अगर कोई हमसे कहें कि पहाड़ भी उड़ सकते है पहाड़ों के भी पंख होते है | तो ऐसा हम सभी ने मूवीज में देखा है वो भी हॉलीवुड मूवी में जो कि पूरी तरह animated के द्वारा दिखाया जाता है |

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लेकिन क्या आपको पता है कि हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार सतयुग में ऐसे बहुत से पर्वत थे जो ऊड़ सकते थे | और एक जगह से दूसरी जगह तक जा भी सकते थे |

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ऐसा ही एक प्रसंग महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण के सुन्दरकाण्ड में लिखा गया है कि जब हनुमान जी प्रभु राम का कार्य सिद्ध करने के लिए  समुद्र लंघन किया जा रहा होता है | 

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तो यह देख स्वयं समुद्र ने मैनाक नामक पर्वत से आग्रह किया कि वह हनुमान जी को अपने ऊपर कुछ समय विश्राम करने को कहे | 

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बाबा तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में इस प्रसंग को बहुत संक्षेप में इतना ही लिखा है |

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जलनिधि रघुपति दूत विचारी | तैं मैनाक होहु श्रम हारी || 

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हनूमान तेहिं परसा कर पुनि कीन्ह प्रणाम, राम काज कीन्हें बिना   मोहे कहां विश्राम |

पर्वतों को उड़ते देख देवता, ऋषि तथा अन्य प्राणी उनके अपने ऊपर गिरने की आशंका से डर जाया करते थे । इसी बात से परेशान होकर एक बार 

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हज़ार नेत्रों वाले इंद्र ने कुपित होकर अपने वज्र से इधर उधर घूमने वाले हज़ारों पहाड़ों के पंख काट डाले । जिससे ये सिलसिला उसी समय सतयुग में ही समाप्त हो गया |  

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