भगवान तो भक्त के ह्रदय का भाव ही देखते हैं लेकिन आज कल के दौर में हम भगवान की पूजा करने के लिए पता नहीं किन किन पंडितों से तरीका पूछते है, गूगल पर सर्च करते है, यूट्यूब पर सर्च करके ढूंढते है | उन्हे मिलता भी बहुत कुछ है और शायद उसी के हिसाब से लोग आज कल पूजा भी करते है और इन सब में वो अपने भाव को भूल जा रहे है | उन्हे इस बात का तो एहसास होता है कि उनको जैसा बताया गया वैसा पूजा किया उन्होंने लेकिन फिर भी क्यों उन्हे उसके फल की प्राप्ति नहीं हुई | इसी के संबंध में श्री धाम वृन्दावन की ये सच्ची घटना है जो हमे इस का बोध करवाती है कि हमारे किसी भी प्रकार के पूजा में हमारे भाव की सबसे ज्यादा प्रधानता है अगर भाव सच्चे है तो भगवान हमारी विनती सुनते है | आईए जानते है ऊक भक्त के बारे में कथा –
भक्त के ह्रदय का भाव-
संत बताते है कि एक व्यक्ति श्री धाम वृन्दावन दर्शन करने गया उसने दर्शन किये भगवान को भोग लगाया और जब वह वापस लौट रहा था तभी श्री धाम वृन्दावन में उसकी नजर एक महात्मा में पड़ी जो अपने कुटिया के बाहर बैठ कर एक पद का गायन कर बिहारी जी को सुना रहे थे | पद के गायन में महात्मा कह रहे थे कि हो… नयन हमारे अटके श्री बिहारी जी के चरण कमल में और बार बार यही पाद वो धोहरा रहे थे | उस व्यक्ति ने महात्मा जी के मुख से जब यह पद सुना तो वह आगे नहीं बढ़ पाया और वही स्तम्भ होके महात्मा जी के इसी पद को सुनने लगा |
और कुछ समय पश्चात वह महात्मा जी के साथ-साथ पद गाने लगा | कुछ देर बीता तो वह यही पद गाता अपने घर की ओर चल पड़ा और सोच रहा था कि वाह ! संत ने बड़ा ही सुंदर पद गाया | लेकिन घर पहुचने के कुछ देर बाद वह पद की लाइन भूल गया तो वह याद करने की कोशिश करने लगा कि आखिर संत क्या गा रहे थे बहुत देर तक बाद करने के बाद भी उसे याद नहीं आ रहा था | तो कुछ देर बाद उसने गाया… “हो… नयन बिहारी जी के अटके, हमारे चरण कमल में” उल्टा गाने लगा …!! उसे गाना था नयन हमारे अटके श्री बिहारी जी के चरण कमल में अथार्थ बिहारी जी के चरण कमल इतने प्यारे है कि नजर उनके चरणो से हटती ही नहीं है | नयन मानो वही पर अटक के रह गए है | पर वो व्यक्ति जो गा रहा था कि “नयन बिहारी जी के अटके, हमारे चरण कमल में” अथार्थ बिहारी जी के नयन हमारे चरणो में अटके गए, ये पंक्ति उस व्यक्ति को इतनी अच्छी लगी वह निरंतर बस यही गाने लगा |
भाव के भूखे हैं भगवान-
उस व्यक्ति की आंखे बंद है बिहारी जी के चरण हृदय में सुसज्जित है और बड़े ही भाव से गाये जा रहा है | क्योंकि बिहारी जी भाव के भूखे है न कि आपके फल, मेवे, प्रसाद के | जब उस व्यक्ति ने 11 बार ये पंक्ति गाई, तो वह क्या देखता है कि सामने साक्षात बिहारी जी खड़े है यह देख वह झट से उनके चरणो में गिर पड़ा | तो बिहारी जी ने बोला भईया ! एक से बढ़कर एक भक्त हुए मेरे, लेकिन तुम जैसा भक्त मिलना बड़ा ही मुश्किल है | लोगों के नयन तो हमारे चरणो में अटक जाते है पर तुमने तो हमारे ही नयन अपने चरणों में अटका दिए | और जब नयन अटक ही गए तो फिर दर्शन देने कैसे ही नहीं आता | भगवान अपने उस भक्त से मिलकर बड़े प्रसन्न हो गए |
वास्तविकता यह है कि बिहारी जी ने उसके शब्दों की भाषा सुनी ही नहीं क्योंकि हमारे बाँके बिहारी जी शब्दों की भाषा जानते ही नहीं है | उन्हे तो बस एक ही भाषा आती है वो है भाव की भाषा | भले ही उस व्यक्ति ने उल्टा गाया लेकिन बिहारी जी ने उसके भाव को देखा कि उनके उस भक्त के भाव का क्या है | वो कहना क्या चाहता है अपने शब्दों के माध्यम से | सच तो यही है कि भगवान तो भक्त के हृदय का भाव ही टटोलते है | क्योंकि मुझे लगता है और संत बताते है हम परमात्मा के इच्छा के बिना एक श्री राधा कृष्ण नाम भी मुख से नहीं बोल सकते है | इसमे भी उन्ही की इच्छा है और मैं यही कहूँगा की अगर हम भगवान का नाम ले रहे है उनकी भक्ति भाव कर रहे है तो इसका सीधा सा मतलब है कि भगवान ने हमे, आपको अपनी भक्ति के लायक समझा हमे उनकी कृपामई भक्ति के लिए चुना है |
इसलिए अपने भक्ति को अपने भाव को बिना किसी से पूछे अपने अंतर्मन से पूछ कर करे | आपको ना किसी पड़ित, न यूट्यूब न गूगल किसी की जरूरत नहीं है | आप बस अपने भाव से भगवान को रिझाये | आपके भाव से वे आपकी व्यथा को सिर्फ सुनेगे नहीं बल्कि उसे दूर भी करेंगे | “भाव सर्वोपरि है”
ऐसे ही भाव का बहुत सुंदर भजन है पड़े और सुने – आता रहा है सांवरा आता ही रहेगा लीरिक्स