राम जी के ससुराल में बंदरों ने किया ऐसा उधम कि सब हँस-हँस कर हो गए लोट-पोट

राम जी के ससुराल में बंदरों ने किया ऐसा उधम कि सब हँस-हँस कर हो गए लोट-पोट


परिचय

रामायण भारतीय संस्कृति का अमूल्य ग्रंथ है, जिसमें भगवान राम की जीवन यात्रा के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही सुंदर और भावनात्मक रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस कथा का एक अत्यंत रोचक प्रसंग है, जब प्रभु श्री राम ने रावण का वध करके 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या में राज्याभिषेक किया। इस दौरान जनकपुर के महाराज जनक ने भगवान राम और उनकी पूरी सेना को ससुराल आने का निमंत्रण भेजा। यह प्रसंग भगवान की लीलाओं, वानरों की अद्भुत शिष्टता, और मानवीय संबंधों के प्रति आदर्श दृष्टिकोण का अद्वितीय उदाहरण है।

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन


जनकपुर से निमंत्रण: महाराज जनक का पत्र

महाराज जनक ने एक भावुक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने भगवान राम, माता सीता, लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न और समस्त अयोध्यावासियों को जनकपुर आने का सादर निमंत्रण दिया। उन्होंने लिखा:
“हे प्रभु श्री राम, आपने रावण का वध करके धर्म की स्थापना की। जनकपुरवासियों के प्राण तो आपकी युगल जोड़ी में ही हैं, लेकिन हमारी जानकी (सीता) तो हमारे प्राणों से भी अधिक प्रिय हैं। कृपया, आप सब जनकपुर आकर हमें सेवा का अवसर प्रदान करें।”

भगवान राम ने यह पत्र सभा में पढ़वाया। पत्र सुनते ही वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ गई। सब वानर आनंद से उछलने लगे, सोचने लगे कि जनकपुर जाकर मालपुए और अन्य पकवान खाने का अवसर मिलेगा।


राम जी का निर्णय: ससुराल की मर्यादा

राम जी ने सभा में घोषणा की:
“हमारी ससुराल है, और वहां हमारी नाक ऊंची रहनी चाहिए। अतः हमें केवल वरिष्ठ जनों को ही साथ ले जाना चाहिए।”
उन्होंने तय किया कि केवल लक्ष्मण, भरत, शत्रुघ्न, चारों माताएं, हनुमान, जामवंत और कुछ वरिष्ठ वानर ही जाएंगे।
जब वानरों ने सुना कि उन्हें नहीं ले जाया जाएगा, तो वे उदास हो गए। उन्होंने राम जी से निवेदन किया, लेकिन राम जी ने कहा:
“तुम्हारा स्वभाव उछल-कूद का है, और ससुराल में यह व्यवहार शोभा नहीं देगा।”


जामवंत जी का आश्वासन

वानरों की उदासी देखकर जामवंत जी ने राम जी से कहा:
“हे प्रभु, मैं वचन देता हूं कि जनकपुर में वानरों का व्यवहार इतना शिष्ट होगा कि किसी को शिकायत का मौका नहीं मिलेगा।”
राम जी ने जामवंत जी की बात मान ली और वानर सेना को भी जनकपुर ले जाने का निर्णय किया।


वानरों की परेड: शिष्टता का अद्भुत प्रदर्शन

जामवंत जी ने वानरों को सिखाया कि जनकपुर में कैसे चलना है, कैसे बोलना है, और कैसे व्यवहार करना है। उन्होंने कहा:
“जो मैं करूं, वही करना। जब मैं चलूं, तब चलना। जब मैं बोलूं, तभी बोलना।”
इस आदेश का पालन करते हुए वानरों ने ऐसी परेड की जैसे किसी सैन्य दल की परेड हो। उनकी अनुशासनप्रियता देखकर सभी अयोध्यावासी और राम जी प्रसन्न हुए। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन


जनकपुर में स्वागत

जब राम जी और उनकी सेना जनकपुर पहुंचे, तो वहां अद्भुत स्वागत हुआ। जनकपुर की स्त्रियों ने आरती के थाल से राम जी का स्वागत किया। जनक जी ने अपने दामाद राम को हृदय से लगाते हुए कहा:
“हे प्रभु, आपके आने से जनकपुर धन्य हो गया।”

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन


वानरों के लिए विशेष भोजन की व्यवस्था

वानरों के लिए सोने की थाल और चांदी की कटोरियों में भोजन परोसा गया। पांच प्रकार की पूड़ियां, मिष्ठान, काजू की सब्जी, और अन्य व्यंजन देखकर वानरों की लार टपकने लगी। लेकिन उन्होंने जामवंत जी के आदेश का पालन करते हुए शिष्टता बनाए रखी।


गुठली प्रसंग: अनुशासन का परीक्षण

सब कुछ शांति से चल रहा था, लेकिन आम खाने के दौरान गुठली का प्रसंग सामने आया। जामवंत जी ने आम दबाकर देखा, जिससे गुठली उछल गई। यह देखकर वानरों ने भी आम दबाकर गुठली उछालनी शुरू कर दी। थोड़ी ही देर में सभा में गुठलियों, दाल, और खीर का लेपन हो गया।
राम जी ने संकोच से सिर झुका लिया, लेकिन जनक जी हंसते हुए बोले:
“यह वानरों का स्वभाव है। इसमें हमें प्रसन्नता है, संकोच नहीं।”

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन


जामवंत जी का अपराध बोध

जामवंत जी को लगा कि उन्होंने राम जी से वचन लेकर भी सभा की मर्यादा नहीं रखी। उन्होंने प्रभु राम से क्षमा याचना की। राम जी ने कहा:
“आपने जो किया, वह हमारे लिए आनंद का कारण बना। इसमें कोई अपराध नहीं है।” 


राम जी की लीला: जामवंत की मनोकामना पूर्ण हुई

जब जनक जी ने राम जी को हृदय से लगाया, तो जामवंत जी के मन में यह भावना आई कि काश प्रभु उन्हें भी इसी तरह हृदय से लगाएं। राम जी ने यह बात समझ ली और कहा:
“जब मैं कृष्ण रूप में आऊंगा और आप अपनी पुत्री का विवाह मुझसे करेंगे, तब आपकी यह इच्छा पूरी होगी।”
यही हुआ जब भगवान कृष्ण ने जामवंत की पुत्री जामवंती से विवाह किया।

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन


निष्कर्ष

यह कथा केवल भगवान राम की लीलाओं का वर्णन नहीं करती, बल्कि यह हमें अनुशासन, शिष्टता, और मानवीय संबंधों की गहराई का पाठ भी सिखाती है। जनकपुर में वानरों का व्यवहार, राम जी का ससुराल में आदर्श व्यवहार, और जामवंत जी की विनम्रता हमें जीवन के महत्वपूर्ण आदर्शों का बोध कराते हैं।  ( आखिर क्यों भिखारी बनना पड़ा बलराम जी और श्री जगन्नाथ भगवान को )


FAQs

  1. राम जी ने वानरों को जनकपुर क्यों नहीं ले जाने का निर्णय किया था?
    राम जी को लगा कि वानरों का स्वभाव ससुराल की मर्यादा के अनुकूल नहीं होगा।
  2. जामवंत जी ने राम जी से क्या वादा किया?
    उन्होंने वादा किया कि वानर जनकपुर में शिष्टता का पालन करेंगे।
  3. गुठली प्रसंग का क्या महत्व है?
    यह प्रसंग वानरों के स्वाभाविक चंचल स्वभाव को दर्शाता है, जो कथा में हास्य का पुट जोड़ता है।
  4. जामवंत जी की मनोकामना कब पूर्ण हुई?
    यह मनोकामना तब पूर्ण हुई जब भगवान कृष्ण ने उनकी पुत्री जामवंती से विवाह किया।
  5. इस कथा का मुख्य संदेश क्या है?
    यह कथा शिष्टाचार, अनुशासन, और मानवीय संबंधों के आदर्शों का महत्व सिखाती है।

प्रभु श्री राम का जनकपुर आगमन

Welcome to Bhajanlyric.com, your online source for bhajan lyrics. We are helping you connect with your spiritual journey.

Leave a Reply

सिमसा माता मंदिर: एक अद्भुत स्थल जहां मां देती हैं संतान सुख का आशीर्वाद इसने व्यक्ति ने जानबूझ कर शिवलिंग पर पैर रखा लेकिन क्यों ? रामायण में कैसे कर पाए थे लक्ष्मण जी मेघनाथ का वध ? इन तीन जगह पर आज भी साक्षात मौजूद है हनुमान जी बारिश की भविष्यवाणी बताने वाला अनोखा मंदिर ?