कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी कैसे बने भक्त कवि सूरदास ?
एक बार मध्य काल के संत वल्लभाचार्य जी महाराज जब आगरा-मथुरा रोड पर यमुना के किनारे-किनारे वृंदावन की ओर आ रहे थे
तभी उन्हें एक अंधा दिखाई पड़ा जो बड़ी दीनता के साथ भगवान से प्रार्थना करते हुए बिलख रहा था।
वल्लभाचार्य जी महाराज ने उसे देखकर उसके अंदर छुपे हुए कृष्ण भक्त को पहचान लिया और कहा तुम इस प्रकार दीनता पूर्वक रिरिया क्यों रहे हो?
तुम सभी प्रकार से श्रेष्ठ कृष्ण लीला का गायन क्यों नहीं करते? तब उस अंधे व्यक्ति ने कहा-
स्वामी जी महाराज मैं अंधा भला मैं क्या जानूं लीला क्या होती है? तब स्वामी श्री वल्लभाचार्य जी महाराज ने उस अंधे व्यक्ति के माथे पर हाथ रखा।
यह अंधे व्यक्ति और कोई नहीं विश्व प्रसिद्ध कृष्ण भक्त कवि सूरदास जी महाराज थे विवरण मिलता है कि स्वामी वल्लभाचार्य जी महाराज के मस्तक पर हाथ रखने से -
पांच हजार वर्ष पूर्व के ब्रज में चली श्रीकृष्ण की सभी लीला कथाएं सूरदास की बंद आंखों के आकाश पर तैर गईं।
अब स्वामी वल्लभाचार्य जी महाराज उन्हें वृंदावन ले लाए और श्रीनाथ मंदिर में होने वाली आरती के क्षणों में हर दिन एक नया पद रचकर गाने का सुझाव दिया।
इन्हीं सूरदास के हजारों पद सूरसागर में संग्रहीत हैं। इन्हीं पदों का गायन आज भी धरती के कोने-कोने में, जहां कहीं श्रीकृष्ण को पुरुषोत्तम पुरुष मानने वाले रह रहे हैं, एक निर्मल काव्यधारा की तरह बह रहा है।