भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की कथाएँ केवल पुरानी कहानियाँ नहीं हैं, बल्कि वे जीवन को दिशा देने वाले गहन आध्यात्मिक संदेश छिपाए हुए हैं। हर कथा का उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं, बल्कि भक्ति, श्रद्धा और धर्म की स्थापना होता है।
इन्हीं अमूल्य कथाओं में से एक है वेदमती माता की कथा – जो न केवल तपस्या की महिमा को उजागर करती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि भगवान की हर लीला भक्त के कल्याण और धर्म की रक्षा के लिए होती है।
वेदमती माता का दिव्य जन्म
वेदमती माता का जन्म सामान्य मनुष्यों की तरह नहीं हुआ। उन्हें अयोनिजा कहा गया है, अर्थात् उनका प्रादुर्भाव किसी माता-पिता से नहीं बल्कि वेदों के स्वर से हुआ था।
इसलिए उन्हें “वेद की पुत्री” माना जाता है। प्रारंभ से ही वे अत्यंत तेजस्विनी और भक्ति-परायण थीं। उनका हृदय केवल एक ही संकल्प में लगा था – भगवान नारायण को पति रूप में प्राप्त करना।
कठोर तपस्या और उद्देश्य
वेदमती माता ने हिमालय की गुफाओं और पवित्र स्थलों पर जाकर वर्षों तक कठोर तप किया।
उनका एकमात्र उद्देश्य था कि भगवान विष्णु स्वयं प्रकट होकर उन्हें पति रूप में स्वीकार करें।
तपस्या इतनी कठिन थी कि देवगण भी चकित थे।
रावण का विघ्न
जब तपस्या पूर्ण होने में केवल कुछ क्षण शेष थे, तभी लंकेश रावण वहाँ आ पहुँचा।
उसने वेदमती माता के तप को भंग करने के लिए उनके बाल पकड़ लिए।
माता ने अपनी दृढ़ता दिखाते हुए अपने केश काट डाले और अपने शरीर को योगाग्नि में प्रविष्ट कर भस्म कर दिया।
यद्यपि वे देह त्यागकर अंतर्ध्यान हो गईं, लेकिन उनकी तपस्या पूर्ण हो चुकी थी।
भगवान विष्णु का वचन
तपस्या के बाद वेदमती ने भगवान विष्णु से निवेदन किया कि रावण के कारण वे उनके दर्शन नहीं कर सकीं।
तब भगवान ने आश्वासन दिया –
“हम राम रूप में अवतरित होंगे। जब सीता माता अग्नि प्रवेश करेंगी, तब तुम उनके रूप में आकर हमारे साथ रहोगी। रावण तुम्हारा अपहरण करेगा, और यही कारण बनेगा उसके विनाश का। तब तुम्हारी तपस्या का फल अवश्य मिलेगा।”
सीता रूप में वेदमती
रामायण काल में जब सीता माता ने अग्नि प्रवेश किया, तब वेदमती ने छाया सीता का रूप धारण किया।
रावण ने उनका अपहरण किया और उन्हें लंका ले गया।
लंका दहन, रावण वध – यह सब घटनाएँ उसी लीला का हिस्सा थीं।
इस प्रकार वेदमती की तपस्या का फल उन्हें मिला।
अपूर्ण इच्छा और पुनर्जन्म
हालाँकि वेदमती माता की इच्छा पूरी नहीं हुई थी, क्योंकि भगवान राम ने एक पत्नीव्रत का संकल्प लिया था।
इसलिए उन्होंने वेदमती को आश्वासन दिया –
“अगले अवतार में जब हम वेंकटेश्वर (श्रीनिवास) बनकर आएंगे, तब तुम पद्मावती बनकर अवतरित होगी और हमारा विवाह तुमसे होगा।”
इसी वचन के अनुसार, तिरुपति में भगवान वेंकटेश्वर (बालाजी) की तीन पत्नियाँ मानी जाती हैं –
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श्रीदेवी
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भूदेवी
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पद्मावती (जो वास्तव में वेदमती का ही रूप हैं)
कथा का आध्यात्मिक संदेश
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भक्ति और तपस्या कभी व्यर्थ नहीं जाती। चाहे समय लगे, भगवान भक्त की प्रार्थना अवश्य स्वीकार करते हैं।
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भगवान की हर लीला का गहरा रहस्य होता है। बाहरी दृष्टि से विरोधाभास लगे, लेकिन उसमें भक्तों और धर्म का कल्याण ही निहित है।
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सत्संग और कथा की महिमा। कहा गया है कि कथा में रुचि होना ही भगवान की कृपा का प्रमाण है।
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हनुमान जी का उदाहरण। जब कथा चल रही थी, तो भगवान राम प्रत्यक्ष आ गए। लेकिन हनुमान जी बोले –
“प्रभु! प्रत्यक्ष दर्शन में केवल दो नेत्र आपको देख सकते हैं, पर कथा सुनते समय सम्पूर्ण हृदय और इंद्रियाँ आपको अनुभव करती हैं। इसलिए पहले कथा सुनने दीजिए।”
यह कथा की महिमा का सबसे बड़ा प्रमाण है।
निष्कर्ष
वेदमती माता की यह कथा न केवल भक्त की तपस्या की महिमा बताती है, बल्कि यह भी सिद्ध करती है कि भगवान की लीला अद्भुत और रहस्यमयी होती है।
कभी वे राम के रूप में धर्म की रक्षा करते हैं, तो कभी वेंकटेश्वर बनकर भक्त की अधूरी इच्छाओं को पूर्ण करते हैं।
भक्ति, श्रद्धा और कथा में रुचि ही भगवान को प्रसन्न करने का सबसे सरल मार्ग है।