जगन्नाथ पुरी मंदिर में विराजमान है हमारे जगत के नाथ प्रभु जगन्नाथ | बहुत से लोगो के लिए वो मंदिर हो सकता है लेकिन जो मेरे मालिक के परम भक्त है उनके लिए ये मंदिर महज मंदिर नहीं बैकुंठ का द्वार है, प्रभु जगन्नाथ भाव है, प्रेम है या यू कहे सब कुछ है | वैसे तो ये अहोभाग्य है हमारे की हमारा जन्म भारत की धरा पर हुआ | हमारे देश भारत में ऐसे कई मंदिर है जो अपने आप में एक रहस्य है और उसी में एक मंदिर है, पुरी ओडिशा का जगन्नाथ मंदिर ये मंदिर अपने अन्दर तमाम रहस्यों को समेटे हुए है | प्रतिवर्ष इस मन्दिर में भगवान जगन्नाथ प्रभु की भव्य रथ यात्रा निकाली जाती है | ये परम्परा अनिष्ट काल से चली आ रही है | भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा के समय रथ एक मुसलमान भक्त सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए जरूर रुकता है | आईये जानते है जगन्नाथ पुरी मंदिर से जुडी कुछ हैरान परेशान कर देने वाली चमत्कारिक एवं रहस्यमयी बातें |
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भगवान जगन्नाथ का ऐसा चमत्कार
प्रभु जगन्नाथ के मंदिर में आज भी ऐसे चमत्कार होते है, जिनका जवाब किसी के पास नहीं है | पुराणों के अनुसार प्रभु जगन्नाथ का मन्दिर किसी भी बैकुंठ से कम नहीं माना गया है , क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण आज भी इस मन्दिर में सदेह उपस्थित माने जाते है | इसके पीछे भी पुराणिक कारण है | प्राचीनकाल से भगवान जगन्नाथ जी सबर जनजाति के आराध्य देव है | और इसलिए ही इस मंदिर में भगवान विष्णु का रूप अन्य मंदिरों की अपेक्षा थोडा अलग दिखाई देता है |
हवा की दिशा बदल जाती है
ओडिशा के पुरी जिले में जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 10वी शताब्दी में हुआ था | जगन्नाथ मंदिर चार धामों एक धाम है |
मन्दिर के शिखर पर लहराता शिखर ध्वज हमेशा हवा के विपरीत दिशा की ओर ही लहराता है | वहाँ के स्थानीय लोगो एवं मंदिर पुजारियों द्वारा ऐसा बताया जाता है कि यहाँ दिन के समय हवा समुंद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम होते ही ये हवाये जमीन से समुंद्र की ओर चलने लगती है | हवाओं के विपरीत होने के बाद भी मंदिर के शिखर पर लहराता ध्वज उलटे ही दिशा में लहराता रहता है | जो अपने आप में ही बहुत बड़ा चमत्कार और रहस्य है | इसके साथ ही मन्दिर के शिखर पर लगे सुदर्शन चक्र के दर्शन आप मंदिर परिसर में कही भी खड़े होकर कर सकते है | परिसर में कही से भी देखने से आपको चक्र आपको अपने सामने ही लगा हुआ दिखेगा |
मंदिर से कोई भूखा नहीं जाता
मंदिर से जुड़ी एक अद्भुत एवं रहस्यमयी बात ये भी है कि मंदिर के शिखर के मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय जमीन पर नहीं पड़ती है | और ये अपने आप में बहुत बड़ा रहस्य है | इसके साथ ही इस मंदिर में प्रतिदिन चाहे कितने भी श्रद्धालु दर्शन के लिए आ जाए लेकिन मंदिर के भंडार में कभी प्रसाद की मात्रा कभी भी कम नहीं पड़ती है | प्रत्येक श्रद्धालु को यहाँ भोजन रूपी प्रसाद मिलता ही है | और इसका भंडार सालों साल के लिए यू ही भरा रहता है | वहाँ के सेवको द्वारा बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ की कृपा से यहाँ हजारों तो कभी लाखों श्रद्धालु भी आते है और सभी को भोजन रूपी प्रसाद भरपेट खिलाया जाता है और ये सेवा निरंतर पूरे दिन चलती रहती है | श्रद्धालुओं की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती-घटती रहती है लेकिन मंदिर के भंडारे में पकाये जाने वाले प्रसाद न तो कभी कम होती है और न ही कभी बचता है |
विचित्र तरीके से बनाया जाता है जगन्नाथ जी का प्रसाद तैयार
जगन्नाथ मंदिर में बनाया जाने वाला प्रसाद भी काफी अनोखे और विचित्र तरीके से बनाया जाता है | दरअसल प्रसाद बनाने के लिए सात बर्तन एक दूसरे के ऊपर रखे जाते है, फिर उन्हे ऐसे ही उठा कर लकड़ी के चूल्हे पर रखकर पकाया जाता है | परंतु पुजारियों द्वारा बताया जाता है कि इस प्रसाद बनाने की प्रक्रिया में सबसे ऊपर रखे पात्र का प्रसाद सबसे पहला पकता है | और इसी क्रम में एक के बाद एक सारे प्रसाद पकते जाते है | प्रभु जगन्नाथ की विशाल रसोई में 500 रसोइये काम करते है जो प्रभु जगन्नाथ पर चढने वाले महाप्रसाद को बनाते है और इन 500 रसोइये की मदद के लिए 300 सहयोगी रसोइये भी है मतलब कुल 800 लोग मिलकर महाप्रसाद तैयार करते है | यहाँ प्रसाद रूप में भक्तों को गोपाल भोग बाँटा जाता है |
समुद्र की आवाज नहीं सुनाई देती
इस मंदिर की एक और अनोखी बात है कि मंदिर के प्रांगण में जब तक आप रहेंगे आपको समुन्द्र के लहरो की आवाज स्पष्ट सुनाई देगी लेकिन देखते ही देखते जैसे ही आप मंदिर के गर्भ में प्रवेश करेंगे आपको समुन्द्र के लहरों की ध्वनि सुनाई देनी बंद हो जाएगी |
18 वर्षों के लिए बंद हो जाएगा जगन्नाथ पुरी मंदिर
विश्व के समस्त मंदिरों के ऊपर लगे ध्वज हर दिन नहीं बदला जाता है, लेकिनप्रभु जगन्नाथ का मंदिर पूरे विश्व में एकलौता मंदिर है जिस मंदिर के ऊपर लगा ध्वज हर दिन बदला जाता है | हर दिन मंदिर के पुजारी उस ऊंचे गुंबद पर चढ़ते है और वहाँ लगे ध्वज को बदलते है | जगन्नाथ मंदिर की एक बहुत ही मार्मिक मान्यता है कि अगर भूल से भी कभी एक भी दिन इस मंदिर का ध्वज को बदला न गया तो मंदिर 18 वर्षों के लिए बंद करना पड़ेगा |
स्वर्ण मंदिर से अधिक दान हुआ था यहां सोना
वहाँ के लोगों द्वारा बताया जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह ने अपने समय में जगन्नाथ मंदिर के लिए अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से भी अधिक स्वर्ण दान दिए थे | इसके अलावा महाराजा रणजीत सिंह ने अपने अंतिम दिनों में अपनी वसीयत में से दुनिया का बेशकीमती कोहिनूर हीरा इस मंदिर के लिए दान किया था लेकिन पंजाब पर अंग्रेजों का अधिकार हो जाने के कारण महाराजा रणजीत सिंह द्वारा दिए गए कोहिनूर हीरा जो जगन्नाथ जी के मुकुट में सजना था आज के समय में ब्रिटेन की महारानी के मुकुट की शोभा है |
जन्मोंत्सव स्नान यात्रा का भी काफी महत्व
आप सभी ने जगन्नाथ पुरी की रथ यात्रा के बारे में सुन और देखा होगा | ठीक इसी तरह भगवान जगन्नाथ को उनके जन्मोंत्सव के शुभ अवसर पर ज्येष्ठ पूर्णिमा के दिन गर्भजून से बाहर लाया जाता है | समस्त भक्तों के लिए ये बहुत ही महत्वपूर्ण उत्सव है | इस परम आनंदमयी उत्सव में भगवान जगन्नाथ जी, सुभद्रा और बालभद्र जी के साथ गर्भजून से बाहर लाकर उन्हे स्नान बेदी पर पूरे पारंपरिक और मंत्र उचारणों के साथ शुद्ध जल से भरे 108 घड़ों से स्नान करवाया जाता है | फिर भगवान जगन्नाथ जी, सुभद्रा और बालभद्र जी को उनके भक्तों से मिलने के लिए सजाया जाता है | निज मंदिर के पुजारियों द्वारा बताया गया है कि यह परंपरा राजा इंद्रद्युम्न के समय से चली आ रही है |