महान कवि कालिदास ने लगाया माँ भगवती के मुख पर कालिख
महान कवि कालिदास जिन्हे आज महान कवि कहाँ जाता था उन्ही कवि कालिदास की मूर्खता इतने चरम पर थी कि उन्होंने माँ भगवती के मुख पर कालिख लगा दिया था | लेकिन प्रश्न यहाँ ये है अगर कालिदास इतने मूर्ख थे तो अचानक से वो विद्वान कैसे बने ? कैसे वो मूर्ख कालिदास से महान कवि कालिदास बने ?
बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में माँ काली का एक सिद्धपीठ है जिसे उच्चैठ भगवती मंदिर के नाम से जाना जाता है | लोक मान्यता है कि उच्चैठ भगवती से जो भी भक्त श्रद्घा पूर्वक कुछ भी मांगता है मां उसे अवश्य पूरा करती हैं | इस मंदिर का एक अलग ही महत्व है, ये वही मंदिर है जिसकी कृपया से मूर्ख कालिदास बन गए महान कवि कालिदास | आईए जानते है सम्पूर्ण माँ काली के कृपया की कथा –
कैसे मूर्ख कालिदास बने विद्वान कालिदास
संत बताते है कि बिहार के मधुबनी जिले के बेनीपट्टी गांव में एक संस्कृत पाठशाला और उच्चैठ भगवती मंदिर थी जिसके बीच में एक नदी बहती थी | लोक मान्यता है कि उच्चैठ भगवती से जो भी भक्त श्रद्घा पूर्वक मांगा जाता है मां उसे अवश्य पूरा करती हैं। महामूर्ख कालिदास अपनी विदुषी पत्नी विददोतमा से तिरस्कृत होकर इसी संस्कृत पाठशाला में खाना बनाने का कार्य करते थे | बताया जाता है कि महामूर्ख कालिदास इतने ज्यादा मूर्ख थे कि वो जिस डाली पर बैठते थे उसी डाल को काट देते थे | इसलिए सभी उन्हे महामूर्ख कहते थे | संत बताते है कि एक बार गाँव में भयंकर बाढ़ आई और नदी का बहाव इतना ज्यादा था कि मंदिर में संध्या का दीप नहीं जल पाया था जिससे सभी काफी चिंतित थे और सब बैठे आपस मैं वार्ता कर रहे थे कि कैसे मंदिर में दीप जले ? तो कालिदास जी सामने आए और बोले कि मैं जाऊंगा मंदिर में शाम का दीप जलाने तो सभी ने सोचा ये मूर्ख है जाने दो कुछ हो भी गया तो क्या ही होगा | लेकिन सभी ने कहाँ कि जब भी तुम मंदिर पहुँचो तो दीप जलाकर वहाँ कुछ निशानी लगा कर आना जिससे सभी को ये पता चल सके की तुमने ही मंदिर में दीप जलाया है |
माँ भगवती के मुख पर कालिख पोत दी
बात सुनकर कालिदास झट से नदी में कूद पड़ा और जैसे तैसे डूबते तैरते अंत में मंदिर पहुँच ही गया | मंदिर पहुँच कर मंदिर में पूजा अर्चना की और माता काली से सम्मुख दीप जलाया | दीप जलाकर जैसे ही वापस आने लगा उसे सभी कि बातें याद आई निशानी छोड़ कर आने कि तो उसने दीपक से निकलने वाले कालिख को अपने हाथ में लगाया | और कुछ ना मिलने पर वह महामूर्ख कालिदास वो कालिख माँ भगवती के साफ मुख मण्डल पर लगा दिया तभी माँ प्रकट हो गई और मूर्ख कालिदास के इस निस्वार्थ भाव से वो इतना खुश हुई कि उन्होंने कालिदास को वर मांगने को कहाँ तो कालिदास ने अपनी सारी आप बीती सुनाई और कहाँ ये जगत जननी हे माँ भगवती सभी मुझे महामूर्ख कहते है और इसी कारण से मेरी पत्नी ने मुझे तिरस्कृत कर भगा दिया | कालिदास की बात सुनकर माँ भगवती ने उन्हे वरदान दिया कि आज सारी रात पुस्तकालय में तुम जिन जिन पुस्तकों को स्पर्श करोगे वो सब तुम्हें कंठस्थ हो जाएगी | माँ भगवती की कृपया से कृतार्थ हो कर महामूर्ख कालिदास आगे चलकर महान कवि कालिदास कहलाये | और इस तरह महामूर्ख कालिदास बने महान कवि कालिदास |
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