राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ

राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ

आखिर क्यों राजा जन्मेजय ने किया नाग यज्ञ ? ये जानने से पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर कौन थे राजा जन्मेजय क्योंकि इनके बारे में ज्यादा प्रचलित कथाये नहीं है |

कौन थे राजा जन्मेजय

महाभारत के अनुसार जन्मेजय कुरुवंश के राजा थे |  महाभारत के युद्ध के समय में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को जिस समय वीरगति प्राप्त हुई थी, उस समय अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा गर्भ से थी | उसके गर्भ से ही राजा परीक्षित का जन्म हुआ था जो महाभारत युद्ध के बाद हस्तिनापुर सिंहासन की गद्दी पर विराज मान हुए | राजा जन्मेजय इन्ही राजा परीक्षित और मद्रवती के पुत्र थे | जो पांडववंश के आखिरी राजा हुए |

ऋषि मुनि उग्रश्रवा जी बताते है कि – अपने पिता की मृत्यु का कारण जानकर राजा जन्मेजय को अत्यंत ज्यादा ही पीड़ा हुई | वो सारी बाते सुनकर क्रोध में आ गया और हाथ से हाथ मलने लगा | उस शोक के कारण उसकी लंबी लंबी और गरम साँसे चल रही थी | आखे लाल-लाल अश्रु से भरे थे | वो दुख। शोक तथा क्रोध से भरपूर आँशु बहाते हुए शस्त्रोंकित विधि से हाथों में जल भरकर बोला “मेरे पिता किस प्रकार स्वर्गवासी हुए ये बात में जान चुका हूँ | जिस कारण से मेरे पिता की मृत्यु हुई है, उस दुरात्मा तक्षक नाग से मैं अपने पिता कि मृत्यु का परिशोध लूँगा | ऐसा जन्मेजय ने प्रण लिया |

आखिर कौन था ये तक्षक नाग –

हिन्दू पौराणिक कथाओ के अनुसार-  तक्षक नागों के समूह में से एक नाग है और तक्षक नाग कश्यप का पुत्र था जो कद्रु के गर्भ से उत्पन्न हुआ था | जिसका मुख्य उदेश्य था श्रृंगी ऋषि के द्वारा दिए गए राजा परीक्षित को श्राप को पूरा करना | तो तक्षक नाग ने ही राजा परीक्षित को डंस लिया था |  और यही वो मुख्य कारण है जिससे राजा जन्मेजय ने तक्षक नाग को मारने की कसम खाई है |

जन्मेजय ने तक्षक नाग से बदला लेने का कारण

राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ
Image Credit- Google.co.in (राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ)

राजा जन्मेजय ने चिल्लाते हुए कहाँ कि उस तक्षक ने ही मेरे पिता का अंत किया है, श्रृंगी ऋषि का श्राप तो बहाना मात्र था | और इस बात का समस्त प्रत्यक्ष प्रमाण इस बात से होता है कि जब राजा परीक्षित को सांप ने काटा तो उनके इलाज के लिए कश्यप ब्राह्मण को बुलाया गया था जो विष निकालने और उतारने में माहिर थे | उनके आने से राजा परीक्षित जीवित बच जाते | लेकिन तक्षक सांप ने उन्हे रास्ते से धन देकर वापस कर दिया था जिससे राजा परीक्षित की मृत्यु हो गई | राजा जन्मेजय गुस्से में कहते है कि, अगर हमारे मंत्रियों द्वारा कश्यप ब्राह्मण का अनुनय-विनय किया जाता और उस अनुग्रह से अगर ब्राह्मण जन द्वारा मेरे पिता जीवित हो जाते तो इसमे उस दुष्ट तक्षक को क्यों हानि होती |

अब राजा जन्मेजय ने अपने समस्त पुरोहित और ऋत्विजों को बुलाया और उनसे दुरात्मा तक्षक को मारने का उपाय बताने का आग्रह किया जिससे में उस क्रूर नाग को धधकती आग में झोंक सकूँ |

ऋत्विजों का सुझाव और जन्मेजय का नाग यज्ञ

‘ऋत्विजों ने कहा, “राजन्! इसके लिए हम एक महायज्ञ करेंगे जिसमे में संसार के समस्त सांपों की आहुति देंगे | हमे उस यज्ञ की विधि मालूम है | ऋत्विजों की बातों को सुनकर राजा जन्मेजय अत्यंत खुश हुए और उन्हे ये एहसास हुआ कि निश्चित ही अब तक्षक जल जाएगा | तो राजा ने ब्राह्मण जन से कहा मैं इस यज्ञ को करूंगा आप सभी लोग सामग्री इकट्ठा करे | वेदज्ञ ब्राह्मणों ने शास्त्र विधि द्वारा यज्ञ-मण्डप बनाने के लिये जमीन नाप ली, यज्ञशाला के लिये श्रेष्ठ मण्डप तैयार किया गया तथा राजा जन्मेजय यज्ञ के लिये दीक्षित हुए।

यज्ञशाला बनाते समय कुछ विचित्र घटित हुआ | एक कला कौशल के प्रांगत विद्वान, अनुभवी एवं अनुभवी सूत ने कहाँ, कि जिस स्थान और समय पर इस यज्ञ-मंडप मापने और बनाने की कृपया आरंभ हुई है इससे तो ऐसा प्रतीत होता है कि किसी ब्राह्मण के कारण यह यज्ञ पूर्ण नहीं हो पाएगा | यह बात सुनकर राजा जन्मेजय अपने द्वारपाल को आदेश देते हुआ कहा कि बिन मुझे सूचना दिए कोई भी मनुष्य इस यज्ञ मंडप के समीप भी न आने पाए |

नागों का महाविनाश का प्रारम्भ

Image Credit- Google.co.in (राजा जन्मेजय का नाग यज्ञ)

अब नाग यज्ञ की विधि से यज्ञ का कार्य आरंभ हुआ | सभी ऋत्विज् अपने-अपने कामों में लग गये। सभी ऋत्विजों की आँखें धूएं से लाल-लाल हो रही थीं। लेकिन वे सभी काले काले वस्त्रों को पहनकर मन्त्रोच्चारण पूर्वक हवन करते जा रहे थे | उस यज्ञ की गूंज पूरे संसार में हो रही थी जिससे समस्त सांप जाति भयभीत हो रखी थी | अब बेचारे नाग तड़पते, बिलखते, उछलते कूदते न चाहते हुए भी आग में गिरने लगे | सफेद, काले, नीले, पीले, बच्चे, बूढ़े सभी प्रकार के नाग बिलखते चिल्लाते हुए वर्षा की भाति आग के मुँह में गिरने लगे। और सभी कुंड में आहुति बन रहे थे |

नाग-यज्ञ में च्यवनवंशी चण्डभार्गव होते थे। कौत्स उद्गाता, जैमिनि ब्रह्मा तथा शार्ङ्गरव और पिंगल अध्वर्यु थे एवं पुत्र और शिष्यों के साथ व्यासजी, उद्दालक, प्रमतक, श्वेतकेतु, असित, देवल आदि सदस्य थे। जो नाम ले-लेकर आहुति डाल रहे थे जिससे बड़े-बड़े भयानक नाग भी आकर अग्नि-कुण्ड में गिरते जा रहे थे। नागों की चर्बीयों से बढ़ी दुर्गंध चारों ओर फैल गयी थी | और नागों के चिल्लाहट से समस्त भू-मण्डल डोल गया | और जब यह समाचार तक्षक नाग ने सुना तो वह डर कर भागने लगा |

तक्षक ने जान बचाने के लिए क्या किया 

जब लाखों नाग यज्ञ में गिरने प्रारंभ हो गए, तब यह देख भयभीत तक्षक ने इन्द्र की शरण ली। वह इन्द्रपुरी में रहने लगा। तब वासुकि की प्रेरणा से एक ब्राह्मण आस्तीक परीक्षित के यज्ञस्थल पर पहुंचा और यजमान तथा ऋत्विजों की स्तुति करने लगा । उधर जब ऋत्विजों ने तक्षक का नाम लेकर आहुति डालनी प्रारंभ की तब मजबूरी में इन्द्र ने तक्षक को अपने उत्तरीय में छिपाकर वहां लाना पड़ा। वहां वे तक्षक को अकेला छोड़कर अपने महल में लौट गए। विद्वान् ब्राह्मण बालक आस्तीक से प्रसन्न होकर जन्मेजय ने उसे एक वरदान देने की इच्छा प्रकट की तो उसने वरदान में यज्ञ की तुरंत समाप्ति का वर मांगा। बस इसी कारण तक्षक भी बच गया क्योंकि उसके नाम के आह्वान के समय वह बस अग्नि में गिरने ही जा रहा था और यज्ञ समाप्ति की घोषणा कर दी गई।

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