आखिर क्यों भिखारी बनना पड़ा बलराम जी और श्री जगन्नाथ भगवान को

आखिर क्यों भिखारी बनना पड़ा बलराम जी और श्री जगन्नाथ भगवान को


परिचय

जगन्नाथ पुरी, जिसे श्री क्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है, भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है। यहां की पवित्र भूमि पर भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलराम और बहन सुभद्रा का निवास है। इस स्थान पर होने वाली लीलाएं न केवल धार्मिक बल्कि आध्यात्मिक और सामाजिक समरसता का भी संदेश देती हैं। यह कथा विशेष रूप से लक्ष्मी जी की कृपा और जगन्नाथ जी की करुणा का प्रमाण है, जो हमें जाति, वर्ग और भेदभाव से ऊपर उठने की प्रेरणा देती है।

जगन्नाथ पुरी: लक्ष्मी जी की अद्भुत कृपा और महाप्रसाद की महिमा


लक्ष्मी जी का भ्रमण और उनकी कृपा की खोज

अर्चकों के घरों का निरीक्षण

एक बार लक्ष्मी जी ने सोचा कि जगन्नाथ पुरी के निवासियों में से किस पर अपनी कृपा करें। उन्होंने सबसे पहले अर्चकों (पुजारियों) के घरों में प्रवेश किया।

  • क्या देखा?
    • सुबह देर तक सोने की आदत।
    • शुद्धता का अभाव।
    • एक ही वस्त्र कई दिनों तक पहनने की प्रवृत्ति।
    • धार्मिक कर्मकांड तो थे, लेकिन आत्मीयता और भक्ति की कमी थी।

लक्ष्मी जी ने यह सब देखकर कहा, “यह स्थान मेरे रहने योग्य नहीं है। यहां कृपा करना उचित नहीं।”


झाड़ू लगाने वालों के घर में प्रवेश

इसके बाद लक्ष्मी जी उन सेवकों के घर पहुंचीं, जो मंदिर की सफाई और झाड़ू लगाने का काम करते थे।

  • क्या देखा?
    • ब्रह्म मुहूर्त में जागना।
    • तुलसी को जल चढ़ाना।
    • घर में गोबर से लिपाई और स्वच्छता।
    • पवित्र और शुद्ध आचरण।
    • सीमित संसाधनों के बावजूद ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा।

लक्ष्मी जी ने यह देखकर कहा, “यही स्थान मेरी कृपा के योग्य है।”


लक्ष्मी जी का आशीर्वाद और साक्षात्कार

लक्ष्मी जी ने उन सेवकों के घर में प्रवेश किया और अपने दिव्य स्वरूप में प्रकट हुईं।

  • उन्होंने कहा, “तुम्हारा शुद्ध आचरण और ईश्वर के प्रति प्रेम ही तुम्हें श्रेष्ठ बनाता है। जाति या सामाजिक स्थिति का हमारे लिए कोई महत्व नहीं।”
  • उन्होंने घर में बने भोजन को प्रेमपूर्वक ग्रहण किया और आशीर्वाद दिया।


बलराम जी का क्रोध और असहमति

बलराम जी का विरोध

जब बलराम जी को यह पता चला कि लक्ष्मी जी झाड़ू लगाने वालों के घर गईं और वहां भोजन ग्रहण किया, तो वे क्रोधित हो गए।

  • उन्होंने कहा, “यह घर शुद्ध नहीं है। वहां भक्ष्य-अभक्ष्य का भेद नहीं होता। लक्ष्मी जी को ऐसा नहीं करना चाहिए था।”

बलराम जी की नाक फूल गई और उन्होंने प्रसाद ग्रहण करने से मना कर दिया।


लक्ष्मी जी का श्री क्षेत्र छोड़ना

लक्ष्मी जी का निर्णय

लक्ष्मी जी ने यह सोचकर श्री क्षेत्र छोड़ने का निर्णय लिया कि जब उनकी सेवा को सम्मान नहीं मिलता, तो वहां रहने का कोई अर्थ नहीं।

  • परिणाम:
    • मंदिर का वैभव खत्म हो गया।
    • सोने के सिंहासन और वस्त्र गायब हो गए।
    • अन्न और प्रसाद की व्यवस्था ठप हो गई।
    • मंदिर की रौनक चली गई।


जगन्नाथ और बलराम का भिक्षाटन

जब भोजन और अन्न का कोई उपाय नहीं रहा, तो भगवान जगन्नाथ और बलराम ने भिक्षाटन का निर्णय लिया।

  • वे छोटे बालकों का रूप धारण कर स्वर्ग आश्रम पहुंचे।
  • वहां एक महात्मा ने उन्हें “मूढ़ी” (चावल के फूले) भिक्षा में दी।
  • लक्ष्मी जी ने यह सब देखा और उनकी करुणा उमड़ पड़ी।


लक्ष्मी जी का संदेश और सुधार

लक्ष्मी जी ने बलराम जी और जगन्नाथ जी को समझाया:

  • “ईश्वर के लिए भक्त का आचरण, स्वभाव और शुद्धता ही महत्वपूर्ण है।”
  • “जाति और वर्ग के भेदभाव को समाप्त कर, हर भक्त को समान दृष्टि से देखना चाहिए।”

नए नियम की स्थापना

लक्ष्मी जी के कहने पर श्री क्षेत्र में नए नियम बनाए गए:

  1. महाप्रसाद का समान वितरण:
    • ब्राह्मण और शूद्र दोनों महाप्रसाद का समान रूप से ग्रहण करेंगे।
  2. समान पुण्य का फल:
    • महाप्रसाद का एक तिनका भी ग्रहण करने से तीर्थ यात्रा के समान पुण्य प्राप्त होगा।


महाप्रसाद की महिमा

महाप्रसाद के विशेष गुण

  • इसे ग्रहण करने से व्यक्ति को तीर्थ यात्रा और व्रत का पुण्य मिलता है।
  • जाति, वर्ग और सामाजिक स्थिति का कोई भेदभाव नहीं रहता।
  • इसे एक पत्तल में ब्राह्मण और शूद्र दोनों ग्रहण कर सकते हैं।

विशेष परंपरा

जगन्नाथ पुरी में महाप्रसाद के लिए कोई विशेष साधन नहीं करना पड़ता। इसे ग्रहण करने मात्र से भक्त के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।


निष्कर्ष

यह कथा हमें सिखाती है कि भक्ति और पवित्रता जाति या सामाजिक स्थिति से ऊपर हैं। भगवान जगन्नाथ की लीलाएं हमें सिखाती हैं कि हर व्यक्ति का मूल्य उसके कर्म और आचरण से होता है, न कि उसके जन्म से। लक्ष्मी जी की कृपा का यह अद्भुत उदाहरण हमें प्रेरित करता है कि हम भी अपने जीवन में शुद्धता और भक्ति को स्थान दें। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )


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