धनतेरस और दिवाली के रहस्य जो शायद ही किसी को पता हो

धनतेरस और दिवाली के रहस्य

भारत में दिवाली सिर्फ रोशनी का त्योहार नहीं है, बल्कि यह धर्म, परंपराओं, और पौराणिक कथाओं से भरी पांच दिवसीय यात्रा है। इस लेख में हम महाभारत की कहानियों और दिवाली की विभिन्न पौराणिक घटनाओं को गहराई से समझेंगे, जो इसे भारत का सबसे महत्वपूर्ण पर्व बनाती हैं।

धनतेरस और दिवाली के रहस्य


1. महाभारत और दिवाली का ऐतिहासिक जुड़ाव

पांडवों की अज्ञातवास के बाद वापसी

महाभारत में वर्णित है कि पांडवों ने 13 वर्षों का वनवास और एक वर्ष का अज्ञातवास पूरा करने के बाद कार्तिक अमावस्या के दिन इंद्रप्रस्थ लौटकर राज्य की पुनः स्थापना की। इस अवसर पर प्रजा ने दीप जलाकर राज्य को सजाया। यह वही दिन था जिसे आज दिवाली के रूप में मनाया जाता है, पांडवों की विजयी वापसी का प्रतीक। इस घटना को भी राम के अयोध्या आगमन के समान माना जाता है, जो दिवाली के उत्सव का मूल आधार है।


2. धनतेरस: समृद्धि और दीर्घायु का पर्व

धनतेरस का संबंध समुद्र मंथन से है, जिसमें धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे। इस दिन धन संपत्ति का पूजन और सोना-चांदी खरीदने की परंपरा है। महाभारत के यम-यमी प्रसंग से भी धनतेरस का संबंध स्थापित किया जाता है। कथा के अनुसार, यमराज ने इस दिन अपनी बहन यमी (या यमुनाजी) से भेंट की और उसे दीर्घायु का वरदान दिया। इसी कारण धनतेरस पर लोग अपने घरों में दीप जलाते हैं ताकि परिवार की लंबी उम्र और समृद्धि बनी रहे।


3. नरक चतुर्दशी और महाभारत का संबंध

नरक चतुर्दशी का सीधा संबंध नरकासुर वध की कथा से है, जिसमें भगवान कृष्ण ने राक्षस नरकासुर का अंत किया। नरकासुर ने 16,000 स्त्रियों को बंदी बना रखा था और उसके अत्याचार से सभी देवता परेशान थे। श्रीकृष्ण ने पत्नी सत्यभामा की सहायता से नरकासुर का वध कर बंदी स्त्रियों को मुक्त किया। इस दिन को बुराई के अंत और सत्य की विजय के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।

महाभारत संदर्भ:
इस घटना को महाभारत से भी जोड़ा जाता है, जहां कृष्ण ने युद्ध से पहले दुर्योधन और कौरवों के घमंड को तोड़ने के लिए कई प्रयास किए। नरक चतुर्दशी भी इसी भाव का प्रतिनिधित्व करती है—अहंकार का अंत।


4. दिवाली: लक्ष्मी पूजन और पांडवों की कथा

मुख्य दिवाली के दिन का संबंध माता लक्ष्मी के आगमन से है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुईं और भक्तों के घरों में समृद्धि का आशीर्वाद देने आती हैं। महाभारत में, पांडवों की वापसी को भी इसी दिन मनाया गया था, और उनकी विजय ने राज्य में समृद्धि और शांति लाई थी।

इस दिन दीयों का महत्व केवल रोशनी फैलाने के लिए नहीं है, बल्कि यह जीवन से अज्ञान और अंधकार को दूर करने का प्रतीक है, जैसे कि पांडवों ने कौरवों के अन्याय और अंधकार को समाप्त किया था।


5. गोवर्धन पूजा और महाभारत का संदर्भ

गोवर्धन पूजा का संबंध भगवान कृष्ण द्वारा इंद्र के घमंड को तोड़ने और गोवर्धन पर्वत उठाने की घटना से है। यह घटना महाभारत के कालखंड से भी जुड़ी मानी जाती है, जब श्रीकृष्ण ने पांडवों को युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए कई रणनीतिक सुझाव दिए थे। गोवर्धन पूजा भी इसी संदेश का प्रतीक है—अहंकार और बुराई का विनाश।


6. भाई दूज: यमराज और यमी का प्रेम

दिवाली का पांचवां दिन भाई दूज है, जिसे यमद्वितीया भी कहा जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और सफलता की कामना करती हैं। महाभारत की कथाओं के अनुसार, इस दिन यमराज ने अपनी बहन यमी से भेंट की थी, जिन्होंने उन्हें तिलक कर प्रसन्नता से स्वागत किया था। यह पर्व भाई-बहन के प्रेम का प्रतीक है।


महाभारत की कहानियों में निहित दिवाली के मूल्य

दिवाली का महत्व केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सदाचार, नैतिकता, और अहंकार के त्याग का गहरा संदेश छिपा है। महाभारत की कहानियां हमें सिखाती हैं कि जीवन में जीत केवल बाहरी युद्धों में नहीं, बल्कि भीतर के अज्ञान और अहंकार पर विजय प्राप्त करने में है। यही दिवाली का वास्तविक संदेश है—अज्ञान और बुराई का अंत और प्रेम, प्रकाश, तथा शांति का स्वागत।


निष्कर्ष: महाभारत और दिवाली का संपूर्ण चित्रण

दिवाली महाभारत, रामायण, और अन्य पौराणिक कथाओं से प्रेरित एक ऐसा पर्व है, जो हमें जीवन में धर्म, सत्य, और अहंकार-मुक्ति का महत्व सिखाता है। चाहे पांडवों की वापसी हो या नरकासुर का वध, हर कहानी हमें यह समझाती है कि असत्य और अहंकार पर विजय ही असली सफलता है। दिवाली के विभिन्न दिन सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में संतुलन और प्रकाश लाने का संदेश देते हैं।

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