एक सरल भक्त की कथा जो आपको भाव विभोर कर देगी

|| एक बार अपनी जीभिया पवित्र करने के लिए कहिए – जय श्री राम ||

एक भाेजन प्रेमी व्यक्ति थे मतलब ऐसा कह सकते हैं कि उनका जन्म सिद्ध अधिकार था भोजन करना वह इतना ज्यादा भोजन का प्रेमी था कि अगर घर में खाने के लिए बैठ जाता तो बस खाता ही रहता था | घर वाले थाली पटकते उसे इशारा करते लेकिन वह नीचे मुंह करके बस खाता ही रहता था। जब कोई रोटी लेकर उसके सामने आता तो बोलत कि दाने-दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम, तो उसके घर वाले उसे बोलते हैं कि नहीं तुम ऐसा मत बोलो बल्कि ऐसा बोलो की बोरी बोरी पर लिखा है खाने वाले का नाम | तुम दाना भर खाते हो | ऐसे कई सालों तक चलता रहा लेकिन कुछ समय बाद घर वालों ने परेशान होकर उसे धक्का मार कर बाहर निकाल दिया । अब वह इधर-उधर भटकने लगा क्योंकि उसे पता था कि वह तो बिना भोजन के एक ही दिन मे मर जाएगा | तो ऐसे चलते-चलते रास्ते में उसे मोटे साधु बाबा एक द्वार पर बैठे हुए दिखाई दिये, और उन्हें देखकर वह सोचने लगा कि जब ये इतने मोटे हैं तब तो ये बहुत खाते होंगे इतना भोजन तो मिल ही रहा होगा इनको । तो वो गया उनके सामने उन्हें प्रणाम किया और पूछा कि महाराज आपके इस दिव्य सेहत का राज क्या है। तो महराज जी ने बताया कि भीतर न बहुत चकाचक खाने को मिलता है और कोई पूछने वाला भी नहीं है कितना भी खा लो। तो वह बहुत खुश हुआ और बोला की महाराज बताइए भीतर एंट्री कैसी होगी मुझे भी अंदर जाना है तो महाराज जी ने उसे बताया कि उसके लिए तुम्हें चेला बनना पड़ेगा । तो वह बोला काम? तो महाराज जी ने बताया कुछ काम नहीं है | अंदर गुरुजी आपको एक माला देंगे और उसे दिन भर पकड़ कर राम-राम जाप करना है और फिर रसोई में जाकर जितना मन करे उतना खाना खाओ कोई पूछने वाला भी नहीं होगा तो वो बोला बस बस मैं ऐसी ही जगह ढूंढ रहा था | मुझको तुरंत चेला बनवाईये  भोजन करने का समय हो रहा है।

महाराज जी उसे अंदर गुरुजी के पास लेकर गए वहाँ सामने ही गुरुजी बैठे थे तो महाराज जी ने गुजऊ जी को बताया की इसे आपका चेला बनना है तो गुरु जी ने उसे अपने पास बुलाया और उसके कान में मंत्र दिया और उसे माला झोंला भी पकड़ा दिया | तो वह बोला कि गुरुजी माला बाद में जापुंगा अभी भोजन करने का समय है भोजन कर लूं तो महाराज जी ने कहा जाओ कर लो। अब लगा बैठ कर भोजन करने यहां ना कोई रोटी गिरने वाला ना पूछने वाला खूब आनंद से भोजन करे माला जपे और पड़ा रहे। लेकिन यह खुशी बहुत दिनों तक टिकी नहीं। एक दिन जलपान के लिए सुबह-सुबह रसोई में जाकर देखा तो देखा कि भंडारे में कुछ बना ही नहीं है तो वहां बैठे लोगों से पूछा की भाई टाइम हो गया है जलपान का । तो वहां लोगों ने बताया कि आज एकादशी है आज कुछ नहीं बनेगा वो यह सुनकर चौंक गया और बोला क्या बोल रहे हो लोगों ने कहा सच में आज कुछ नहीं बनेगा | अब आपको कल ही मिलेगा। तो वह भाग कर गुरु जी के पास गया और बोला गुरु जी गुरु जी सब बोल रहे हैं कि आज एकादशी है भोजन कल द्वादशी को मिलेगा | तो गुरु जी ने कहा हाँ भोजन तो अब कल द्वादशी को ही  मिलेगा तो वह बोला गुरुजी अगर एकादशी रह जाऊंगा तो द्वादशी देखने लायक बेचूंगा ही नहीं मैं । में भोजन के लिए ही साधु बना हूं मुझे भोजन करना है। तो गुरुजी ने अपने एक सेवक को बुलाया और उससे कहा कि देखो यह तो मानेगा नहीं और मैंने मना कर दिया तो चोरी छिपे खा लेगा |

तो गुरु जी ने उससे कहा एक काम करो यहां तो बनेगा नहीं तुम राशन ले लो और राशन लेकर जाओ नदी के किनारे बनाकर खा लेना | लेकिन ठाकुर जी को पहले भोग लगाना फिर तुम खाना । फिर दूसरे चेले को गुरु जी ने कहा की देखो ये बहुत ज्यादा खाता है तो इसे दो आदमी का राशन दे दो ।  राशन लेके वो नदी के किनारे आ गया फिर नहाकर जो दो आदमी का राशन था उसे बनाया और बनाने के बाद गुरु जी की बात याद आई कि बिना भगवान को भोग लगाए मत खाना । थाली में निकाल कर सामने रखा और कहने लगा कि राम जी पहले आप खा लीजिए फिर मैं खाऊंगा और ऐसे घंटे रटता रहा की राम जी पहले आप खा लीजिए फिर मैं खाऊंगा | लेकिन भगवान आए ही नहीं लेकिन वो फिर भी बार-बार बोल रहा है प्रभु राम जी आईये भोजन का भोग लगाइए लेकिन भगवान नहीं आए ।

अंत में उसे क्रोध आ गया और उसने बड़े तेज और गुस्से के स्वर में बोला की आखिरी बार बोलता हूं आना है कि नहीं आना है | इसके बाद में बोलूंगा नहीं और अगर आप यह सोचते हैं कि आपको आश्रम में मिल जाएगा तो मैं आपको बता दूं कि वहां आज कुछ नहीं बना है वहां के भरोसे बैठोगे तो भूखे ही रह जाओगे | मैं खुद इसीलिए यहां भाग कर आया हूं इसलिए अगर खाना खाना है तो सीधे आकर भोग लगाइए वरना मैं खाना शुरू कर दूंगा ।

भगवान श्री राम अपने भगत के इस सरल भाव पर मोहित हो गए। उसके इस सरल भाव से भगवान श्री राम उसके सामने साक्षात प्रकट हो गए। लेकिन वह भगवान को सामने देखकर खुश नहीं हुआ बल्कि दुखी हो गया क्यों?

क्योंकि उसने बुलाया था भगवान श्री राम को लेकिन भगवान राम और माता सीता जी दोनों आ गए | और अब वह यह सोचने लगा की दो ही आदमी का भाेजन है सब यही दोनों खा लेंगे तो हमारे लिए क्या बचेगा तो बड़े ही सरल भाव में भगवान से बोला कि आप दो लोग आ गए तो भगवान ने उत्तर दिया कि हम दोनों साथ में ही रहते हैं तो बोला गुरूजी तो नहीं बताए थे | वो बोले थे कि राम जी को भोग लगाना अच्छा अब आ गए हैं तो खा लीजिए । भगवान श्री राम और माता सीता ने भोजन ग्रहण किया और थोड़ा उसके लिए छोड़ दिया ।

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 बेचारा आधा पेट खाकर ही रह गया। उसके बाद उसने भगवान से पूछा की अगली एकादशी को आप ही दोनों लोग आएंगे न | तो भगवान बोले हां हम दो लोग ही आएंगे और कौन आएगा ।

अब अगली एकादशी आ गई वह फिर से गुरु जी के पास गया पर बोला कि गुरुजी पिछले एकादशी में आपने कहा था कि सिर्फ राम जी को भोग लगाना लेकिन राम जी और माता सीता दोनों आए थे मैं आधा पेट ही खाकर रह गया इसलिए अब की बार तीन लोग का राशन दीजिएगा गुरुजी ने सोचा लगता है भूखा रह गया होगा बहुत ज्यादा खाता है | तो बोले अच्छा ठीक है और अपने चेले को बोला इसको तीन लोगों का राशन दे दो ।

राशन लेकर गया मंदिर के तट पर फिर से बनाया और बनाकर थाली में निकाला और फिर से भगवान को बुलाने लगा । मेरे राम आईए सीता साथ लाइए भोजन का भोग लगाइए । भगवान फिर से प्रकट हो गए | लेकिन इस बार भगवान श्री राम और माता सीता जी के साथ लक्ष्मण जी भी आ गये । लक्ष्मण जी को देखकर वह आग बबूला हो गया और बोला ये कौन है तो राम जी ने कहा ये मेरे भाई हैं तो बोला पिछली बार तो नहीं आए थे | और आपको बताना चाहिए था पिछली बार की ये भी आएंगे | अच्छा ये भी खाएंगे क्या तो राम जी बोले अब आए हैं तो खाएंगे ही । बोला ठीक है खा लीजिए अब राम जी लक्ष्मण जी और सीता जी सभी ने भोग लगाया और उसके लिए फिर थोड़ा सा बचा | आधा पेट खाने के बाद उसने फिर से पूछा की अगली बार कौन-कौन आएगा आज ही बता दो मुझे और कितने लोग साथ में रहते हैं तो भगवान बोले कि कहीं भी देखोगे हम तीन लोग ही मिलेंगे और कोई नहीं है बोला अच्छा ठीक है |

फिर अगली एकादशी आई और वह गुरु जी के सामने खड़ा होकर फिर से बोला की गुरुजी नहीं हो पाया था जितना राशन आपने दिया था उसमें भी नहीं हो पाया था क्योंकि मैं सीता राम जी के लिए ले गया अब उनके साथ लक्ष्मण जी भी आ गए | मुझे फिर से आधा पेट खाकर रहना पड़ा । और मन ही मन सोचने लगा की कहीं इस बार फिर से एक लोग को बढ़ा कर न ले आए | तो इसलिए उसे उसने इस बार गुरु जी से कहा कि मुझे पांच लोगों का राशन दीजिए । तो गुरु जी सोचने लगे कि नहीं इतना तो नहीं खा सकता है लगता है ये राशन बेचने लगा है | अब इसको रंगे हाथों पकड़ना पड़ेगा गुरुजी ने उससे  कुछ नहीं कहा और दूसरे चेले को इशारा किया और बोले इसको पांच लोगों का राशन दे दो अब वह राशन लेकर गया तो उसके पीछे-पीछे गुरु जी भी चल दिये कि चलो देखू की इतने राशन का करेगा क्या | वहां पहुंचकर गुरु जी एक पेड़ के पीछे छुप कर बैठ गए और यह जाकर स्नान किया और स्नान करने के बाद भोजन नहीं बनाया | बनाने के पहले ही बुलाने लगा की देख लू कितने लोग आते हैं | लगा बुलाने कि मेरे राम आईए सीता राम आइए भैया साथ लाइए मेरे भोजन का भोग लगाइए आंख बंद करके ऐसे बोल ही रहा था कि भगवान प्रकट हो गए और इस बार राम जी के साथ-साथ माता सीता जी, भरत जी, लक्ष्मण जी, शत्रुघ्न जी  और हनुमान जी भी आ गए । तो फिर से गुस्से में बोला की अरे! बस करो आज तो आप लोगों ने हद कर दी | दो लोग बढ़े ही बढ़े लेकिन साथ में एक वानर भी लेकर आ गये । सबको देखकर वो चुपचाप बैठ रहा और कुछ नहीं बोल रहा है तो भगवान ने बोला कहां है खाना लाओ भोग लगाये । तो बोला आज तो मैंने भोजन बनाया ही नहीं जब मुझे पता है कि आज बनाने के बाद कुछ नहीं मिलने वाला है तो मैं क्यू बनाऊं पिछले बार तो कुछ मिल भी गया था इस बार तो कुछ नहीं मिलेगा | मैं पांच लोगो का राशन लाया हूं | छ: आप ही लोग आए हैं एक मैं सात तो आज कुछ मुझ मिलेगा ही नहीं और जब मिलेगा नहीं तो मैं क्यू मेहनत करू | ये रहा राशन खुद ही बनाओ और खाओ भोग लगाओ और जाओ ।

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उसके इस सरल भाव को सुनकर सभी भाव विभोर हो गए और सभी भगवान लोग मिलकर भोजन बनाने लगे। गुरुजी छिपकर उसे देख रहे थे और सोच रहे थे कि ये खाना बना क्यों नहीं रहा चुपचाप बैठा है | तो गुरुजी उसके पास गए और उसने जैसे ही गुरु जी को देखा उन्हें प्रणाम किया और गुरु जी ने उससे पूछा कि बेटा भोजन क्यों नहीं बना रहे हो तो वो बोला क्यों बनाऊ जब मुझे पता है कि भोजन बनाने के बाद मुझे मिलने वाला ही नहीं है तो मैं क्यों मेहनत करूं ये खुद ही बनाएंगे और भोजन करेंगे | तो गुरु जी ने बोला कि बेटा पांच लोगों का राशन लेकर आए हो अगर बनाओगे तो क्यों नहीं मिलेगा तो बोला गुरूजी आपको यह राशन दिखाई दे रहा है और यहां इतने सारे लोग आकर बैठे है वो नहीं दिखाई दे रहा । तो गुरुजी बोले कि मुझे तो कुछ नहीं दिखाई दे रहा है | कौन आया है ? तो बोला यहां राम जी, लक्ष्मण जी, सीता जी, भरत जी, शत्रुघ्न जी, और शायद ये हनुमान जी है | इतने सारे लोग आए हैं आपको नहीं दिख रहा हैं । तो गुरुजी फिर से बोले कि बेटा मुझे कुछ नहीं दिख रहा है | तो वो जाकर राम जी के सामने रोने लगा कि राम जी आज वैसे ही मुझे कुछ खाने को मिलने वाला नहीं है और ऊपर से आप गुरुजी को नहीं दिखाई दे रहे हो और गुरुजी सोच रहे हैं कि मैं झूठ बोल रहा हूं प्रभु इतनी बड़ी समस्या में मुझे क्यों डाले हैं आप ।

आप मेरे गुरु जी को क्यों नहीं दिख रहे हैं तो राम जी बोले कि मैं तुमको तो दिखूंगा लेकिन मैं तुम्हारे गुरु जी को नहीं दिखूंगा । अभी वह वापस अपने गुरु जी के पास आया और उनके पैर पड़कर बोलने लगा कि गुरु जी मेरा विश्वास करिए मैं झूठ नहीं बोल रहा हूं | सत्य मैं श्री राम जी पूरे परिवार के साथ बैठे हैं और मुझसे कह रहे हैं कि वह केवल मुझे दिखेंगे आपको नहीं दिखाई देंगे। गुरुजी यह बात सुनकर रोने लगे और शिष्य अपने गुरु के आंखों में आंसू बर्दाश्त नहीं कर पाया | वह फिर से गया श्री राम जी के चरणों को पकड़ कर रोने लगा और कहा प्रभु आप मुझे दिख रहे हैं मेरे गुरुदेव को क्यों नहीं दिख रहे | मैं तो कुछ नहीं करता केवल नकली साधु बना हूँ प्रभु भोजन करने के लिए मेरे गुरु जी तो कितने ज्ञानी गुरुजी हैं | हमेशा आपके भजन भाव में ही लगे रहते हैं आप इनको क्यों नहीं दिख रहे। तो श्री राम जी ने कहा बेटा की सत्य है कि तुम्हारे गुरु जी बहुत ज्ञानी है लेकिन बेटा जितने सरल तुम हो उतने सरल तुम्हारे गुरु जी नहीं है | इसलिए मैं केवल तुमको दिखाई दे रहा हूं तुम्हारे गुरु जी को नहीं दिखाई दूंगा। भगवान के चरणों को पकड़ कर रोने लगा और कहा कि मेरे लिए एक बार आप मेरे गुरु जी को दर्शन दीजिए | ऐसे वह शिष्य श्री राम प्रभु के चरण पकड़ कर जिद करने लगा और उसे सरल भक्त के भाव भक्ति से रीझ कर भगवान श्री राम ने पूरे परिवार के सहित पंचायतन दरबार के साथ उनके गुरुदेव भगवान को भी राम जी ने दर्शन दिया | उसे शिष्य के कारण गुरु जी को भगवान के दर्शन हुए और गुरु जी भी कृतार्थ हो गए |

|| एक बार अपनी जीभिया पवित्र करने के लिए कहिए – भक्त और भगवान की जय

|| जय श्री राम ||

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