Iss Jagah Per Hai Ramayan Kalin Patal Lok
पुराने हिंदू ग्रंथों की पौराणिक कथाओं में पाताल लोक का बार-बार जिक्र मिलता है, लेकिन सवाल उठता था कि क्या यह सिर्फ एक काल्पनिक जगह है या इसका कोई अस्तित्व भी है? रामायण की कथा बताती है कि पवनपुत्र हनुमान पाताल तक पहुंचे थे। हनुमान, भगवान राम के सबसे बड़े भक्त, ने अहिरावण के चंगुल से अपने ईष्ट देव को बचाने के लिए एक सुरंग से पाताल पहुंचे थे।
कथा कहती है कि पाताल लोक धरती के ठीक नीचे है। वहां तक पहुंचने के लिए 70 हजार योजन की गहराई पर जाना होगा। आज हम अपने देश में सुरंग खोदना चाहते हैं तो ये सुरंग मैक्सिको, ब्राजील और होंडुरास जैसे देशों तक पहुंचेगी। हाल ही में वैज्ञानिकों ने होंडुरास, मध्य अमेरिका में सियूदाद ब्लांका नामक एक गुम प्राचीन शहर की खोज की है। वैज्ञानिकों ने लाइडार (LIDER) प्रौद्योगिकी का उपयोग करके इस शहर की खोज की है।
बहुत से विद्वान इस शहर को पाताल लोक मानते हैं, जहां श्री राम भक्त हनुमान जी पहुंचे थे। दरअसल, इस विश्वास के लिए ठोस कारण हैं। पहला, अगर कोई सुरंग श्रीलंका या भारत से खोदी जाएगी तो सीधे यहीं निकलेगी। और दूसरी और पुख्ता वजह ये भी है कि सियुदाद ब्लांका में रामभक्त हनुमान के समान वानर देवता की मूर्तियां मिली हैं, जो हजारों साल पुरानी परतों में दफन हैं.
इतिहासकारों के अनुसार, प्राचीन शहर सियुदाद ब्लांका में एक विशालकाय वानर देवता की मूर्ति की पूजा की जाती थी। यही कारण से यह अनुमान लगाया जा रहा है रामायण में सियूदाद ब्लांका का जिक्र पाताल पुरी के रूप में तो नहीं है। हजारों साल पहले, सियूदाद ब्लांका पूर्वोत्तर होंडुरास के घने वर्षा जंगलों में मस्कीटिया नामक एक गुप्त शहर था। यह भी कहा जाता है कि इस प्राचीन शहर में हजारों साल पहले एक विकसित सभ्यता थी, जो अचानक से वक्त की गहराइयों में खो गई।
पुरानी खुदाई के कई अवशेषों से पता चलता है कि सियूदाद के लोग वानर देवता की पूजा करते थे। यहां सियूदाद के वानर देवता की घुटनों के बल बैठे चित्र को देखते ही हनुमान, राम की भक्ति का स्मरण होता है।
हिंदुस्तान में घुटनों पर बैठे बजरंग बली की मूर्ति वाले मंदिर बहुत हैं। हनुमान जी के एक हाथ में गदा, उनका लोकप्रिय हथियार है। प्राचीन शहर से मिली एक वानर-देवता की मूर्ति में भी गदा जैसा हथियार दिखाई देता है।
मध्य अमेरिका में एक प्राचीन शहर की खोज पर सवाल उठ रहे हैं क्योंकि रामायण की कथा में ऐसे संकेत मिलते हैं जो बताते हैं कि पाताल पुरी नामक शहर भारत या श्रीलंका की जमीन के नीचे था। रामायण के उस अध्याय में, जब मायावी अहिरावण राम और लक्ष्मण को हरण कर उन्हें अपने मायालोक पाताल पुरी ले जाता है, पाताल पुरी का जिक्र होता है।
रामायण में बताया गया है कि जब मायावी अहिरावण राम और लक्ष्मण को हरण कर उन्हें अपने मायालोक पाताल पुरी ले गया तो तो विभीषण जी ने हनुमान जी को बताया था की पाताल लोक वहां है जहां हम खड़े हैं उसके ठीक नीचे | और हनुमान जी को अहिरावण तक पहुंचने के लिए पातालपुरी के रक्षक मकरध्वज को परास्त करना पड़ा था जो ब्रह्मचारी हनुमान जी का ही पुत्र था।। दरअसल, मकरध्वज मत्स्यकन्या के गर्भ से जन्मे थे जोकि लंकादहन के बाद समुद्र में आग बुझाते हुए हनुमानजी के पसीने से गर्भवती हुई थी। रामायण की कहानी कहती है कि अहिरावण को मार डालने के बाद भगवान राम ने वानर की तरह दिखने वाले मकरध्वज को पातालपुरी का राजा बनाया, जिसे पातालवासी पूजने लगे।
Also Read- एक रात में भूतों ने बनाया ये शिव मंदिर, रात को यहाँ गलती से भी मत जाना
इस तरह हुई इस शहर की खोज
होंडुरास के गुप्त प्राचीन शहर के बारे में सबसे पहले ध्यान दिलाने वाले अमेरिकी वैज्ञानिक थियोडोर मोर्डे ने कहा कि स्थानीय लोगों ने उन्हें बताया कि स्थानीय लोग सिर्फ वानर देवता की पूजा करते थे। उस वानर देवता की कहानी मकरध्वज की कहानी से बहुत मिलती-जुलती है। लेकिन अभी तक प्राचीन शहर सियूदाद ब्लांका और रामायण का कोई प्रत्यक्ष संबंध नहीं मिला है।
लेकिन अमेरिकी वैज्ञानिकों की टीम ने उसे खोजने के लिए क्रांतिकारी तकनीक का उपयोग नहीं किया होता तो एक प्राचीन शहर अपने इतिहास के साथ जीवित है शायद ही ये सब ये दुनिया जान पाती । LIDAR नामक तकनीक ने जमीन के नीचे की तीन-आयामी मैपिंग का उपयोग करके प्राचीन शहर की खोज की। लंबे समय से मध्य अमेरिकी शहर होंडुरास में वानर देवता वाले एक प्राचीन शहर की खोज की जा रही है। होंडूरास का प्राचीन शहर, जहां वानर देवता बजरंग बली जैसे वानर की पूजा की जाती थी, पुराना है। होंडूरास पर राज करने वाले पश्चिमी भी इन कहानियों को जानते थे।
अमेरिकी पायलट ने पहले विश्वयुद्ध के बाद होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेष देखने की बात की, लेकिन 1940 में अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्डे ने इसके बारे में पूरी जानकारी दी। उसने एक अमेरिकी मैगजीन में लिखा कि एक प्राचीन शहर में वानर की पूजा की जाती थी, लेकिन शहर की जगह नहीं बताई। थियोडोर बाद में रहस्यमय रूप से मर गया, जिससे प्राचीन शहर की खोज पूरी हो गई।
लाइडार तकनीक से इसके करीब 70 साल बाद, होंडुरास के घने जंगलों में मस्कीटिया नामक स्थान पर प्राचीन शहर के निशान मिलने शुरू हुए हैं। अमेरिका की ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी और नेशनल सेंटर फॉर एयरबोर्न लेजर मैपिंग ने आधुनिक वैज्ञानिक उपकरणों की मदद से होंडुरास के जंगलों में पुराने शहर के निशानों को खोजा है।
ह्यूस्टन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने लाइडार तकनीक का उपयोग करके होंडुरास के जंगलों से उड़ते हुए अरबों लेजर तरंगें जमीन पर फेंक दीं। इससे जंगल की जमीन का 3-डी डिजिटल नक्शा बनाया गया। 3-डी नक्शे से प्राप्त चित्रों से पता चला कि प्राचीन शहर जमीन के नीचे है। वैज्ञानिकों ने पाया कि जंगलों की जमीन की गहराइयों में बहुत कुछ मानव निर्मित है।
लाइडार तकनीक ने जंगल के नीचे एक प्राचीन शहर के निशान पाए हैं, लेकिन सियूदाद ब्लांका, जो किवदंतियों में जिक्र होता है, शायद कभी पता नहीं चला।
1940 में एसएमएस (स्कूल ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज), लखनऊ के निदेशक और वैदिक विज्ञान केन्द्र के प्रभारी प्रो. डॉ. भरत राज सिंह ने इस जानकारी की पुष्टि की है। उनका कहना था कि पहले विश्वयुद्ध के बाद एक अमेरिकी पायलट ने होंडुरास के जंगलों में कुछ अवशेषों को देखा था। 1940 में, अमेरिकी खोजकर्ता थियोडोर मोर्ड ने इसकी पहली सूचना दी थी।
अमेरिकी इतिहासकार मानते हैं कि हजारों साल पहले पूर्वोत्तर होंडुरास के घने जंगलों के बीच मस्कीटिया नामक स्थान पर सियूदाद ब्लांका नामक एक गुप्त शहर था। वहाँ के लोगों ने एक विशालकाय वानर की मूर्ति की पूजा करते थे। प्रो. भरत ने बताया कि बंगाली रामायण में पाताल लोक की दूरी 1000 योजन (लगभग 12,800 किलोमीटर) बताई गई है।