भक्त धन्ना जाट की सम्पूर्ण कथा

भक्त धन्ना जाट की सम्पूर्ण कथा

ये कथा सुनकर पढ़कर मुझे एक बात का एहसास हुआ कि भगवान जिसपे महरबान होता है, उसे बंगलो, गाड़ी दे या न दे लेकिन भगवान उसे उसके बचपन से ही स्वीकार कर लेता है और मुझे यही कृपया सुनने का मिली धन्ना जाट की कथा में, कि भगवान ने बचपन से ही उसे स्वीकार कर रखा था | ऐसे ही बहुत ही सुंदर एक भजन की पंक्ति है, मेरे पिछले जन्म के अच्छे कर्म कान्हा जो तेरा द्वार मिल || ऐसी ही घनी कृपया थी भक्त धन्ना जाट पर और क्या भाव थे उस छोटे से बालक धन्ना जाट की आईए जानते है –

भक्त बालक धन्ना जाट जी –

संत बताते है कि जब धन्ना जाट जी बाल अवस्था में थे तो उनके घर में पूजा पाठ के लिए एक संत आए | संत जी श्री सालिक राम भगवान की सेवा करते थे | और जब भी संत श्री सालिक राम भगवान की सेवा करते थे, तो बालक धन्ना जाट जाकर वही उनके सम्मुख बैठ जाते थे और देखते थे कि संत महाराज कैसे उन्हे कभी दही से स्नान कराते तो कभी उन्हे दूध कभी पंचा अमृत कभी जल से से स्नान कराते फिर उन्हे चंदन, इतर लगाकर उनकी आरती करते और ये धन्ना जी को बड़ा आनंद आता था | धन्ना जी भले ही उस बालक धन्ना जी खेल के रूप में ही उसे देखते थे लेकिन वो बहुत खुश होते थे | पूजा सम्पन्न होने के बाद जब संत जाने लगे तो धन्ना जी रोने लगे और बोले आप चले जो लेकिन अपने ठाकुर जी को मुझे देकर जाओ उनकी सेवा में करूंगा | संत ने बहुत कोशिश किया लेकिन धन्ना जी इतना रोए इतना रोए की संत का निकालना मुश्किल हो गया | इसलिए संत उस दिन नहीं गए और रात में जब धन्ना जी सोये तो बाहर से जाकर एक काला पत्थर लेकर आ गए और उसपे ही इतर आदि लगाकर उसको ही सिंहासन पर बैठा दिया और अपने वाले श्री सालिक राम जी को नीचे बैठा दिया | सुबह हुई धन्ना जी फिर से जिद कर रहे थे तो संत जी उन्हे भीतर लेकर गए और बोले वो देखो सिंहासन पर ठाकुर जी बैठे है और नीचे मेरे ठाकुर जी बैठे है बताओ तुम्हें कौन से ठाकुर जी चाहिए तो धन्ना जी बोले मुझे तो सिंहासन वाले ही बड़े वाले तो संत बोले ठीक है तुम उनकी सेवा करो और मुझे जाने दो | तो संत अपने सलिक राम जी को लेकर चले गए |

dhanna jaat ki katha
dhanna jaat ki katha  

धन्ना जाट जी कैसे करते थे अपने ठाकुर जी की सेवा 

संत बताते है कि धन्ना जी बड़े ही भाव से ठाकुर जी की सेवा करते थे अगर रोली नहीं मिलती थी तो लाल ईट लाकर धन्ना जी उसी को घिस कर उसी का तिलक कर देते थे भोग लगाने के लिए पेड़ों से फल तोड़ लाते थे | कुछ समय बाद वही संत पास के घर में पूजा करने के किए आए तो धन्ना जी वहाँ पहुँच गए और संत को सब बताया कि महाराज जी में ऐसे ऐसे सेवा करता हूँ तो संत ने बोल तुम भोग नहीं लगाते हो क्या ? धन्ना जी- भोग ? संत ने बोला तुम्हें भूख लगती है खाना पाते हो न तो उन्हे भी तो खाना खिलाओ लेकिन पर्दा लगा देना | अब क्या धन्ना जी घर आए माँ से अच्छा अच्छा खाना बनवाया खीर, कड़ी, रोती, और सब थाली में सजाकर ले जाकर ठाकुर जी के सामने रख दिया | अब बार बार पर्दा हटाकर देख रहे है ठाकुर जी तो खाए ही नहीं रहे तो बोल ठाकुर जी खा लो जल्दी से ठंडा हो जाएगा भोग |  ऐसे काफी समय हो गया ठाकुर जी ने नहीं खाया तो धन्ना जी वही लेट गए और बोले ठीक है नहीं खाओ मैं भी नहीं खाऊँगा मैं भी भूखा ही रहूँगा |

भक्त धन्ना जाट

छोटे से बालक के हट के आगे प्रभु को खुद आना पड़ा 

इतना छोटा सा बालक जो ठाकुर जी से रूस कर पड़ा है नीचे उसके भाव देख कोई भी रीझ जाए और हमारे प्रभु तो भक्त वत्सल अपने भक्त के इस भाव से ठाकुर जी रीझ गए | कुछ समय बाद धन्ना जी को लेटे लेटे ही चटकारों की आवाज आने लगी | धन्ना जी उठे और पर्दा हटाकर देखा तो देखते है एक प्यारे से बालक रूप में प्रभु स्वयं बैठकर भोग पा रहे थे | धन्ना जी भक्त के भाव इतने प्रबल थे कि प्रभु अपने आप को रोक नहीं पाए बल्कि वो तो असली सालिक राम जी थे भी नहीं फिर भी |

स्वयं ठाकुर जी चराते थे भक्त धन्ना की गैया  

समय बीतता गया धन्ना जी थोड़े बड़े हो गए अब धन्ना जी घर की गायों को चराने ले जाते थे तो साथ में ही अपने ठाकुर जी को भी जेब में डाल कर ले जाते थे और वहाँ पहुँच कर ठाकुर जी को निकलते और इधर उधर देख कर बोलते ठाकुर जी कोई ना है प्रकट होये जो तो ठाकुर जी प्रकट हो जाते और अपने भक्त धन्ना जी के साथ खूब लीला करते थे | संत बताते है कि एक समय कि बात है एक बार धन्ना जी गैया चराने नहीं गए तो ठाकुर जी ने उनसे पूछा के बात है आज गैया चराने नहीं जाओगे के तो धन्ना जी बोले नहीं आज तो मेरी बुआ जी आई है तो आज नहीं जाऊंगा तो ठाकुर जी बोले एक काम करो गैया को गाँव के बाहर कर आओ और मुझे भी वही तक ले चलना आज गैया मैं चरा लाऊँगा धन्ना जी ने कहाँ ठीक है धन्ना जी गए ठाकुर जी को और गैया को गाँव के बाहर कर आए और तभी से धन्ना जी की गैया ठाकुर जी ही चराने लगे |

कुछ वर्ष बाद वो संत आए जिन्होंने उस बालक को वो पत्थर स्वरूप सालिक राम जी दिए थे | संत को देख धन्ना जी ने प्रणाम किया जय हो मेरे गुरुदेव और उनके चरण स्पर्श किए और बोले धन्य है आप जिन्होंने मुझे ऐसे ठाकुर जी की सेवा दी, मेरा तो जीवन उत्सव हो गया | तो संत बोले कहाँ है तुम्हारे ठाकुर जी सेवा पूजा कैसी चल रही है | तो भक्त धन्ना जी ने बोले ठाकुर जी तो अभी नहीं है ठाकुर जी तो गैया चराने गए है | संत बोले क्या बात कर रहे हो बालक तो धन्ना जी बोले अरे! महाराज जी सच में जब कभी भी मैं व्यस्त होता हूँ तो ठाकुर जी को गैयाओ के संग भेज देता हूँ | ठाकुर जी ही गैया चराने जाते है | संत मन मैं सोच रहे थे पहले ये छोटा था लेकिन अभी भी ये वैसी बच्चों वाली बात कर रहा है | संत बोले अरे लाला ऐसी बात न बोला करो तो धन्ना जाट ने बोला अरे महाराज सच में ठाकुर जी गैया चराने गए है यदि आप को विश्वास नहीं है तो शाम को चलो मेरे साथ | शाम को धन्ना और संत गए बाहर गाँव के बाहर तो देखा सामने से गैया आ रही तो धन्ना जी कूदने लगे देखो देखो ठाकुर जी आ रहे है गैया चराकर तो संत बोलते है अरे! लाला गैया तो दिख रही है लेकिन ठाकुर जी कहाँ है तो धन्ने जी बोले वही बीच में देखिए ना – साँवरे सलोने ऊंची धोती पहनी है, मोर मुकुट तिरछा सा धारण किया है कान में कुंडल कटाक्ष नेत्र चंदन की सूँगान्धी से आकक्षसित गायों के खुर से निकालने वाली धूल पसीने से जाकर चिपक रही है कितने सुंदर ठाकुर जी लग रहे है |

संत स्तंभित रह गए और बोले धन्ना ये सब बात तुमको कैसे पता ये तो भागवत के श्लोक का वर्णन है तुमने सुनी है क्या ? तो धन्ना जी बोले मैंने सुनी नहीं है मैं तो देख रहा हूँ सामने | संत पहचान गए कि निश्चित ही धन्ना को ठाकुर जी दिख रहे है उसके नेत्र सर्जल हो गए और मन ही मन सोचने लगे कि जीवन पर्यंत असली ठाकुर जी की सेवा की ठाकुर जी कभी प्रकट ना हुए धन्य है धन्ना तेरी भक्ति तूने सामान्य पत्थर की सेवा से ठाकुर जी को प्रकट कर दिया |
                        बोलो भक्त और भगवान की जय

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