भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा से होती है भूत पिशाचों की मुक्ति – पूरे वर्ष में एक बार होने वाले भगवान जगन्नाथ जी की रथ यात्रा के चर्चे सिर्फ हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरी में भी मशहूर है | इस भव्य रथ यात्रा इंतजाम सिलसिलेवार ढंग से किया जाता है और हर छोटी बड़ी राश्मों का आयोजन काफी भाव और भव्य तरीके से किया जाता है | इस भव्य अविश्वानीए रथ यात्रा में हमारे जगत के नाथ जगन्नाथ अपने बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ नगर भ्रमण के लिए जाते है और नगर भ्रमण के बाद कुछ दिन अपने मौसी के घर गुंडिचा मंदिर में विश्राम करते है | तत्पश्चात पुन: अपने घर जगन्नाथ पूरी वापस आते है |
उड़ीसा के जगन्नाथ पूरी में ये रथ यात्रा आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि में निकली जाती है | वहीं दस दिनों के विश्राम के बाद भगवान के तीनों रथों को वापस जगन्नाथ जी के मुख्य मंदिर में लाया जाता है और वही शुरू होती है एक ऐसी रस्म जो हम इंसानों के लिए नहीं होती है और वो प्रसाद हम इंसानों को दिया भी नहीं जाता है तो आईए जानते है उस अधरपना रस्म के बारे में और इसके पीछे का रहस्य |
भगवान जगन्नाथ जी सिर्फ मनुष्यों के ही नहीं बल्कि देवताओ और भूत पिशाचों के भी के भी नाथ है मतलब इस सम्पूर्ण जगत के नाथ है भगवान जगन्नाथ | इसलिए भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा के समय सभी देवी देवता इनके दर्शन के लिए आते है और तीनों रथो के अलग अलग हिस्सों पर आसीन हो जाते है | ऐसा कहाँ जाता है कि रथ यात्रा में भूत पिशाच भी आते है और भगवान जगन्नाथ जी ने मुक्ति की आकांक्षा रखते है |
यही वजह है कि जब जगन्नाथ प्रभु की रथ यात्रा पूर्ण हो जाती है तो इन सभी अदृश्य शक्तियों के लिए एक विशेष भोग लगाया जाता है | इस भोग को वहाँ मौजूद किसी भी मनुष्य को नहीं दिया जाता है | इस भोग को ही कहते है अधरपना | इसमे मिट्टी की लंबी लंबी हँड़ियों में तरल रूप में भोग होता है | इस भोग को तीनों विग्रहों के अधरों यानि कि “होंठ’ लगाया जाता है | दरअसल ‘अधर पना’ रस्म में ‘अधर’ का अर्थ है होंठ, और ‘पना’, का अर्थ है मीठा पेय | भगवान जगन्नाथ को अधरपना का भोग लगाने के बाद उन सभी हँड़ियों को तोड़ दिया जाता है जिससे समस्त भोग बिखर जाता है | बताते है कि इस तरह से फैले भोग अदृश्य शक्तियां को और भूत पिशाच ग्रहण करते है जिसके बाद उन भूत पिशाचों को मुक्ति प्राप्त होती है | इस समय अनंत शक्तियां इस रथ के साथ साथ चलती है जो अपने कर्म को काटने के लिए मोक्ष की प्राप्ति की इच्छा के लिए आती है | हमारे जगत के नाथ जगन्नाथ जी सबको सद्गति प्राप्त करते है |
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