आखिर क्या हुआ महाभारत के युद्ध के बाद की अद्भुत घटनाएँ: एक विस्तृत लेख
महाभारत केवल एक महाकाव्य युद्ध नहीं है, बल्कि यह धर्म, कर्म और नियति की जटिलता से भरी कहानी है। युद्ध के 18 दिनों के भीषण संघर्ष के बाद भी, इस कथा के पात्रों का संघर्ष समाप्त नहीं हुआ। पांडवों की जीत और दुर्योधन की पराजय के साथ भी अनेक घटनाएँ घटीं, जिन्होंने भविष्य में कलियुग की नींव रखी। यह लेख न केवल महाभारत युद्ध के अंत की घटनाओं का वर्णन करेगा, बल्कि उन रहस्यों पर भी प्रकाश डालेगा जो आज भी इस महागाथा से जुड़े हुए हैं।
महाभारत युद्ध के बाद की महत्वपूर्ण घटनाएँ
1. दुर्योधन की मृत्यु और अश्वत्थामा का प्रतिशोध
दुर्योधन भीम से हारकर रणभूमि में घायल पड़ा था। अश्वत्थामा ने, क्रोध और प्रतिशोध में पांडवों के शिविर पर आक्रमण कर दिया और उनके पांचों पुत्रों का वध कर दिया। लेकिन जब वह दुर्योधन के पास उन सिरों को गर्व से लेकर पहुँचा, तो दुर्योधन ने निराशा में कहा, “तुम्हारी मूर्खता ही मेरी वास्तविक मृत्यु है।” यहीं पर दुर्योधन ने अंतिम साँस ली।
2. पांडवों का 36 वर्षों का शासन और कलियुग की शुरुआत
युद्ध के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर की गद्दी संभाली और 36 वर्षों तक न्यायपूर्ण शासन किया। इस दौरान, कृष्ण ने भी पृथ्वी पर अपना अवतार समाप्त कर वैकुंठ की यात्रा की। उनके प्रस्थान के साथ ही कलियुग का आगमन हुआ, जहाँ अराजकता और अधर्म ने पाँव पसारने शुरू कर दिए।
3. राजा परीक्षित और काली असुर की भेंट
परीक्षित ने काली को पृथ्वी पर केवल पाँच स्थानों—जुआ, शराब, अनैतिकता, हिंसा और सोने—में रहने की अनुमति दी। लेकिन काली का प्रभाव धीरे-धीरे बढ़ता गया, और परीक्षित स्वयं क्रोध के कारण ऋषि श्रृंगी के श्राप का शिकार बने। सातवें दिन, तक्षक नाग ने परीक्षित को डस लिया, और उनकी मृत्यु हो गई।
4. जनमेजय का नाग यज्ञ और नाग पंचमी का आरंभ
परीक्षित की मृत्यु से आहत उनके पुत्र जनमेजय ने सर्पसत्र अनुष्ठान का आयोजन किया, जिससे समस्त नागों को नष्ट किया जा सके। ऋषि आस्तिक के हस्तक्षेप से यह यज्ञ रोका गया, और तक्षक नाग की जान बची। उसी दिन को नाग पंचमी के रूप में मनाने की परंपरा का आरंभ हुआ।
पांडवों की स्वर्गारोहण यात्रा
अपना राज्य अपने पोते परीक्षित को सौंपने के बाद पांडव और द्रौपदी हिमालय की ओर स्वर्गारोहण यात्रा पर निकले। लेकिन इस यात्रा में सभी पांडव एक-एक कर अपने दोषों के कारण पीछे छूट गए:
- द्रौपदी – अर्जुन के प्रति पक्षपात।
- नकुल और सहदेव – रूप और ज्ञान का अहंकार।
- अर्जुन – अपनी धनुर्विद्या पर घमंड।
- भीम – भोजन और शक्ति का लालच।
अंततः केवल युधिष्ठिर, जो धर्म के मार्ग पर अडिग रहे, जीवित स्वर्ग पहुँचे।
5. पांडवों की स्वर्ग यात्रा और उनकी कमजोरियाँ
अपना राज्य छोड़ने के बाद, पांडव और द्रौपदी हिमालय की ओर स्वर्ग की यात्रा पर निकल पड़े। इस यात्रा में द्रौपदी, नकुल, सहदेव, अर्जुन, और भीम क्रमशः अपने दोषों के कारण पीछे छूटते गए। अंततः केवल युधिष्ठिर अपने धर्म का पालन करते हुए स्वर्ग पहुँच पाए।
अंतिम निष्कर्ष
महाभारत न केवल एक युद्ध गाथा है, बल्कि यह जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक सबकों का भंडार भी है। इस महाकाव्य के हर चरण में पात्रों के संघर्ष और उनके निर्णयों के परिणाम दिखते हैं। युद्ध के बाद की घटनाओं ने यह सिद्ध किया कि धर्म का पालन ही अंतिम सत्य है, लेकिन साथ ही यह भी सिखाया कि हर जीत के पीछे कुछ न कुछ मूल्य चुकाना पड़ता है।