ठाकुर जी की अद्भुत लीला : चित्रा सखी और यशोदा मैया की कथा
वृंदावन की भूमि पर जितनी मधुर लीलाएँ भगवान श्रीकृष्ण ने रची हैं, उनमें से प्रत्येक का अपना अलग ही महत्व है। ऐसी ही एक दिव्य कथा है – चित्रा सखी और यशोदा मैया की, जिसमें ठाकुर जी की बाल लीलाओं का अद्भुत प्रसंग छिपा है।
ठाकुर जी की चिंता और यशोदा मैया का समाधान
कथा कहती है कि एक दिन छोटे-से कान्हा रोते हुए यशोदा मैया के पास पहुँचे। मैया ने स्नेह से पूछा – “लाला, काहे को रो रहे हो?”
श्रीकृष्ण ने कहा – “मैया, मेरा एक सखा है जो पूरे दिन मेरा हाथ पकड़े रहता है। कभी मेरी नाक छूता है, कभी मेरे होठों को देखता है, और मुझसे कहता है कि मैं उसकी आँखों से दूर न जाऊँ। मैया, यह प्रेम मुझे बहुत अच्छा भी लगता है और कभी-कभी परेशानी भी देता है।”
तब यशोदा मैया ने समाधान सुझाया – “लाला, मैं तुम्हारा सुंदर चित्र बनवा देती हूँ। इससे तुम्हारा सखा दिनभर तुम्हें देख सकेगा और तुम खेलते भी रह सकोगे।”
चित्रा सखी का आगमन
अब प्रश्न आया कि चित्र कौन बनाए? तभी एक सखी ने बताया कि बरसाने के चिकसौली गाँव में चित्रा सखी रहती हैं। वे महान तपस्विनी थीं और सरस्वती माता से वरदान प्राप्त था कि वे किसी को देख लें तो उसका हूबहू चित्र बना सकती हैं।
यशोदा मैया ने उन्हें बुलवाया। चित्रा सखी पहले तो संकोच में रहीं, पर जब ठाकुर जी के रूप का वर्णन सुना तो वे स्वयं उनके दर्शन करने को आतुर हो गईं।
प्रथम दर्शन और दिव्य लीला
जब चित्रा सखी नंद भवन पहुँचीं तो ठाकुर जी ने पर्दे के पीछे से उनकी परीक्षा ली। कभी वस्त्र धारण कर, कभी बिना वस्त्र के, कभी आभूषण पहनकर – वे अलग-अलग रूप में प्रकट हुए। चित्रा सखी उनके प्रत्येक रूप को देखकर चकित रह गईं।
उनकी आँखों में अब केवल श्रीकृष्ण ही बस गए। वे जहाँ देखतीं, कान्हा ही दिखते – वृक्षों पर बैठे, गायों के संग खेलते, सरोवर में तैरते, पर्वतों पर विहार करते।
चित्र का निर्माण
चित्रा सखी ने अंततः अपने हृदय में बसे उसी श्यामसुंदर को चित्रित किया। जब उन्होंने चित्र यशोदा मैया को सौंपा तो ऐसा लगा मानो स्वयं श्रीकृष्ण उस चित्र में प्रकट हो गए हों।
यशोदा मैया ने प्रसन्न होकर उन्हें बहुमूल्य वस्त्र, आभूषण, रत्न देने चाहे। पर चित्रा सखी बोलीं – “मैया, मुझे कुछ नहीं चाहिए। बस अपना लाला मुझे दे दीजिए।”
यशोदा का ममत्व और चित्रा का वरदान
यह सुनकर यशोदा जी विचलित हो गईं। वे बोलीं – “सखी, मेरे प्राण मांग लो, पर मेरा लाला मत मांगो।”
तब स्वयं श्रीकृष्ण प्रकट होकर बोले –
“चित्रा सखी, मैं अपनी मैया को छोड़कर कहीं नहीं जा सकता। पर चिंता मत करो, जब-जब तुम मुझे स्मरण करोगी, मैं तुम्हें दर्शन दूँगा। और निकुंज की लीलाओं में मेरा और राधारानी का श्रृंगार करने का अधिकार तुम्हें ही है।”
यही कारण है कि आज भी चित्रा सखी को ठाकुर जी की श्रृंगार सेविका के रूप में पूजा जाता है।