भगवान श्रीकृष्ण की द्वारका नगरी का अद्भुत रहस्य: इतिहास, आस्था और खोज
परिचय: समुद्र के भीतर छुपा एक दिव्य रहस्य
साल 1983, अरब सागर के बीचोंबीच। गोताखोर समुद्र की गहराइयों में कुछ अद्भुत खोजने निकले थे। जब उन्होंने सतह से कई मील नीचे देखा, तो उनकी आंखें चकित रह गईं। समुद्र के भीतर एक भव्य नगरी, ऊंची-ऊंची दीवारों, महलों, मूर्तियों और सड़कों के साथ बसी हुई थी। यह कोई सामान्य नगरी नहीं थी, बल्कि यह वह दिव्य नगरी थी जिसका उल्लेख महाभारत में मिलता है। यह थी भगवान श्रीकृष्ण की पवित्र नगरी, द्वारका।
द्वारका नगरी का निर्माण: एक दिव्य वास्तुकला
मथुरा छोड़ने का निर्णय
कंस के वध के बाद, मथुरा पर जरासंध के 18 बार आक्रमण से परेशान होकर श्रीकृष्ण ने यादव वंश को सुरक्षित रखने के लिए एक नई नगरी बसाने का निर्णय लिया।
समुद्र देवता की कृपा
श्रीकृष्ण ने समुद्र देवता की आराधना की। प्रसन्न होकर समुद्र देवता ने उन्हें 12 योजन भूमि प्रदान की।
विश्वकर्मा का योगदान
भगवान विश्वकर्मा ने इस भूमि पर दिव्य नगरी का निर्माण किया।
- भव्य संरचना:
- सोने के महल।
- सुंदर तालाब और बगीचे।
- सुव्यवस्थित सड़कें और राजद्वार।
- श्रीकृष्ण का महल:
यह नगरी का सबसे आकर्षक और भव्य भाग था।
श्रीकृष्ण ने अपनी योग माया से यादवों को मथुरा से द्वारका पहुंचाया और इस नगरी को अपना निवास बनाया। ( इसे भी जरूर से जाने – मिला रेपा: तांत्रिक से संत बनने की अद्भुत यात्रा )
यदुवंश का नाश और द्वारका का डूबना
गांधारी का श्राप
महाभारत युद्ध के बाद, कौरवों की हार से दुखी गांधारी ने श्रीकृष्ण को श्राप दिया कि यदुवंश भी उसी तरह नष्ट होगा जैसे कौरवों का वंश हुआ।
श्रीकृष्ण का देह त्याग
- जरा शिकारी की घटना:
श्रीकृष्ण एक वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहे थे। जरा नामक शिकारी ने उनके पैर के अंगूठे को हिरण का मुख समझकर तीर चला दिया। - देवत्व को प्राप्त करना:
श्रीकृष्ण ने क्षमा भाव से अपनी लीला समाप्त की।
द्वारका का अंत
श्रीकृष्ण के देह त्याग के बाद, अर्जुन ने बचे हुए यादवों को हस्तिनापुर ले जाने की कोशिश की। जैसे ही वे नगर से निकले, द्वारका समुद्र की लहरों में समा गई।
समुद्र के भीतर द्वारका की खोज
समुद्री अवशेषों की प्राप्ति
1979 में डॉ. एस.आर. राव और उनकी टीम ने द्वारका की खोज शुरू की।
- खोज के महत्वपूर्ण तत्व:
- 560 मीटर लंबी दीवार।
- पत्थर के खंभे और सिंचाई प्रणाली।
- प्राचीन बर्तन और कलाकृतियां।
कार्बन डेटिंग के परिणाम
खोजे गए अवशेष 9000 साल पुराने पाए गए, जो द्वारका के महाभारतकालीन होने की पुष्टि करते हैं।
भारतीय नौसेना की भूमिका
गोताखोरों ने समुद्र की गहराइयों में द्वारका के अवशेषों की जांच की। ( इसे भी जाने – मां शाकंभरी के पावन शक्तिपीठ और उससे जुड़ी पौराणिक कथा )
द्वारका का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
चार धामों में स्थान
द्वारका हिंदू धर्म के चार पवित्र धामों में से एक है।
द्वारकाधीश मंदिर
आज यह मंदिर भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रतीक है। लाखों श्रद्धालु हर साल यहां दर्शन के लिए आते हैं।
द्वारका: इतिहास, आस्था और विज्ञान का संगम
द्वारका केवल एक पुरातात्विक स्थल नहीं, बल्कि हमारी आस्था और इतिहास का प्रतीक है। यह नगरी भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का प्रमाण है और प्राचीन भारतीय सभ्यता की अद्भुत क्षमताओं को दर्शाती है।
निष्कर्ष: एक सीख और प्रेरणा
द्वारका की कहानी हमें यह सिखाती है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति और सभ्यता में अद्भुत ज्ञान और तकनीक थी। श्रीकृष्ण का जीवन और उनकी नगरी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।