मणिमहेश पर्वत एक ऐसा पर्वत जहां भक्त और भगवान का मिलान होता है अपनी निराली लीलाओ से भोलेनाथ अपने भक्तों को चकित करते रहते है। वे साक्षात भक्तों को दर्शन देते हैं। इस धरती पर भोलेनाथ के ऐसे कई धाम है | इन्हीं में से एक धाम है मणिमहेश पर्वत | यह पर्वत चंबा जिले में स्थित है | इस जगह पर भक्त और भगवान का अटूट रिश्ता होने के कारण इसे चांबा कैलाश भी कहा जाता है।
इस जगह का नाम मणिमहेश क्यों पड़ा
अगर बात करे इसके नाम की तो इसका एक विशेष कारण है। विद्वानों और संतों के अनुसार इस पर्वत के शिखर पर भगवान शिव शेषनाग मणि के रूप में विराजमान है। अपितु वे इसी रूप अपने भक्तों को दिखाई देते हैं। इसके अलावा इस शब्द का मतलब महेश के मुकुट में नगीना भी होता है । कहा जाता है कि शिव-शंकर ने पार्वती जी के साथ रहने के लिए एक विशेष पर्वत का निर्माण किया था, ये मणिमहेश पर्वत भगवान भोलेनाथ की वही रचना है । संतों और भक्तों के अनुसार मणिमहेश पर्वत पर भगवान शिव शाम व अर्धरात्रि में अपने भक्तों को दर्शन देते हैं। और तो और कैलाश की तरह ही मणिमहेश पर्वत पर भी चढ़ना नामुमकिन है |
मणिमहेश पर्वत का रहस्य
कहा जाता है कि शिव-शंकर ने पार्वती जी के साथ रहने के लिए मणिमहेश पर्वत की रचना की थी। इसलिए इस स्थान पर आज भी भगवान शिव शिवलिंग के रूप में मौजूद है और जगत जननी माता पार्वती को यहा देवी गिरजा के रूप में जाना जाता है | मणिमहेश पर्वत पर भगवान शिव शाम व रात्रि के मध्यकाल में दर्शन देते हैं। सूर्यास्त के समय पर जब सूर्य की किरणे मणिमहेश पर्वत के शिखर पर पड़ती है तब वहाँ का पूरा दृश्य स्वर्णिम हो जाता है | भक्त और वहाँ रहने वाले लोग बताते है कि यदि मौसम साफ रहता है तो भक्त पर्वत की चोटी व उस पर विराजमान हमारे भगवान शिव के साक्षात दर्शन कर सकते है |
इसी के साथ कई लोगों और संतों का मानना है कि मणिमहेश पर्वत का शिखर अदृश्य है। उसे कोई देख ही नही सकता है | ये चोटी हमेशा बादलों व बर्फ से ढका रहता है | ये चोटी सिर्फ उसी को दिखाई देती है, जिनका मन सम्पूर्ण रूप से भोलेनाथ का हो जिसके भाव, श्रद्धा, अतिप्रबल हो और जो पूर्ण रूप से पाप मुक्त हो, जिसने अपने आराध्य की भक्ति में अपने तन,मन,धन सब लूटा दिया हो | इस पर्वत मणिमहेश की कुल ऊंचाई कितनी है इस बात का कोई भी ठोस प्रमाण नहीं है | क्योंकि वहाँ उस पर्वत पर चढ़ना मुश्किल है इलसिए अभी तक कोई भी इसकी पुख्ता जानकारी नहीं दे सका है | कुछ शोधकर्ताओ के अनुसार इसकी ऊंचाई 18 हजार 564 फुट है | लेकिन इसमे कितनी सच्चाई है ये तो भगवान भोलेनाथ ही जाने |
जैसे कि कैलाश पर्वत के बारे में हमे ज्ञात है उस पर्वत पर आज तक कोई नहीं चढ़ पाया है उसी तरह मणिमहेश पर्वत पर भी चढ़ना नामुमकिन है | जिसने भी यहां मणिमहेश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश किया, उसे कोई अदृश्य शक्ति रोक देती है | सन् 1968 में इंडो-जापनीस की एक टीम ने जिसका नेतृत्व नंदिनी पटेल कर रहीं थी, इस पर्वत पर चढ़ाई करने की कोशिश की थी, लेकिन वे असफल रहें |
स्थानीय लोगों के अनुसार कई वर्ष पहले एक गड़रिया अपने कुछ भेड़ों के साथ मणिमहेश पर्वत पर चढ़ रहा था | लेकिन वह शिखर पर पहुंचने से पहले ही भेंड़ों समेत पत्थर का बन गया | कहा जाता है कि आज भी मणिमहेश पर्वत पर वे सभी लोग छोटे-छोटे पत्थरों के रूप में मौजूद हैं | मणिमहेश से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है | लोगों के मुताबिक एक बार एक सांप ने भी पर्वत के शिखर पर पहुंचने की कोशिश की थी, वो भी पत्थर का बन गया |
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