तिरुपति बाला जी में बाल दान करने के पीछे का अद्भुत रहस्य
तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल दान की परंपरा सदियों पुरानी है और इसे विशेष धार्मिक मान्यता प्राप्त है। इस अनोखी परंपरा के पीछे एक महत्वपूर्ण कथा और मान्यता जुड़ी है, जो भक्तों के श्रद्धाभाव का प्रतीक है। आइए, इस कथा और परंपरा के पीछे के कारण को विस्तार से जानते हैं।
1. नीला देवी का त्याग
इस परंपरा की कथा भगवान विष्णु से संबंधित है, जिन्होंने श्रीनिवास का रूप धारण कर तिरुमला पर्वत पर निवास किया था। एक दिन भगवान श्रीनिवास ने स्वयं को घायल कर लिया था, जिससे उनके सिर के बालों का एक हिस्सा नष्ट हो गया। इस घटना को देखकर गंधर्व कन्या नीला देवी ने भगवान श्रीनिवास के लिए अपने सुंदर लंबे बालों को त्याग दिया और उन्हें भगवान के सिर पर स्थापित कर दिया। इस त्याग से प्रसन्न होकर भगवान ने आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी भक्त उनके चरणों में अपने बाल अर्पित करेगा, उसकी सभी मनोकामनाएँ पूरी होंगी और उसका हर दुख दूर होगा।
2. आत्मसमर्पण और त्याग का प्रतीक
बाल दान का अर्थ केवल अपने बालों को काटकर भगवान के चरणों में अर्पित करना नहीं है, बल्कि यह अपने अहंकार और बाहरी सौंदर्य का त्याग है। इस परंपरा के अनुसार, बाल अपने सौंदर्य और बाहरी आकर्षण का प्रतीक होते हैं, और उन्हें त्यागने का अर्थ है भगवान के प्रति अपनी समर्पण और विनम्रता को व्यक्त करना। भक्त यह मानते हैं कि भगवान को बाल अर्पित करने से उनके जीवन में आने वाले संकट और बाधाएँ दूर हो जाती हैं।
3. धार्मिक महत्व और आर्थिक योगदान
तिरुपति बालाजी मंदिर में हर वर्ष लगभग 4 करोड़ से अधिक भक्त अपने बाल अर्पित करते हैं। यहाँ के पुजारी इन बालों को इकट्ठा करते हैं, धोते हैं, और साफ करते हैं। बाद में इन बालों को विश्व बाजार में ऊंचे दामों पर बेचा जाता है, जिससे मंदिर को आर्थिक लाभ होता है। इस धन का उपयोग धर्मार्थ कार्यों, जैसे कि शिक्षा, चिकित्सा, और भोजन वितरण में किया जाता है।
4. भक्तों की श्रद्धा और विश्वास
भक्तों का मानना है कि बाल दान करने से भगवान बालाजी उनकी सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं। इस परंपरा का पालन करते हुए वे तिरुपति में अपने बाल अर्पित करते हैं और अपनी समस्याओं से मुक्ति पाने की कामना करते हैं। इस प्रकार यह परंपरा भक्तों की अटूट आस्था का प्रतीक है, जिसमें वे अपने तन, मन और धन को भगवान के चरणों में अर्पित करते हैं।
निष्कर्ष
तिरुपति बालाजी मंदिर में बाल दान की परंपरा धार्मिक आस्था, त्याग, और आत्मसमर्पण का प्रतीक है। यह परंपरा न केवल आर्थिक रूप से मंदिर को समृद्ध बनाती है, बल्कि भक्तों के विश्वास और भगवान बालाजी के प्रति उनके श्रद्धाभाव को भी सशक्त बनाती है।