शारीरिक पीड़ा से मुक्ति पाने के लिये हनुमान जी ने करवाया था हनुमान बाहुक की रचना- हम में से कई अपने दैनिक जीवन में कृपया की प्राप्ति के लिए हनुमान चालीसा का पाठ करते है | जिसमे एक लाइन आती है “तुलसीदास सदा हरि चेरा कीजै नाथ हृदय मंह डेरा” जिससे हमे इस बात का पता चल जाता है कि हनुमान चालीसा को संत तुलसीदास जी ने ही लिखा है | जानकारी के लिए बता दे कि तुलसीदास जी द्वारा हनुमान चालीसा पाठ की रचना जेल में की गई थी | हनुमान चालीसा की रचना के बाद, गोस्वामी तुलसी दास जी ने बजरंग बाण एवं हनुमान बाहुक की भी रचना की है | लेकिन हनुमान बाहुक के बारे में संत बताते है कि इसकी रचना, इसमे उपस्थित समस्त लाइन स्वयं हनुमान जी के मुखारबिन्दु से बोला गया है इसलिए हनुमान बाहुक की काफी ज्यादा सिद्ध और कार्यगार माना गया है | हनुमान बाहुक के बारे में ये कह सकते है कि –
जब मनुष्य के जीवन में कभी ऐसी परिस्थितियाँ आती है जहां वह बहुत कमजोर महसूस करता है तब उसका एकमात्र सहारा उसके आराध्य ही होते है जिनकी उसे ज़रूरत महसूस होती है | हर व्यक्ति ही जीवन में कभी न कभी दुःख या उदासी महसूस करता है ऐसे में उसे शान्ति चाहिए होती है और वो शान्ति पाने के लिए ईश्वर के शरण में जाता है और अपनी हर समस्या को अपने आराध्य के सामने बैठ कर उन्हे बताता है और अपने नए दिन की शुरुआत करता है | इसी तरह हर व्यक्ति की आस्था कहीं न कहीं जुड़ी होती है जैसे कोई आत्मध्यान करता है तो कोई अपने ईश्वर के सम्मुख बैठकर आरती या मंत्र उच्चारण करके अपने कष्टों का निवारण करता है | इसी तरह बजरंगबली के भक्तों की उनमें बेहद आस्था है | यूँ तो हनुमान हर दुःख का निवारण करते हैं लेकिन पौराणिक कथाओं के अनुसार अगर व्यक्ति किसी रोग से ग्रस्त है ऐसे में वो हनुमान जी को स्मरण करता है तो उसे निश्चित ही फल प्राप्त होता है | खुद तुलसीदास हनुमान चालीसा में इस बात को लिख चुके हैं | हनुमान चालीसा की एक पंक्ति हैं जिसमें कहा गया है कि ‘नासे रोग हरे सब पीरा, जपत निरंतर हनुमत बीरा’। इसी तरह हनुमान बाहुक के लिए भी कहा जाता है कि इसका पाठ करने पर निश्चित ही रोग और कष्ट दूर होते हैं। तो जानिए क्या है हनुमान बाहुक और इसे किसने लिखा था इसके पीछे की सम्पूर्ण कथा –
गोस्वामी तुलसीदास जी ने कैसे किया हनुमान बाहुक की रचना
संत बताते है कि गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा हनुमान बाहुक की रचना की गई थी और ये तो हम सभी जानते हैं लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ जिससे गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा इसकी रचना करने का ख्याल आया | इस विषय में संत बताते है कि गोस्वामी तुलसी दास ने हनुमान बाहुक की रचना उस समय में की थी जब वो स्वयं रोगों से पीड़ित थे | उनके शरीर में अकड़न होने लगी थी और वात रोग के कारण वो बहुत परेशान होने लगे थे | उन्होंने अपने कष्टों में भगवान राम और हनुमान जी का नाम लेना शुरू किया | जिससे हनुमन जी प्रकट हो गए | जिसके बाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने उनसे किसी ऐसे श्लोक की रचना करने का आग्रह किया जिससे सभी शारीरिक कष्टों से छुटकारा मिल सके | तब हनुमान जी द्वारा बताए गए श्लोक का गोस्वामी तुलसीदास जी ने जप किया और देखते ही देखते वो स्वस्थ हो गए | जिसका जप गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा किया गया था वो हनुमान बाहुक ही था | स्वस्थ होने के बाद उन्होंने हनुमान जी द्वारा बताए गए श्लोक से हनुमान बाहुक की रचना की |
हनुमान बाहुक करने का नियम
हनुमान बाहुक एक ऐसा महामंत्र माना जाता है जिससे आपको मानसिक और शारीरिक तौर पर शान्ति और स्वस्थता प्राप्त होती है। कहा जाता है हनुमान बाहुक के 44 दोहों का पाठ करने वाले इंसान का सभी कष्ट दूर हो जाते है | मान्यता के अनुसार 21 दिनों तक लगातार एक ही मुहर्त पर हनुमान बाहुक का पाठ करने से पहले बजरंग बलि के समक्ष एक लोटे में पानी भर कर रखें फिर उसमें तुलसी का पत्ता डाल दें और पाठ करने के बाद पानी को ग्रहण कर लें। ऐसा करने से आप पाएंगे कि आपमें नकारात्मकता ख़त्म होने लगेगी और किसी भी रोग का आधार नकारात्मकता होती है जब ये ख़त्म होगी और सकारात्मकता बढ़ेगी तो अपने आप शरीर में कुछ अच्छे बदलाव होंगे |
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