भक्त धन्ना जी का जन्म मुंबई के पास धुआन गाँव में एक जाट परिवार में हुआ था। आपके माता-पिता कृषि और पशुपालन करके जीवित रहते थे। वह बहुत गरीब थे।

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जैसे ही धन्ना बड़ा हुआ तो उसे भी  पशु चराने में लगा दिया । वह हर दिन जानवर चराने जाता था।

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गाँव के बाहर कच्चे तालाब के किनारे एक ठाकुर द्वार था, जिसमें बहुत सारी ठाकुरों की मूर्तियाँ थीं। हर दिन लोग वहाँ आकर माथा टेकते और भेंट देते।

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हर दिन धन्ना, पंडित जी को ठाकुरों की पूजा करते, स्नान करवाते और घंटियाँ खड़काते देखता था। वह कम बुद्धिमान है, इसलिए समझ नहीं पाता।

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एक दिन उसके मन में आया कि चलो देखे आखिर क्या है । तो एक दिन उसने पंडित जी से पूछा कि मूर्ति के सामने बैठकर आप क्या करते हैं?

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पंडित जी  ने कहा कि वे ठाकुर की सेवा करते हैं। जिनसे मन की इच्छा पूरी होती है धन्ना ने कहा कि यह ठाकुर जी मुझे भी दे दो। पंडित ने उससे छुटकारा पाने के लिए कपड़े में पत्थर लपेटकर दे दिया।

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घर जाकर, धन्ना ने पत्थर को ठाकुर जी ( कृष्णा भगवन ) समझकर स्नान कराया और भोग लगाने के लिए उन्हें कहने  लगा। ठाकुर जी के सामने उसने बहुत मिन्नते कीं।

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धन्ना ने कसम खाई कि मैं भी भूखा रहूँगा अगर ठाकुर जी आप नहीं खायेंगे तो ।

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परम पिता परमेश्वर उसके इस भाव और प्रण से प्रसन्न हो गए और उस भग्त के सामने प्रगट होकर रोटी खाई और लस्सी पी।

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इस तरह धन्ने ने भगवान को अपने भोलेपन में पूजा करके पत्थर में भी पाया।

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