श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की सच्ची घटना
श्री बाँके बिहारी जी मंदिर में श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की सच्ची घटना जो आपकी आंखे नम कर देगी |ये एक ऐसी कथा है जिसे सुनकर आप भाव विभोर होने वाले है | बस प्रेम से ठाकुर जी को ध्यान मे रखकर पढ़िएगा | ये कथा आपको Goosebumps देने वाली है | ये कथा श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी की सत्य घटना पर रचित है | मैने जअब ये कथा का श्रवण किया तो मेरे आँखों में आँसू और दिल में बस एक ही बात थी हाए क्या कृपा मेरे मालिक का इतना दयालु कोई कैसे हो सकता है ? जितने दयालु मेरे ठाकुर श्री बाँके बिहारी जी है | इस कथा में श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी के जीवन में घटित एक चमत्कारिक कृपा का वर्णन किया गया है |
श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी बताते है कि बसंत ऋतु का समय था ब्रज में होली होली का आरंभ हो चुका था | तो एक दिन श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी, ठाकुर श्री बाँके बिहारी जी की शयन सेवा के लिए मंदिर गए | शयन आरती के समय स्वयं ही श्री बाँके बिहारी जी की आरती की और आरती होने के बाद श्री बाँके बिहारी जी को गर्भ ग्रह से अंदर लेकेर गए जहाँ उन्होंने ही बिहारी जी के सभी पोशाक बड़े ही लाड प्यार से उतारे | एक तो होली का समय था बिहारी जी ने खूब होली खेल रखी थी जिससे बिहारी जी गुलाल के रंग में रंगे हुए थे | इसलिए श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी द्वारा उन्हे पहले स्नान करवाकर अच्छे से पोंछा और फिर आराम करने के लिए चंदन के पालने की शैया पर लिटा दिया |
बिहारी जी की इत्र सेवा
बिहारी जी अपने भक्तों के लिए पूरे दिन खड़े रहते है और अभी तो होली खेल कर और भी थक गए होंगे इसलिए वो बिहारी जी के चरणो के पास बैठकर बिहारी जी के चरण दबाने की सेवा करने लगे | अपने साथ ही अपनी माला, झोली में ही इत्र की शीशी भी लेकर गए थे | श्री बाँके बिहारी मंदिर का एक नियम कि जब भी ठाकुर जी को सुलाते है और जब सुबह में उठाते है तो उनके पैरों पर इतर की मालिश करते है | क्योंकि बिहारी जी मंदिर में इत्र के मालिश की बड़ी महिमा है | और कभी अगर बिहारी जी की कृपया से आपको भी इस सेवा का अवसर मिले तो हाथों से अंगूठी भी उतार दे इसका भाव यही है कि ठाकुर जी को कोई आहात ना हो कोई कष्ट ना हो | (दास बनकर जनाबाई की सहायता करते थे भगवान)
जब गौरव कृष्ण गोस्वामी जी ने इत्र की शीशी निकाली तो देखा कि वो इत्र केसर का था | और वो इत्र मगवाया भी गोस्वामी जी ने ही था | लेकिन अभी केसर का इत्र लगाने का समय ये नहीं था | जब बहुत ठंडी पड़ती है तब बिहारी जी को केसर का इत्र लगाया जाता है | अब तो मौसम बदल चुका था गर्मी पड़ रही थी | ये सब सोचकर गौरव कृष्ण गोस्वामी जी बड़ा दुख हुआ और सोचने लगे कि मैंने घर से क्यों नहीं देखकर लाया की इत्र कौन सा है |
काफी दुखी मन से गोस्वामी जी कहते है कि इस समय ठाकुर जी को विशेष रूप से गुलाब का इत्र लगाया जाता है | केवल गुलाब का एक मात्र एटर बिहारी जी को पूरे साल लगाया जाता है | वरना तो गर्मियों मैं खस का लगता है, मिट्टी का भी इत्र लगता है, जो ब्रज के रज से बनता है | लेकिन केसर नहीं लगाया जाता है | गलती से केसर की शीशी आ गई थी यही सोच कर गोस्वामी जी के आँखों से आँसू गिरने लगे और सोचने लगे कैसे मैं इत्र लगाऊँगो अपने ठाकुर जी को | बड़े भाव लेकर आया आज मंदिर की बिहारी जी की शयन सेवा करूंगा मालिश करूंगा प्रबु की |
बिहारी जी की अद्भुत लीला
यही सोचते सोचते गौरव कृष्ण गोस्वामी जी अपने आराध्य बिहारी जी की चरण दबाने की सेवा करते रहे क्योंकि केसर का इत्र बिहारी जी को लग नहीं सकता था | रात भी ज्यादा हो गई है मँगवाए तो मँगवाए किससे | गौरव कृष्ण गोस्वामी जी बताते है कि बंधुओ बिहारी जी के सेवा के समय उनके साथ एक और गोस्वामी जी भी थे | तो गोस्वामी जी ने कहा देख लाला तोकू कोई भण्डारी बाहर बुला रहे है | तो गौरव कृष्ण गोस्वामी जी उठकर गए तो देखा एक भण्डारी जी बाहर खड़े थे | वो बोले लाला ये लो गुलाब के इत्र की शीशी है | गौरव कृष्ण गोस्वामी जी एकदम चौक गए अरे!
फिर उन्होंने भण्डारी जी से पूछा कि ये आप कहां से लाए ? तो उन्होंने उत्तर दिया ये गुलाब के इत्र की शीशी आपने नहीं मँगवाई है क्या ? ( भक्त कर्मा बाई की कहानी )
तो गोस्वामी जी ने कहां- मैंने तो नहीं मगवायी | तो भण्डारी जी ने कहां लाला- बाहर अभी अभी एक लड़का मिला मुझे
उसने कहां अंदर गोस्वामी जी है मैं उनके भजन सुनता हुँ उनकी कथा सुनता हुँ | मुझे बहुत अच्छे लगते है उनके भजन उनकी कथा उनके भाव और उन्होंने ने ही मुझसे ये गुलाब के इत्र की शीशी मँगवाई है | तो क्या आप ये इत्र की शीशी गोस्वामी जी को दे दोगे अंदर |
तो उस भण्डारी ने गोस्वामी जी को गुलाब के इत्र की शीशी दी और वो जाने लगे तो गोस्वामी जी ने आवाज लगाई और पूछा वो लड़का कौन था ? कौन लेकर आया था इत्र क्योंकि गौरव कृष्ण गोस्वामी जी एकदम से हैरान हो गए थे | तो भण्डारी ने कहां वो बाहर ही मैं उसे भीतर लेकर आता हुँ | लेकिन भण्डारी जी को बाहर कोई नहीं मिला | इस कृपामयी भाव के चलते गौरव कृष्ण गोस्वामी जी के पूरे शरीर में कंपन हो गया |
फिर ठाकुर जी की उसी इत्र से मालिश की | बाँके बिहारी जी की मालिश तो हुई सो हुई लेकिन गौरव कृष्ण गोस्वामी जी बिहारी जी के चरणो मै बैठ कर बहुत रोये | ऐसी कृपालु है, ऐसे सरल स्वभाव के है हमारे बाँके बिहारी जी |
श्री गौरव कृष्ण गोस्वामी जी कहते हैं कि यदि आप दिल से, भाव से भगवान की भक्ति करते हैं और आपकी कोई भगवान के लिए चाह है तो बाँके बिहारी उसे पहले ही पूरा करने के लिए बैठे हैं। बस आप भगवान से अपनी लौ लगाए रहें।
ठाकुर श्री बांकेबिहारी लाल की जय ।