गोवर्धन डाकू और श्री कृष्ण की अद्भुत कथा: जब चोर भक्त बन गया
परिचय
यह कथा न केवल भक्ति और श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भगवान अपने भक्तों को अपनाने में तनिक भी विलंब नहीं करते, चाहे वे किसी भी उद्देश्य से उनके पास आए हों। गोवर्धन डाकू, जो एक कुख्यात चोर था, वह श्री कृष्ण के आभूषणों को लूटने की मंशा से निकला था, लेकिन अंत में स्वयं ही भगवान की भक्ति में लीन होकर उनका अनन्य भक्त बन गया। इस कथा को विस्तार से समझने के लिए आइए, इस अद्भुत यात्रा को चरणबद्ध रूप से जानते हैं।
1. गोवर्धन डाकू: एक भयानक लुटेरा
गोवर्धन डाकू अपने समय का सबसे कुख्यात चोर था। उसने अनगिनत यात्रियों, व्यापारियों, और राहगीरों को लूटा था। उसका ठिकाना घने जंगलों में था, जहाँ से वह अपने गिरोह के साथ यात्रियों को घेरकर उनका धन-दौलत छीन लेता था। वह निर्दयी था, उसकी दया और करुणा जैसी भावनाओं से कोई पहचान नहीं थी।
एक दिन, जब उसने राजा के विशेष दूतों को लूटने की कोशिश की, तो राजकर्मचारियों को उसके बारे में पता चल गया और उन्होंने उसे पकड़ने के लिए अभियान चलाया। गोवर्धन डाकू समझ गया कि अब उसे भागना होगा, वरना उसकी मृत्यु निश्चित थी।
2. कथा के पंडाल में प्रवेश: संयोग या ईश्वरीय योजना?
भागते-भागते वह एक गाँव में पहुँचा, जहाँ संध्या के समय भागवत कथा का आयोजन हो रहा था। हजारों की संख्या में भक्त वहाँ बैठे कथा सुन रहे थे। पंडाल के पास पहुँचकर उसने सोचा, “यहाँ कोई मुझे ढूँढने नहीं आएगा। कौन सोचेगा कि एक खूँखार चोर सत्संग में आएगा?”
राजकर्मचारी भी उसके पीछे-पीछे वहाँ तक पहुँचे, लेकिन उन्होंने यह मान लिया कि कोई चोर इस तरह के धार्मिक आयोजन में भाग नहीं ले सकता। वे निराश होकर वापस चले गए।
3. भागवत कथा की बातें जिसने डाकू का जीवन बदल दिया
पंडाल में बैठकर डाकू कथा सुनने लगा। कथा वाचक श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वर्णन कर रहे थे।
“श्याम सुंदर रोज़ सोने की छड़ी, सोने का मुकुट और स्वर्ण आभूषण पहनकर गाएँ चराने जाते हैं।”
जैसे ही डाकू ने यह सुना, उसके कान खड़े हो गए। वह सोचने लगा—“एक बालक, जो अकेले वन में गाय चराने जाता है और इतना सोना पहनता है? उसे लूटना तो बहुत आसान होगा!”
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4. कथा प्रवक्ता से संवाद: श्री कृष्ण तक पहुँचने की जिज्ञासा
कथा समाप्त होने के बाद, गोवर्धन डाकू कथा प्रवक्ता के पास गया और पूछा—
“जिस बालक की आपने कथा सुनाई, वह कहाँ मिलेगा?”
प्रवक्ता समझ गए कि इस व्यक्ति पर भगवान की विशेष कृपा होने वाली है। उन्होंने उत्तर दिया—
“बेटा, वह तो बहुत दूर वृंदावन-मथुरा में रहता है। उसके पिता का नाम नंदबाबा है।”
डाकू ने उतावलेपन से कहा—
“मुझे उसका पूरा पता बताओ! मैंने अब तक अनेकों को लूटा है, यह तो बस एक छोटा-सा बालक है।”
प्रवक्ता ने मुस्कुराते हुए कहा—
“अरे, वह चोरों का भी सरदार है! तुम उसे इतनी आसानी से नहीं लूट पाओगे।”
डाकू क्रोधित हो गया और बोला—
“मैं संकल्प लेता हूँ, जब तक उस बालक को लूट नहीं लेता, तब तक पानी की एक बूँद भी नहीं पीऊँगा!”
कथा प्रवक्ता ने मन ही मन सोचा—“अब इस डाकू का उद्धार निश्चित है!”
5. कठिन यात्रा: जब चोर श्री कृष्ण के पीछे चल पड़ा
डाकू अपने वचन का बहुत पक्का था। वह बिना एक बूँद पानी पिए वृंदावन की ओर निकल पड़ा।
रास्ते की कठिनाइयाँ:
- जंगलों से गुजरते समय उसे कई पशुओं का सामना करना पड़ा।
- भोजन और पानी के बिना उसकी शक्ति घट रही थी।
- लेकिन उसकी जिद्द थी कि उसे वह बालक अवश्य मिलेगा।
6. वृंदावन में श्री कृष्ण की खोज
जब वह वृंदावन पहुँचा, तो उसने वहाँ के ग्वाल बालों से पूछा—
“श्याम सुंदर कहाँ हैं, जो सोने की छड़ी लेकर, सोने का मुकुट पहनकर गाएँ चराने आते हैं?”
ग्वालबाल हँस पड़े और बोले—
“यह तो पहले के युग की बात है! अब तो यह बस एक कथा है!”
डाकू ने कहा—“नहीं! यह एकदम ताज़ा ख़बर है, मैंने खुद सुनी है।”
वह निराश हो गया, लेकिन उसने श्री कृष्ण को पुकारना शुरू किया—“श्याम सुंदर! कहाँ हो तुम?”
7. श्री कृष्ण का प्रकट होना
अब वृंदावन में कोई श्याम सुंदर को पुकारे और वे प्रकट न हों, ऐसा कैसे हो सकता है?
डाकू के सामने अचानक गाएँ और ग्वालबाल आ गए। और उन्हीं के बीच वही नन्हा सुंदर बालक खड़ा था—श्याम सुंदर!
उन्होंने वही आभूषण पहने थे, जिनके बारे में उसने कथा में सुना था।
8. डाकू और श्री कृष्ण के बीच संवाद
डाकू ने कहा—“अपने सारे आभूषण उतारकर मुझे दे दो!”
ठाकुर जी मुस्कुराए और बोले—“ये आभूषण मेरे हैं, मैं तुम्हें क्यों दूँ?”
डाकू ने गर्व से कहा—“मेरा नाम सुनते ही अच्छे-अच्छे काँपने लगते हैं! जानता है तू, मैं कौन हूँ?”
ठाकुर जी ने भोलेपन से पूछा—“मुझे नहीं पता, तेरा नाम क्या है?”
डाकू बोला—“मेरा नाम गोवर्धन डाकू है!”
कृष्ण मुस्कुराए और बोले—“तेरा तो बस नाम गोवर्धन है, पर मैं तो गोवर्धनधारी हूँ!”
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9. हृदय परिवर्तन: जब चोर भक्त बन गया
डाकू ने कहा—“मैं तुम्हारे लिए माखन और मिश्री लाया हूँ।”
ठाकुर जी प्रसन्न हो गए और बोले—“अच्छा, तूने मेरे लिए लाया है? पहले तू इसे खुद खा ले!”
डाकू ने जैसे ही प्रसाद खाया, उसके भीतर परिवर्तन होने लगा। उसका कठोर हृदय पिघलने लगा।
वह रोने लगा—“हे प्रभु! मैं आपको छोड़कर कुछ नहीं ले सकता!”
10. मोक्ष की प्राप्ति
श्री कृष्ण ने कहा—“यह सब आभूषण ले जा!”
लेकिन डाकू ने हाथ जोड़कर कहा—“अब इनकी कोई आवश्यकता नहीं! अब मैं केवल आपकी शरण में हूँ!”
उसी क्षण, डाकू की मृत्यु हो गई, और वह ठाकुर जी का अनन्य सखा बन गया।
निष्कर्ष
यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति में असंभव कुछ भी नहीं। जो भी श्री कृष्ण को सच्चे दिल से पुकारता है, वे उसे अवश्य अपनाते हैं।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. गोवर्धन डाकू कौन था?
गोवर्धन डाकू एक कुख्यात लुटेरा था, जो यात्रियों को लूटता था। लेकिन श्री कृष्ण के चमत्कार से उसका हृदय परिवर्तन हुआ और वह भगवान का भक्त बन गया।
2. गोवर्धन डाकू को श्री कृष्ण की कथा कैसे सुनने को मिली?
राजकर्मचारियों से बचते हुए वह एक भागवत कथा स्थल पर पहुँचा, जहाँ उसने श्री कृष्ण की लीला सुनी और उनसे मिलने की ठान ली।
3. गोवर्धन डाकू ने श्री कृष्ण को कहाँ ढूँढा?
वह वृंदावन गया, जहाँ उसने ग्वालबालों से श्री कृष्ण का पता पूछा और अंततः भगवान स्वयं उसके सामने प्रकट हुए।
4. श्री कृष्ण ने गोवर्धन डाकू को क्या सिखाया?
कृष्ण ने उसे अहंकार त्यागकर सच्ची भक्ति का मार्ग अपनाने का संदेश दिया, जिससे वह एक महान भक्त बन गया।
5. इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान हर किसी को स्वीकार करते हैं, चाहे वह कितना भी पापी क्यों न हो। सच्चे हृदय से पुकारने पर वे अवश्य मिलते हैं।
🙏 “हरे कृष्ण! हरे कृष्ण! कृष्ण कृष्ण हरे हरे!” 🙏