हमारे धार्मिक ग्रंथों एक ग्रंथ है गणेश पुराण जिसमें रचित एक कथा के अनुसार खुद गणेश भगवान ने शमी पत्र एवं मन्दार को वरदान दिया है |

Image Credit - Google.co.in

कालांतर में मालवा नामक स्थान पर औरव नाम एक विद्वान ब्राह्मण हुए  जिनके पुत्री का नाम शमी था | जब वह सात साल की हुई तो तो ऋषि औरव ने 

Image Credit - Google.co.in

अपनी पुत्री का विवाह धौम्य ऋषि के पुत्र मन्दार के साथ करवा दिया |  जिसके बाद मन्दार शिक्षा पूरी करने के लिए आश्रम चला गया |

Image Credit - Google.co.in

मन्दार के शिक्षा पूर्ण होते ही वो अपने ससुराल गया और शमी को विदा कराकर, पुन: शौनक के आश्रम की ओर वापस चल दिया | 

Image Credit - Google.co.in

शौनक के आश्रम के रास्ते में एक महान तपस्वी ऋषि भृशुण्डी का आश्रम था  | जिन्हे गणेश भगवान ने खुद ही के तरह ये वरदान दिया था कि 

Image Credit - Google.co.in

ऋषि भृशुण्डी भी अपने कपाल से सूंढ़ निकाल सकते थे | शमी और मन्दार ऋषि भृशुण्डी के आश्रम के पास पहुंचे तो ऋषि भृशुण्डी को सूंढ़ निकाले देख कर उन दोनों को हंसी आ गई | 

Image Credit - Google.co.in

इस पर ऋषि भृशुण्डी क्रोधित होकर और श्राप दे दिया कि – तुम दोनों वृक्ष बन जाओ, वो भी ऐसे वृक्ष जिनके पास पशु-पक्षी भी न आए | और ऐसा ही हुआ  |

Image Credit - Google.co.in

काफी समय बीत गया जब शमी और मन्दार ऋषि शौनक के आश्रम नहीं पहुंचे तो ऋषि शौनक उन्हे ढूँढते ढूँढते ऋषि भृशुण्डी के आश्रम पर पहुँच गए  | 

Image Credit - Google.co.in

वहाँ पहुँच कर ऋषि भृशुण्डी द्वारा उन्हे सारी घटना की जानकारी हुई | तो उन्होंने उन दोनों को क्षमा करने का आग्रह किया तो ऋषि भृशुण्डी द्वारा इसमे असमर्थता व्यक्त की |

Image Credit - Google.co.in

तब उन्होंने तपस्या करके भगवान गणेश को प्रसन्न किया तब भगवान गणेश से उन्होंने आग्रह किया  कि शमी एवं मन्दार की श्राप मुक्त कर दे | जिसपर भगवान गणेश ने उन 

Image Credit - Google.co.in

उन दोनों को वरदान दिया कि ये दोनों वृक्ष तीनों लोको में पूजनीय होंगे | और शिव जी तथा स्वयं गणपती की पूजा बिना शमी एवं मन्दार के पूरी नही  मानी जाएगी |

Image Credit - Google.co.in