क्यों बदलना पड़ा जगन्नाथ प्रभु को अपना रूप गणेश जी की तरह ?

क्यों बदलना पड़ा जगन्नाथ प्रभु को अपना रूप गणेश जी की तरह ?

एक ऐसे भक्त जिनके भाव ने भगवान जगन्नाथ जी के स्वरूप को बदल दिया | संत जन उन भक्त के बारे में बताते हुए कहते है कि वो एक ऐसे भक्त थे जिनकी भक्ति बस अपने आराध्य गणपती के लिए ही थी उनके लिए तो किसी और को देखना भी पाप था | आईए जानते है उन परम भक्त के बारे में-

ये कथा 16 वीं शताब्दी की है | महाराष्ट्र के एक गाँव में गणपति भट्ट नाम के गणेश जी के एक परम भक्त रहते थे | वह दिन रात भगवान गणपति के भक्ति भाव में लगे रहते थे | एक बार उन्हे श्री जगन्नाथ पूरी के तीर्थ यात्रा पर जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ और वह पहुँच गए श्री जगन्नाथ पुरी | जब वह श्री जगन्नाथ पूरी पहुंचे तो वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि वहाँ कोई भी गणेश जी का मंदिर नहीं है |

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गणेश भक्त गणपति भट्ट-

जब गणपति भट्ट जी जगन्नाथ पूरी पहुंचे तो उन्होंने लोगों से पूछा कि यहाँ भगवान गणेश का मंदिर कहाँ है तो लोगों को उन्हे अवगत कराया कि प्रभु जी यहाँ तो कोई गणपती मंदिर नहीं है | गणपति भट्ट जी ने जैसे ही ये बात सुनी वो निराश हो गए | उनका मन विचलित हो उठा और मन ही मन भगवान गणपति से बोले हे प्रभु ये कैसी जगह भेज दिया है जहां आपका मंदिर ही नहीं है | मुझे आपके सिवा किसी की भक्ति प्रिय नहीं है मैं बस आपका ही दर्शन करना चाहता हूँ | गणपति भट्ट के मन में गणपति बप्पा के अटूट प्रेम था जहां किसी और के लिए उनके हृदय में जगह ही नहीं थी | वो इतने व्याकुल हो गए कि उन्होंने प्रभु जगन्नाथ प्रभु के न तो दर्शन किए और ना ही महाप्रसाद ग्रहण किया |

बहुत से आंतरिक विचारों के साथ गणपति भट्ट जी वही जगन्नाथ पूरी के तट के किनारे घूम रहे थे | मन ही मन बस भगवान गणपति से कह रहे थे हे प्रभु यहाँ आपका मंदिर नहीं है मई कैसे बिताऊ एक पल भी यहाँ पर | ये सारी लीला हमारे जगन्नाथ जी मंदिर में बैठे बैठे देख रहे थे तो उन्होंने सुभद्रा और बलराम जी से कहाँ देखो एक गणेश जी का परम भक्त आया है जो उनके अलावा किसी के दर्शन नहीं करता है | तो भगवान जगन्नाथ ने एक ब्राह्मण का भेष बदलकर पहुँच गए गणपति भट्ट के पास और उन्होंने उनके विचलित मन का कारण पूछा तब भक्त वत्सल गणपति भट्ट ने बताया कि मैं यहाँ अपने प्रभु के दर्शन करने के लिए आया था, लेकिन यहाँ आकर पता चला कि यहाँ तो उनका कोई मंदिर ही नहीं है | मैं खुद ही यहाँ एक गणेश मंदिर तराशुंगा भक्त की बात सुनकर वह ब्राह्मण देवता बड़े जोर से हसने लगे |

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और बड़े ही प्रेम भाव से उस भक्त गणपति भट्ट से कहाँ कि तुम जब गणपति दर्शन करने आए थे तो मंदिर जाके लौट क्यों आए ? एक बार अपने मन की बात मन की इच्छा वही मंदिर में खड़े होकर जगन्नाथ प्रभु को बोलते तो या फिर मंदिर में खड़े होकर भगवान गणेश को याद कर लेते | प्रभु जगन्नाथ भक्त के भाव प्रेम उसकी इच्छा सभी का सम्मान करते है, प्रभु जगन्नाथ भक्त की कामना से अपने स्वरूप को बदलकर भी दर्शन देते है | ( इसे भी पढ़े- मुस्लिम के मजार के पास क्यों रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा )

क्यों बदलना पड़ा जगन्नाथ प्रभु को अपना रूप गणेश जी की तरह ?

आपने आपने जगन्नाथ प्रभु के सम्मुख जाकर बप्पा का स्मरण क्यों नहीं किया और ये बात कहकर ब्राह्मण देवता वहाँ से चले गए | ब्राह्मण देवता की बात सुनकर गणपति भट्ट हैरान हो गए और सोच में पड़ गए कि प्रभु ये बात मेरे मन मैं क्यों नहीं आई | वे तुरंत भाग कर प्रभु जगन्नाथ धाम पहुंचे और उन्हे प्रणाम किया और उन्हे उनके इच्छानुसार भगवान जगन्नाथ जी ने गणपति के रूप में अपने भक्त गणपति भट्ट को दर्शन दिया | जब भगवान जगन्नाथ ने गणपति भट्ट को दर्शन दिए तो वो दिन ज्येष्ठ पूर्णिमा की थी जिसे भगवान जगन्नाथ जी के जन्मदिवस के रूप में भी जाना जाता है | इस दिन भगवान जगन्नाथ जी बहुत सारे घड़ों के जल से स्नान करवाया जाता है और आज भी भगवान जगन्नाथ जी का उस दिन उसी रूप में सिंगार होता है जैसा उन्होंने अपने भक्त गणपति भट्ट को दर्शन दिए थे | भगवान जगन्नाथ जी को गणेश भगवान के भाति ही सूढ़ लगाए जाते है और भव्य सिंगार किया जाता है |

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