अश्वत्थामा: अमर योद्धा और महाभारत का रहस्य
महाभारत के अमर योद्धा अश्वत्थामा की कहानी अनंत रहस्यों से भरी हुई है। वह न केवल एक महान योद्धा थे बल्कि अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए पांडवों के विरुद्ध भीषण विनाश मचाने वाला योद्धा भी। कई कथाएँ और किंवदंतियाँ आज भी यह दावा करती हैं कि अश्वत्थामा जीवित हैं और इस पृथ्वी पर भटक रहे हैं। आइए जानते हैं, इस रहस्यमयी योद्धा की अद्भुत और रहस्यमयी कहानी।
अश्वत्थामा कौन थे?
अश्वत्थामा महान गुरु द्रोणाचार्य और कृपि के पुत्र थे। उनके जन्म के समय एक विचित्र घटना हुई—उनकी चीख घोड़े की हिनहिनाहट जैसी थी, जिसके कारण उनका नाम “अश्वत्थामा” पड़ा। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अश्वत्थामा भगवान शिव का अंश माने जाते हैं। उनके माथे पर एक दिव्य मणि थी, जिसे भगवान शिव की तीसरी आंख का प्रतीक माना गया था। इस मणि ने उन्हें हर प्रकार के रोग और मृत्यु से सुरक्षा प्रदान की, जिससे उन्हें अमरत्व का वरदान मिला।
अश्वत्थामा और महाभारत का युद्ध
महाभारत के युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया और अपनी योद्धा-क्षमताओं से कई पांडव योद्धाओं को चुनौती दी।
- भीम, युधिष्ठिर, और धृष्टद्युम्न को युद्ध में कई बार हराया।
- वह घटोत्कच और उसकी राक्षसी सेना से भी नहीं डरे, जहाँ बाकी कौरव भाग खड़े हुए।
- जब अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की, तब अश्वत्थामा ने अर्जुन को रोकने का प्रयास भी किया।
नारायणास्त्र का प्रयोग
महाभारत के 14वें दिन, अश्वत्थामा ने अपना सबसे खतरनाक अस्त्र, नारायणास्त्र चलाया। यह ऐसा शस्त्र था जो सभी योद्धाओं का नाश कर सकता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने सैनिकों को हथियार त्यागकर भूमि पर लेटने की सलाह दी, जिससे वे बच गए।
पिता की मृत्यु से अश्वत्थामा का क्रोध
गुरु द्रोणाचार्य की मृत्यु अश्वत्थामा के जीवन का सबसे बड़ा आघात थी। श्रीकृष्ण ने युद्ध के दौरान एक छल का सहारा लेकर युधिष्ठिर से अश्वत्थामा की मृत्यु की झूठी खबर फैलाने को कहा। गुरु द्रोणाचार्य ने यह मान लिया कि उनका पुत्र मारा गया है और शस्त्र त्याग दिए, जिसके बाद धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया। ( इसे भी पढे- मथुरा और वृंदावन के प्रमुख मंदिर: आध्यात्मिक धरोहर और भक्ति के केंद्र )
अश्वत्थामा ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने का प्रण लिया।
पांडवों के शिविर में अश्वत्थामा का विनाश
महाभारत युद्ध के 18वें दिन, अश्वत्थामा ने रात्रि के अंधेरे में पांडवों के शिविर पर आक्रमण कर दिया।
- उसने धृष्टद्युम्न और पांडवों के पुत्रों का वध कर दिया।
- टेंटों में आग लगा दी, जिससे कई सैनिक सोते-सोते जलकर मर गए।
- गलती से, उसने पाँच पांडवों के बजाय उनके पुत्रों को मार दिया और उनका सिर दुर्योधन को सौंप दिया।
अश्वत्थामा को मिला श्राप
जब पांडवों को अपने पुत्रों की मृत्यु का पता चला, तो उन्होंने अश्वत्थामा का पीछा किया। अर्जुन ने उसे पकड़कर द्रौपदी के समक्ष प्रस्तुत किया, लेकिन द्रौपदी ने उसे माफ कर दिया।
तब श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्राप दिया:
“तुम हमेशा कुष्ठ रोग से पीड़ित रहोगे, तुम्हारी त्वचा से मवाद और खून बहता रहेगा। लोग तुमसे घृणा करेंगे, कोई तुम्हारी मदद नहीं करेगा, और तुम हजारों वर्षों तक भटकते रहोगे। मृत्यु भी तुम्हें नहीं मिलेगी।”
श्रीकृष्ण ने भीम से अश्वत्थामा के मस्तक की मणि उतारने का आदेश दिया। तब से यह माना जाता है कि अश्वत्थामा इस धरती पर अमर भटक रहे हैं।
अश्वत्थामा को देखे जाने के दावे
- मध्य प्रदेश के असीरगढ़ के किले में कई लोग अश्वत्थामा को देखने का दावा करते हैं।
- कहा जाता है कि जो भी उन्हें देखता है, वह मानसिक रूप से असंतुलित हो जाता है।
- नर्मदा नदी के किनारे, जबलपुर में भी अश्वत्थामा के भटकने की कहानियाँ प्रचलित हैं।
कई लोगों का मानना है कि वह कल्कि अवतार का इंतजार कर रहे हैं, ताकि संसार को मुक्ति दिला सकें।
महाभारत का अमर योद्धा: आज भी रहस्य
अश्वत्थामा का नाम इतिहास के उन पात्रों में आता है, जिनका अस्तित्व आज भी रहस्य बना हुआ है। वह न केवल युद्ध-कला में निपुण थे, बल्कि अपनी अमरता के कारण आज भी चर्चा का विषय हैं। कई सदियों से उनके जीवित होने के दावे किए जाते रहे हैं, लेकिन सच्चाई आज भी अनसुलझी है।
निष्कर्ष:
अश्वत्थामा की कहानी महाभारत के महानतम योद्धाओं में से एक की गाथा है, जो अपने क्रोध और पिता के प्रति प्रेम के कारण अमर श्राप का शिकार बन गया। उनकी अमरता और उनका रहस्य आज भी भारत के विभिन्न हिस्सों में चर्चा का विषय हैं।