैसा 

समय बीता बेटी का विवाह तय हो गया शादी की तारीख भी निकट आ गई | गोवर्धन दास जी बड़े व्याकुल क्या करे किस्से पैसे ले काफी प्रयत्न के बाद भी जब कोई न मिला तो अंतोगत्वा गोवर्धन दास जी को सेठ लक्ष्मी चंद्र के पास ही जाना पड़ा और उससे ही पैसे लिए | पैसे मिलने के बाद जब वो अपने घर सभी सामान लेके पहुंचा तो पत्नी उसे समस्त सामानों के साथ देख काफी प्रसन्न हुई | लेकिन गोवर्धन दास ने ये नहीं बताया कि उन्होंने पैसा सेठ लक्ष्मी चंद्र से लिया है | गोवर्धन दास ने अच्छे से अपनी बेटी का विवाह कर उसे विदा किया |उसके बाद गोवर्धन दास ने कमा कमा कर हर एक पैसे सेठ लक्ष्मी चंद्र को लौटा दिया | जब गोवर्धन दास ने सारे पैसे चुका दिए तो सेठ लक्ष्मी चंद्र ने अपने बही खाते की किताब में लिख दिया कि गोवर्धन दास ने ब्याज सहित मुझे समस्त पैसे वापस कर दिया | अब उनका और मेरा कोई लेन देन शेष नहीं है | गोवर्धन दास जी खुशी खुशी घर आए मन में सोचा अब सुकून है |

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सेठ लक्ष्मी चंद्र की नियत बिगड़ी

लेकिन कुछ माह बाद सेठ लक्ष्मी चंद्र की नियत बिगड़ी और उसने गोवर्धन दास जी के नाम कोर्ट से सम्मन भेज दिया जिसमे ये बताया गया था कि गोवर्धन दास जी ने जो पैसे सेठ से लिए थे वो अभी तक लौटाए नहीं है | सम्मन देख पति पत्नी काफी भयभीत हो गए कि ये कैसे हो सकता है | इसलिए वो दोनों सेठ लक्ष्मी चंद्र के पास गए उससे बात करने कि मैंने तो आपकी पाई पाई चुका दिया है और आपने अपने पुस्तक में लिखा भी था लेकिन सेठ लक्ष्मी चंद्र मुकर गया और बोल देखो गोवर्धन दास जी अब तो आपको अपना मकान ही खाली करना पड़ेगा बदले में कुछ पैसे ले लो मेरे से लेकिन अब तो मकान दिए ही छुटकारा मिलेगा आपको | ( एक वेश्या के सामने भगवान ने झुका दिया अपना सिर )

गोवर्धन दास जी पहुंचे बाँके बिहारी जी के पास

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सेठ की सारी बात सुन गोवर्धन दास जी और उनकी पत्नी का मन काफी दुखी हुआ और फिर गोवर्धन दास जी के मन में एक भाव आया कि मैं बाँके बिहारी जी के पास जाऊंगा वो सबकी सुनते है उनके दर से कोई खाली नहीं जाता है मेरी भी नैया अब वही पार लगाएंगे मुझे भी इंसाफ दिलाएंगे | फिर क्या पहुँच गए गोवर्धन दास जी श्री धाम वृंदावन बाँके बिहारी जी के चरणों में | संत बताते है जैसे ही गोवर्धन दास जी बिहारी जी के सम्मुख पहुंचे बिहारी जी ने उनका ध्यान अपनी ओर खींच लिया | गोवर्धन दास जी बिहारी जी को देख फूट फूट कर रोने लगे और रोते रोते ही बिहारी जी को सारी बात बताई और हमारे बिहारी जी बड़े भाव से भक्त की बात सुन रहे थे | गोवर्धन दास जी ने बड़े भाव से कहाँ प्रभु मेरी डूबती नैया को आप ही किनारे लगा सकते है |

बिहारी जी से मिलकर गोवर्धन दास जी पुन: अपने घर वापस आ गए | सम्मन आया तो गोवर्धन दास जी को कोर्ट भी जाना था तो पहुँच गए कोर्ट गोवर्धन दास जी तो जज ने पूछा क्यों नहीं दे रहे हो पैसा तो गोवर्धन दास जी ने कहाँ साहब मैंने तो सारे पैसे चुका दिए है ये लक्ष्मी चंद्र झूट बोल रहा है तो जज ने पूछा कि तुमने जब पैसे दिए तो उस समय कोई था वहाँ पर ?? तो गोवर्धन दास जी ने अपने मन आए भाव को उजागिर करते हुए कहाँ कि साहब कोई था नहीं था ये तो पता नहीं लेकिन उस व्यक्त भी मेरे बाँके बिहारी जी वहाँ पर थे | जज ने जैसे ही बाँके बिहारी जी का नाम सुना तो पूछा ये बाँके बिहारी कहाँ रहता है और उसके पिता का नाम क्या है ? गोवर्धन दास जी को उनके पिता का नाम तो पता नहीं था लेकिन सुना था कि हरीदास जी के भक्ति से खुश होकर बिहारी जी प्रकट हुए है | तो उन्होंने जज से कहाँ वृंदावन में रहता है और उनके पिता जी का नाम श्री हरीदास जी है |

तो जज ने बाँके बिहारी जी के नाम का सम्मन बनाया और भेज दिया वृंदावन | जब एक व्यक्ति वृंदावन सम्मन लेके पहुँचा तो बिहारी जी की लीला शुरू हुई क्योंकि उन्हे पता था कि ये सम्मन लेके घूमेगा लेकिन कौन ही लेगा इससे सम्मन इसलिए बिहारी जी खुद ही बालक का रूप बनाकर पहुँच गए डाकिये के पास ओ! डाकिया क्या लाए हो कहाँ से लाए हो तो डाकिया ने कहाँ यहाँ बाँके बिहारी कौन है ये उसका ही खत है तो उस बालक ने कहाँ लाओ आप मुझे दे दो | मैं उनके घर जा रहा हूँ उनको दे दूंगा तो डाकिया ने वो सम्मन बिहारी जी रूपी बालक को दे दिया | बिहारी जी सम्मन देख ये बात समझ गए कि आज उनके भक्त को उनकी दरकार है | फिर कहाँ रुकने वाले है अपने बिहारी जी |

अब शुरू हुई हमारे बिहारी जी की लीला

सम्मन का दिन आ गया जज ने गोवर्धन दास जी से बोल तुम्हारे बाँके बिहारी जी आए नहीं है इसका मतलब है तुम झूट बोल रहे हो | तुमने पैसे चुकाये नहीं है तो तुम्हें घर खाली करना पड़ेगा | गोवर्धन दास आंखे बंद की ठाकुर जी को याद किया और बोले प्रभु सबकी नैया पार लगते हो मेरी नैया ही डूबा रहे हो क्यों ? जज के साथ खड़े कर्मचारी ने चिल्लाना शुरू किया कि बाँके बिहारी हाजिर हो, बाँके बिहारी हाजिर हो इतने में देखा एक वृद्ध व्यक्ति काला काला कंबल ओढ़कर कोर्ट में आया और हाथ उठाकर बोल मैं ही हूँ बाँके बिहारी | उन्हे जज ने कटघरे में खडा किया और पूछा जब गोवर्धन दास जी ने पैसे दिए तो आप वहाँ थे तो बिहारी जी बोले हाँ मैं था और मैंने देखा भी है | जज ने आगे पूछा तो कोई सबूत है आपके पास ? तब बिहारी जी ने कहाँ हाँ मेरे पास सुबूत भी है |
बिहारी जी कहाँ साहब जहां लक्ष्मी चंद्र बैठता है उसके ठीक पीछे एक अलमारी है, उस अलमारी में एक पीले रंग की फाइल है और उसी फाइल के 37 न. पेज पर स्पष्ट लिखा है कि गोवर्धन दास जी ने एक एक रुपए सूत समेत मुझे वापस कर दिया अब मेरा और गोवर्धन दास जी का कोई भी हिसाब शेष नहीं है | जज ने तुरंत ही सेठ के घर पर पुलिस भेजे तो उन्हे उसी अलमारी के उसी पीले फाइल के 37 न. पेज पर वह पन्ना मिला वो पन्ना लेकर कोर्ट आए और जज साहब को दिखाया | देखने के बाद जज साहब समझ गए ये लक्ष्मी चंद्र झूट बोल रहा है | जिसके बाद गोवर्धन दास जी को बाइज्जत बरी कर दिया गया और गोवर्धन दास को सजा हो गई | ( भक्त के लिए भगवान ने घुमा दिया अपने मंदिर का मुख )

केस खत्म हो गया ठाकुर जी भी वृद्ध अवस्था में भी कोर्ट के दरवाजे पर आए और वहाँ आके अन्तर्धाम हो गए यह दृश्य देख जज साहब चौक गए उन्होंने गोवर्धन दास जी को बुलाया और पूछा तुम किसी बाँके बिहारी जी को जानते हो तो उन्होंने बताया मैं तो बस एक ही बाँके बिहारी जी को जानता हूँ जो इस जगत के पालनहार है जिनका निज धाम श्री वृंदावन है | गोवर्धन दास की बात सुन जज साहब हक्के हक्के बकके रह गए रोज गाड़ी से आने वाले जज आज एकदम चित्त खोकर पैदल पैदल अपने घर की और चल दिए | घर जाकर वो देखते है उनकी पत्नी भगवान को भोग लगा रही है उसे देख जज साहब ने मन ही मन सोच ये आज मेरे कोर्ट में आया था |

जज साहब ने पत्नी से पूछा मंदिर में क्यों विराज मान है तो पत्नी ने कहाँ मंदिर बाँके बिहारी जी बैठे है तो जज साहब वही बैठ कर रोने लगे तो पत्नी ने कहाँ क्या हुआ कोई गालत फैसला ले लिया आज, या कुछ गालत घटित हो गया है तो जज ने कहाँ आज बहुत गलत घटित हुआ है ?? तो जज साहब ने कहाँ जिसकी अदालत में सभी को खड़ा होना पड़ता है आज वही बाँके बिहारी मेरी अदालत में खड़े थे | उसके बाद जज ने इस्तीफा दिया और लग गए बाँके बिहारी की भक्ति में |
बोल बाँके बिहारी लाल की जय, भक्त और भगवान की जय

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