भक्त के लिए भगवान ने घुमा दिया अपने मंदिर का मुख ?? जब आपका अपने आराध्य के प्रति प्रेम अत्यंत गहरा और आपके भाव सुदृढ़ हो जाते तो परमात्मा खुद आपको स्वीकार कर लेता है | ऐसे ही एक संत हुए जिनका नाम था संत नामदेव जी महराज | इससे पहले भी हमारे द्वारा संत नाम देव जी के बारे में कथा लिखी गई है – संत श्री नामदेव जी ( लिंक पर क्लिक कर ये भावपूर्ण कथा भी अवश्य पढे ) | संत नामदेव जी महराज भगवान विट्ठल के परम भक्त थे और भगवान विट्ठल ठाकुर जी को भी नामदेव जी अत्यंत पसंद थे | संत नामदेव जी महराज और ठाकुर जी का प्रेम अ था की जब कभी नामदेव जी प्रभु को याद करते प्रभु हमेशा उनके समक्ष आ जाते थे |
सब लोगो ने मिलकर किया श्री नामदेव जी का अपमान
संत बताते है कि एक बार की बात है संत नामदेव जी महराज ठाकुर जी के दर्शन के लिए मंदिर गए | जब मंदिर के बाहर नामदेव जी अपनी पादुका निकाल रहे थे तो उन्होंने देखा कि मंदिर में तो बहुत भीड़ लगी है तो जैसे ही नामदेव जी ने पादुका निकाल कर मंदिर की ओर चलते है तो वो बार बार मुड़ मुड़कर अपनी पादुका देख रहे थे और सोच रहे थे कि कहीं कोई मेरी पादुका ले तो नहीं जाएगा | ऐसे कई बार हुआ जिससे नामदेव जी एकाग्र होकर ठाकुर जी के दर्शन नहीं कर पा रहे थे |
नाम देव जी मंदिर से बाहर आ गए और उनके मन में ख्याल आया कि इस पादुका के चलते वे ठाकुर जी के दर्शन नहीं कर पा रहे है तो नामदेव जी ने इधर उधर नजरे घुमाई और देखा कि कहीं कोई उन्हे देख तो नहीं रहा है और फिर उन्होंने एक कपड़ा बिछाया और अपनी पादुका को उसमे रखा और पोटली बनाकर अपने कमर पर बांध ली और बोले अब ना होगी दुविधा अपने ठाकुर जी के दर्शन करने में | नामदेव जी फिर से मंदिर में गए इस बार एकाग्र होकर ठाकुर जी दर्शन किए अब नामदेव जी मंदिर में ठाकुर जी पद सुनाने ही वाले थे कि वही खड़े किसी भक्त की नजर ठाकुर जी की पोटली पर पड़ गई और वह चिल्लाने लगा ये देखो ये चप्पल लेके मंदिर के भीतर आ गया है |
ये बात सुन नामदेव जी के पास भीड़ इकट्ठा हो गई सभी के साथ नामदेव जी बहस हो गई और उसी में बात इतनी बढ़ गई कि बात हाथा पाई पर आ गई | सभी ने मिलकर नामदेव जी को मंदिर के बाहर निकाल दिया और बोले तुम्हारा यहाँ प्रवेश वर्जित है | बाहर आकर श्री नामदेव जी महाराज एक कोने में खड़े हो गए और वहाँ खड़े होकर ठाकुर जी का खूब खूब धन्यवाद करने लगे और बोले बड़ी कृपया है प्रभु आपकी जो आपने मेरा अपमान करवाया | मुझे भी आपकी भक्ति के भाव से धीरे धीरे अहंकार होने लगा था | आपने अच्छा किया मेरा अपमान करवाकर मेरी बुद्धि स्थिर कर दिया |
भक्त के लिए भगवान ने घुमा दिया अपने मंदिर का मुख
श्री नामदेव महाराज जी मंदिर के पीछे विमुख बैठकर जैसे ही ठाकुर जी का पद गाना शुरू ही करने वाला थे | संत बताते है कि उनके मुख से पहला शब्द निकला ही था कि ठाकुर जी ने नेत्र अपने भक्त के सृजल हो गए और सोचने लगे कि मेरा भक्त नामदेव इस भाव से पादुका लेके ना आया था जैसा इन सभी ने मेरे भक्त के साथ व्यवहार किया | ठाकुर जी के आँखों से अश्रु बहने लगे वो खुद परेशान हो गए और मंदिर में विराज पंढरीनाथ भगवान ठाकुर जी इतने व्याकुल हो गए कि उन्होंने अपने मंदिर का मुख अपने भक्त श्री नामदेव जी तरफ घुमा दिया, मंदिर की दिशा ही बदल दिया उसका स्वरूप ही बदल दिया |
वहाँ उपस्थित सभी भक्त सोचने लगे कि सामने को पंढरीनाथ भगवान खड़े थे कहाँ गए हम तो मंदिर के द्वार पर थे पीछे कैसे आ गए | तब लोगों को कुछ समय बाद ज्ञात हुआ कि मंदिर का मुख खुद भगवान पंढरीनाथ अपने परम भक्त के लिए उस स्थान पर मोड़ दिया जहां उनका परम भक्त श्री संत नामदेव जी महाराज जी बैठे थे | ऐसे ठाकुर जी खुद ही जाके श्री नामदेव जी के सामने खड़े हों गए अपने भक्त से पद सुनने के लिए |
ऐसे ही हमारे ठाकुर जी उनका स्वरूप अपने भक्तों के लिए अलग ही है | अगर आप उन्हे दिल से प्रेम करते है तो ठाकुर जी भी आगे आकर अपने भक्त का मान रखते है | इस बात से पूरे मंदिर में भक्त और भगवान की जय जयकार होने लगी |
ये कथा आप सभी को कैसी लगी कमेन्ट में जरूर बताए और इसे शेयर भी करे जिससे लोगों को भी इससे ठाकुर जी की कृपया के बारे में जानने का सौभाग्य मिले |
जय श्री कृष्णा, भक्त और भगवान की जय |
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