मथुरा के एक गाँव में “गोवर्धन” नाम एक ग्वाला रहता था। वह बचपन से दूसरों पर निर्भर था क्योंकि उसका कोई नहीं था, और कहते है न  

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जिसका कोई नहीं होता उसके खुद बिहारी जी होते है | जिस गाँव में वह रहता था, वहाँ के लोगों की गायें आदि चरा कर जो कुछ मिलता था | उसी से अपना जीवन चलाता था | 

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गाँव के सभी लोग उसे बहुत प्यार करते थे। उसको एक दिन गाँव की एक महिला, जिसे वह काकी कहता था, उनके साथ वृन्दावन जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ |  

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उसने वृन्दावन के ठाकुर श्री बांके बिहारी जी के बारे में बहुत कुछ सुना था | मन में लालसा भी थी उसके वहाँ जाके बिहारी जी से मिलने की ।  उनके  दर्शन पाने की |

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वृन्दावन पहुँचकर जब वह बिहारी जी के दर्शन करने पहुंचा तो वो उन्हे देखता ही रह गया और उनकी छवि में खो गया 

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एकदम उसे लगा, जैसे ठाकुर जी उससे कह रहे हैं। आ गए “मेरे गोवर्धन” ! मैं कब से इंतजार कर रहा था; मैं गायें चराते चराते थक गया हूँ | अब तुम ही मेरी गायें चराने ले जाया कर ।

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गोवर्धन ने मन ही मन से बिहारी जी से "हाँ" कह दिया !  फिर कपात बंद करने का समय हो गया | तो वहाँ सफाई कर रहे सेवक ने उसे बाहर जाने को कहा  तो - 

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गोवर्धन ने उस सेवक से कहाँ ठीक है! लेकिन तुम बिहारी जी से कहना कि कल ही में ही उनके गायों को चारने के लिए ले जाऊंगा | 

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तो सेवक ने उसके जाने के बाद उसकी मार्मिक बात गोस्वामीजी को बताई | तो गोस्वामी जी ने कहा कोई बिहारी जी का अनन्य भक्त होगा |

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चलो अच्छा है वो यहाँ रहकर गाये भी चरा लेगा, और उसके खाने पीने का, रहने का इंतजाम में कर दूंगा | गोवर्धन अगले दिन से ही गाये चराने जाना लगा |

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एक दिन बिहारी जी के मंदिर में बहुत बड़ा उत्सव था तो उत्सव में व्यस्त होने के कारण गोस्वामी जी गोवर्धन को खाना भेजना भूल गए |लेकिन बिहारी जी को अपने भक्त का ध्यान नहीं भूलता | 

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बिहारी जी ने अपने एक वस्त्र में कुछ मिष्ठान इत्यादि बांधे और पहुँच गए यमुना के तट पर अपने भक्त गोवर्धन के पास  

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गोवर्धन ने कहा, आज बड़ी देर कर दी बहुत जोर की भूख लगी है | गोवर्धन ने जल्दी से सेवक के हाथ से पोटली लिया और भर पेट भोजन पाया |  || ऐसे है हमारे बिहारी जी ||

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