जब ठाकुर जी खुद से किडनेप होके भक्त के साथ आ गए: भक्त रामदास जी की अलौकिक घटना

जब ठाकुर जी खुद से किडनेप होके भक्त के साथ आ गए: भक्त रामदास जी


📌 परिचय

भारत की पवित्र भूमि में अनेक भक्तों और भगवान की अद्भुत कथाएँ प्रचलित हैं, जो यह सिद्ध करती हैं कि जब भक्त भगवान के प्रति सच्ची श्रद्धा और प्रेम रखता है, तो भगवान भी उसे अपनाने में कोई संकोच नहीं करते। ऐसी ही एक अनोखी और चमत्कारी कथा गुजरात के डाकोर गाँव से जुड़ी हुई है, जहाँ भगवान श्री रणछोड़ जी (श्रीकृष्ण) ने अपने अनन्य भक्त रामदास जी के प्रेम और निष्ठा को देखकर एक दिव्य लीला की।

यह कथा भक्ति, प्रेम, त्याग और भगवान की कृपा का एक अद्भुत उदाहरण है। इस कथा में भगवान स्वयं अपने भक्त के प्रेम में बंधकर द्वारका से डाकोर आ जाते हैं, जिससे यह स्थान अत्यंत पवित्र और प्रसिद्ध हो जाता है। आइए इस कथा को विस्तार से समझते हैं और जानने का प्रयास करते हैं कि कैसे डाकोर धाम का निर्माण हुआ।

 When Thakur ji got himself kidnapped


🏰 ठाकुर रणछोड़ जी और भक्त रामदास जी की भक्ति

गुजरात में डाकोर नामक गाँव स्थित है, जो आज भगवान श्री रणछोड़ जी के दिव्य मंदिर के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ रामदास जी नामक संत भक्त निवास करते थे। वे श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे और उनका प्रतिदिन का नियम था कि वे हर एकादशी पर द्वारका जाकर भगवान श्री रणछोड़ जी के मंदिर में पूरी रात कीर्तन करते और अगले दिन वापस लौट आते।

रामदास जी की भक्ति अद्भुत थी। चाहे वर्षा हो, तेज गर्मी हो, ठंडी रातें हों, वे कभी भी भगवान के दर्शन करने के अपने नियम से पीछे नहीं हटे। वे हर बार नंगे पैर, पैदल चलकर द्वारका जाते थे और श्री रणछोड़ जी की भक्ति में लीन हो जाते थे।

समय बीतने के साथ रामदास जी वृद्ध हो गए और उनके लिए इस कठिन यात्रा को करना कठिन होने लगा। भगवान श्री रणछोड़ जी ने उनकी भक्ति को देखकर उनसे कहा—

“रामदास, तुम्हारी भक्ति को देखकर मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। अब तुम्हें मेरे दर्शन के लिए द्वारका आने की आवश्यकता नहीं। मैं स्वयं तुम्हारे घर चलूँगा!”

रामदास जी को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने प्रभु से विनम्रता पूर्वक कहा—

“प्रभु, यह कैसे संभव है? आप तो द्वारका में निवास करते हैं, आप मेरे जैसे एक साधारण भक्त के घर कैसे रह सकते हैं?”

भगवान मुस्कुराए और बोले—

“सच्ची भक्ति में इतनी शक्ति होती है कि वह भगवान को भी अपने भक्त के अनुरूप चलने को विवश कर देती है। अगली बार जब तुम आओ, तो एक बैलगाड़ी लेकर आना, मैं तुम्हारे साथ चलूँगा।”

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🚩 ठाकुर रणछोड़ जी की डाकोर जाने की योजना

रामदास जी ने भगवान के आदेश को स्वीकार कर लिया। लेकिन उनके मन में कई प्रश्न उठने लगे—

  1. मंदिर के दरवाजे तो रात में बंद रहते हैं, तो वे भगवान को कैसे बाहर लाएँगे?
  2. वे वृद्ध हो चुके थे, तो भगवान को कैसे उठाएँगे?
  3. भगवान के आभूषण और श्रृंगार का क्या होगा?

यह सब सोचकर वे भगवान के समक्ष अपनी चिंताओं को व्यक्त करने लगे। भगवान श्री रणछोड़ जी ने उन्हें सांत्वना दी और कहा—

“तुम चिंता मत करो। मैं स्वयं इस समस्या का समाधान कर दूँगा। जब तुम अगली बार आओगे, तो मैं मंदिर के पीछे की खिड़की खोल दूँगा। तुम मुझे वहाँ से ले जाना। मैं तुम्हारे लिए फूल जैसा हल्का हो जाऊँगा।”

यह सुनकर रामदास जी संतुष्ट हो गए और अगले एकादशी पर द्वारका आने का वचन देकर अपने गाँव लौट गए।


⚔ ठाकुर रणछोड़ जी डाकोर के लिए प्रस्थान करते हैं

अगली एकादशी पर रामदास जी इस बार एक बैलगाड़ी लेकर द्वारका पहुँचे। मंदिर में जब वे पहुँचे, तो भक्तों ने देखा कि रामदास जी इस बार गाड़ी में आए हैं। सबको यह अजीब लगा क्योंकि वे हमेशा पैदल ही यात्रा करते थे।

रात को जब मंदिर के द्वार बंद हो गए, तो रामदास जी मंदिर के पीछे गए। भगवान ने पहले से ही खिड़की खोल दी थी और वे पूरे आभूषणों से सुसज्जित थे।

भगवान ने रामदास जी से कहा—

“रामदास, अब मुझे अपने साथ ले चलो।”

रामदास जी ने भगवान से प्रार्थना की—

“प्रभु, आप ये सारे गहने उतार दीजिए। यह सब आपके पुजारियों के काम आ जाएगा। मुझे तो वैसे भी आपको ले जाने में डर लग रहा है। कृपया अपने आभूषण यहीं छोड़ दीजिए।”

भगवान ने सहर्ष अपने सभी गहने उतारकर मंदिर में फैला दिए और स्वयं फूल के समान हल्के हो गए। रामदास जी ने उन्हें गोद में उठाया और बैलगाड़ी में बिठा लिया। फिर वे डाकोर की ओर चल दिए।

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⚡ पुजारियों ने किया रामदास जी का पीछा

अगली सुबह जब पुजारियों ने मंदिर के द्वार खोले, तो उन्होंने देखा कि मंदिर में ठाकुर जी नहीं थे और उनके आभूषण बिखरे हुए थे।

जब पुजारियों को यह समझ आया कि ठाकुर जी को रामदास जी लेकर गए हैं, तो वे घोड़ों पर भाला-बरछा लेकर उनका पीछा करने लगे।

रामदास जी ने घबराकर भगवान से कहा—

“प्रभु, पुजारी हमारा पीछा कर रहे हैं, अब हम क्या करें?”

भगवान ने उत्तर दिया—

“मुझे पास के तालाब में छुपा दो।”

रामदास जी ने भगवान को तालाब में छुपा दिया, लेकिन जब पुजारियों ने उन्हें पकड़ लिया, तो वे उन्हें मारने लगे।


💔 ठाकुर रणछोड़ जी ने भक्त के घाव अपने ऊपर लिए

जब पुजारियों की नजर तालाब पर पड़ी, तो उन्होंने देखा कि तालाब से खून बह रहा था।

जब वे तालाब के पास पहुँचे, तो उन्होंने देखा कि श्री रणछोड़ जी स्वयं जल में खड़े हैं और उनके शरीर पर भालों के गहरे घाव हैं।

भगवान ने पुजारियों से कहा—

“तुम जैसे निर्दयी लोगों के साथ मैं वापस नहीं जाऊँगा, मैं तो रामदास जी के साथ ही रहूँगा।”


🏹 रणछोड़ जी की लीला: सोने से तौल

भगवान ने पुजारियों को संतुष्ट करने के लिए कहा—

“रामदास जी मेरे वजन के बराबर सोना देंगे।”

रामदास जी ने अपनी पत्नी की छोटी सी सोने की नथ भगवान के वजन के बराबर तौलने के लिए रखी, और चमत्कारिक रूप से वही अधिक भारी हो गई।

इस प्रकार, डाकोर धाम का निर्माण हुआ और आज भी श्री रणछोड़ जी को पट्टी बाँधी जाती है ताकि भक्तों को उनकी यह लीला स्मरण रहे।


🚩 निष्कर्ष

यह कथा सिखाती है कि भगवान केवल मंदिरों में नहीं रहते, वे भक्तों के हृदय में भी बसते हैं। सच्ची भक्ति से भगवान को भी अपने भक्त की इच्छाओं के अनुरूप चलना पड़ता है।


📌 FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

1. डाकोर का प्रसिद्ध मंदिर कौन सा है?
🔹 श्री रणछोड़ राय जी का मंदिर डाकोर में स्थित है।

2. रामदास जी कौन थे?
🔹 वे श्री रणछोड़ जी के अनन्य भक्त थे, जिन्होंने उन्हें डाकोर ले जाने का साहस किया।

3. भगवान ने डाकोर क्यों चुना?
🔹 क्योंकि रामदास जी की भक्ति ने उन्हें वहां रहने के लिए प्रेरित किया।

4. इस कथा का प्रमुख संदेश क्या है?
🔹 भक्ति में इतनी शक्ति होती है कि भगवान को भी भक्त के अनुसार चलना पड़ता है।

5. क्या आज भी डाकोर में यह परंपरा चलती है?
🔹 हां, डाकोर मंदिर में आज भी श्री रणछोड़ जी की पूजा भक्ति-भाव से होती है।


🙏 जय श्री रणछोड़ जी! 🙏

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