श्री राधाष्टकं (सम्पूर्ण पाठ) भजन लिरिक्स

Bhajan Name – Shri Radha Ashtakam Bhajan Lyrics ( श्री राधाष्टकं (सम्पूर्ण पाठ) भजन लिरिक्स )
Bhajan Lyric-Pratiik Bhakti Songs
Bhajan Singer-Pratiik Bhakti Songs
Music Label- Pratiik Bhakti 

।। श्री राधाष्टकम् ।।

श्रीभगवान् निम्बार्क महामुनीन्द्र विरचित इस स्तोत्र में ब्रजराजेश्वरी राधारानी की स्तुति की गयी है । जो उपासक भगवती राधा के इस अष्टश्लोकी स्तोत्र का पाठ करता है वे साधक श्री कृष्णधाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा का पुण्य प्राप्त करते हुए सखी भाव को प्राप्त करता है ।

नमस्ते श्रियै राधिकायै परायै नमस्ते नमस्ते मुकुन्दप्रियायै ।
सदानन्दरूपे प्रसीद त्वमन्तः प्रकाशे स्फुरन्ती मुकुन्देन सार्धम्

श्रीराधिके ! तुम्हीं श्री (लक्ष्मी) हो, तुम्हें नमस्कार है, तुम्हीं पराशक्ति राधिका हो, तुम्हें नमस्कार है। तुम मुकुन्द की प्रियतमा हो, तुम्हें नमस्कार है। सदानन्दस्वरूपे देवि ! तुम मेरे अन्तःकरण के प्रकाश में श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण के साथ सुशोभित होती हुई मुझपर प्रसन्न होओ ।

स्ववासोऽपहारं यशोदासुतं वा स्वदध्यादिचौरं समाराधयन्तीम् ।
स्वदाम्नोदरं या बबन्धाशु नीव्या प्रपद्ये नु दामोदरप्रेयसीं ताम् ॥

जो अपने वस्त्र का अपहरण करने वाले अथवा अपने दूध-दही, माखन आदि चुराने वाले यशोदानन्दन श्रीकृष्ण की आराधना करती हैं, जिन्होंने अपनी नीवी के बन्धन से श्रीकृष्ण के उदर को शीघ्र ही बाँध लिया था, जिसके कारण उनका नाम ‘दामोदर’ हो गया, उन दामोदर की प्रियतमा श्रीराधा-रानी की मैं निश्चय ही शरण लेता हूँ ।

दुराराध्यमाराध्य कृष्णं वशे त्वं महाप्रेमपूरेण राधाभिधाऽभूः ।
स्वयं नामकृत्या हरिप्रेम यच्छ प्रपन्नाय मे कृष्णरूपे समक्षम् ॥

श्रीराधे ! जिनकी आराधना कठिन है, उन श्रीकृष्ण की भी आराधना करके तुमने अपने महान् प्रेमसिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्रीकृष्ण की आराधना के ही कारण तुम ‘राधा’ नाम से विख्यात हुई। श्रीकृष्णस्वरूपे ! अपना यह नामकरण स्वयं तुमने किया है, इससे अपने सम्मुख आये हुए मुझ शरणागत को श्रीहरि का प्रेम प्रदान करो ।

मुकुन्दस्त्वया प्रेमदोरेण बद्धःपतङ्गो यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः ।
उपक्रीडयन् हार्दमेवानुगच्छन् कृपा वर्तते कारयातो मयेष्टिम् ॥

तुम्हारी प्रेमडोर में बँधे हुए भगवान् श्रीकृष्ण पतंग की भाँति सदा तुम्हारे आस-पास ही चक्कर लगाते रहते हैं, हार्दिक प्रेम का अनुसरण करके तुम्हारे पास ही रहते और क्रीडा करते हैं। देवि ! तुम्हारी कृपा सब पर है, अतः मेरे द्वारा अपनी आराधना (सेवा) करवाओ ।

व्रजन्तीं स्ववृन्दावने नित्यकालं मुकुन्देन साकं विधायाङ्कमालम् ।
सदा मोक्ष्यमाणानुकम्पाकटाक्षैः श्रियं चिन्तयेत् सच्चिदानन्दरूपाम् ॥

जो प्रतिदिन नियत समय पर श्रीश्यामसुन्दर के साथ उन्हें अपने अंक की माला अर्पित करके अपनी लीलाभूमि – वृन्दावन में विहार करती हैं, भक्तजनों पर प्रयुक्त होने वाले कृपा-कटाक्षों से सुशोभित उन सच्चिदानन्दस्वरूपा श्रीलाड़िली का सदा चिन्तन करे ।

मुकुन्दानुरागेण रोमाञ्चिताङ्गी- महं व्याप्यमानां तनुस्वेदविन्दुम् ।
महाहार्दवृष्ट्या कृपापाङ्गदृष्ट्या समालोकयन्तीं कदा त्वां विचक्षे ॥

श्रीराधे ! तुम्हारे मन-प्राणों में आनन्दकन्द श्रीकृष्ण का प्रगाढ़ अनुराग व्याप्त है, अतएव तुम्हारे श्रीअंग सदा रोमांच से विभूषित हैं और अंग-अंग सूक्ष्म स्वेदबिन्दुओं से सुशोभित होता है। तुम अपनी कृपा-कटाक्ष से परिपूर्ण दृष्टि द्वारा महान् प्रेम की वर्षा करती हुई मेरी ओर देख रही हो, इस अवस्था में मुझे कब तुम्हारा दर्शन होगा ?

पदाङ्कावलोके महालालसौघं मुकुन्दः करोति स्वयं ध्येयपादः।
पदं राधिके ते सदा दर्शयान्त- र्हृदीतो नमन्तं किरद्रोचिषं माम् ॥

श्रीराधिके ! यद्यपि श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण स्वयं ही ऐसे हैं कि उनके चारुचरणों का चिन्तन किया जाय, तथापि वे तुम्हारे चरणचिह्नों के अवलोकन की बड़ी लालसा रखते हैं। देवि ! मैं नमस्कार करता हूँ। इधर मेरे अन्तःकरण के हृदय-देश में ज्योतिपुंज बिखेरते हुए अपने चिन्तनीय चरणारविन्द का मुझे दर्शन कराओ ।

सदा राधिकानाम जिह्वाग्रतः स्यात् सदा राधिका रूपमक्ष्यग्र आस्ताम् ।
श्रुतौराधिकाकीर्तिरन्तः स्वभावे गुणा राधिकायाः श्रिया एतदीहे ॥

मेरी जिह्वा के अग्रभाग पर सदा श्रीराधिका का नाम विराजमान रहे । मेरे नेत्रों के समक्ष सदा श्रीराधा का ही रूप प्रकाशित हो । कानों में श्रीराधिका की कीर्ति-कथा गूँजती रहे और अन्तर्हृदय में लक्ष्मी- स्वरूपा श्रीराधा के ही असंख्य गुणगणों का चिन्तन हो, यही मेरी शुभ कामना है ।

इदं त्वष्टकं राधिकायाः प्रियायाः पठेयुः सदैवं हि दामोदरस्य ।
सुतिष्ठन्ति वृन्दावने कृष्णधाम्नि सखीमूर्तयो युग्मसेवानुकूलाः ॥

दामोदरप्रिया श्रीराधा की स्तुति से सम्बन्ध रखने वाले इन आठ श्लोकों का जो लोग सदा इसी रूप में पाठ करते हैं, वे श्रीकृष्णधाम वृन्दावन में युगल सरकार की सेवा के अनुकूल सखी-शरीर पाकर सुख से रहते हैं ।

॥ इस प्रकार श्रीभगवन्निम्बार्कमहामुनीन्द्रविरचित श्रीराधाष्टकम् सम्पूर्ण हुआ ॥

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