ये बात है स्वर्गलोक में बने श्री कृष्ण और राधा रानी के गोलोक की जहाँ सुदामा और विराजा दोनों निवास करते थे |
श्री कृष्ण की सेवा करते करते सुदामा के मन ही मन विराजा के लिए अत्यंत प्रेम जागृत हो गया था | लेकिन विराजा श्री कृष्ण को प्रेम करती थी |
सुदामा के द्वारा विराजा को अपने प्रेम के बारे में बताए जाने पर | उसने श्री कृष्ण सेवा से समय मिलने पर ही वह इस बारे में सोचेगी और ये बात उन्होंने श्री कृष्ण को बताने की सोची |
लेकिन यह बात राधा जी ने छुपकर सुन ली | जिसे सुनकर उन्होंने क्रोध में सुदामा और विराजा को श्राप दे दिया कि तुम दोनों राक्षस कुल में जन्मोंगे |
इसी श्राप के चलते सुदामा का जन्म राक्षस दानवराज दम्भ के घर शंखचूर्ण के रूप में और विराजा ने धर्मध्वज के यहाँ तुलसी के रूप में जन्म लिया |
समय उपरांत शंखचूर्ण और तुलसी का विवाह हो गया | शंखचूर्ण को ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त था कि जब तक तुलसी अपनी सतीत्व की मर्यादा निभाती रहेगी तुम्हें कोई परास्त नहीं कर पाएगा |
जिसके चलते शंखचूर्ण का तीनों लोको में आधिपत्य हो गया था इसलिए सभी देवतागड भगवान विष्णु के शरण में गए तो भगवान ने शंखचूर्ण को मारने के लिए
श्री कृष्ण ने शंखचूर्ण का भेष बदलकर तुलसी के समक्ष उसके यज्ञशाला में अवतरित हुए |