ठाकुर जी और कुंभन दास जी की मक्खन चोरी की कथा: भक्त और भगवान का प्रेमपूर्ण संबंध
परिचय
यह कथा श्रीनाथ जी और गोवर्धन की एक सखी के बीच घटित हुई, जो भक्त और भगवान के प्रेमपूर्ण संबंध का अद्भुत उदाहरण है। सखी के प्रेम और समर्पण ने भगवान को उसके घर माखन चुराने आने पर विवश कर दिया। इस कथा में भगवान और भक्त के बीच के सजीव संवाद और घटनाएं हमें यह सिखाती हैं कि भक्ति में केवल प्रेम और भावना का महत्व है।
सखी का विचार: माखन से ठाकुर जी को आकर्षित करना
सखी ने कथा में सुना कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण गोपियों के घर माखन चुराने जाते थे। उसने सोचा, “अगर ठाकुर जी गोपियों के घर माखन चुराने जा सकते हैं, तो मेरे घर क्यों नहीं आएंगे?”
उसने धौरी गाय के दूध से दही जमाया, और उसे मथकर शुद्ध मक्खन निकाला। मक्खन को मटकी में सजा दिया और उसे छत के छींके पर लटका दिया। लेकिन सखी को चिंता हुई, “ठाकुर जी को कैसे पता चलेगा कि मैंने माखन निकाला है?”
मंदिर में सखी का प्रयास
सखी ने श्रीनाथ जी के मंदिर जाकर अपने मक्खन को ठाकुर जी को दिखाने का निश्चय किया। रोज वह दर्शनार्थियों के साथ मंदिर जाती, पीछे खड़ी होकर मटकी में रखा मक्खन ठाकुर जी को दिखाती और कहती,
“लाला, यह देखो! यह मक्खन मैंने तुम्हारे लिए बनाया है। इसे मैं अपने घर के छींके पर लटका दूंगी। तुम्हें इसे चोरी करके खाना होगा।”
सखी ने ठाकुर जी को रास्ता भी बताया:
“मंदिर से सीधे जाओ, फिर पोखर आएगा। वहां से दाएं मुड़ना, फिर बाएं। वहां मेरा घर है। रात में सब सो जाएं, तब आना।”
सखी का इंतजार और ठाकुर जी की परीक्षा
रोज सखी सुबह उठकर मटकी उतारती और देखती कि मक्खन जस का तस है। उसने फिर मंदिर जाकर कहा,
“लाला, यह मक्खन तुम्हारे लिए है। क्यों नहीं आते? क्या मेरा मक्खन तुम्हें अच्छा नहीं लगता?”
इस बीच, ठाकुर जी सखी के प्रेम को देख लोभित हो गए। लेकिन उन्होंने कुंभन दास जी से कहा,
“मैं कलियुग में अकेला चोरी करने जाऊंगा, तो पकड़ा जाऊंगा। लोग कहेंगे कि भगवान भी चोरी कर रहे हैं। तुम साथ चलो।”
कुंभन दास जी ने कहा,
“नाथ, द्वापर युग में आप चोरी करते थे। अब कलियुग में यह संभव नहीं है।” ( डाकुओं ने जब एक भक्त के हाथ पैर काट कर जंगल में फेंक दिया )
रात्रि की चोरी की योजना
रात्रि में जैसे ही मंदिर के कपाट बंद हुए, कुंभन दास जी खिड़की के पास खड़े हो गए। उन्होंने देखा कि श्रीनाथ जी सचल (चलते हुए) रूप में मंदिर से बाहर निकले और उनके कंधे पर चढ़ गए। ठाकुर जी ने रास्ता बताया:
“आगे पोखर आएगा, वहां से दाएं मुड़ना। फिर बाएं, और वहां सखी का घर है।”
कुंभन दास जी ने निर्देशों का पालन किया और सखी के घर पहुंचे।
माखन चोरी की लीला
सखी के घर पहुंचकर ठाकुर जी ने कुंभन दास जी को छींके के पास खड़ा किया और उनके कंधों पर चढ़ गए। उन्होंने मटकी से मक्खन निकाला और खुद खाया। इसके बाद उन्होंने कुंभन दास जी को भी खिलाया।
माखन खाते-खाते ठाकुर जी ने चार भुजाएं धारण कर लीं। दो भुजाओं से अपनी धोती संभाली और दो भुजाओं से मटकी पकड़ी। कुंभन दास जी ने कहा,
“चतुर्भुज रूप तो बहुत देखे, लेकिन माखन चुराने वाले चतुर्भुज पहली बार देखे।”
सखी की जागृति और कुंभन दास जी पर गुस्सा
मटकी की आवाज से सखी जाग गई। उसने सोचा, “चोर आया है!” वह डंडा लेकर बाहर आई। उसने देखा कि कुंभन दास जी बेसुध पड़े हैं।
सखी ने कुंभन दास जी से कहा,
“बाबा, आप तो मंदिर में कीर्तन करते हैं। यहां चोरी करने क्यों आए?”
कुंभन दास जी ने कहा,
“सखी, तू धन्य है। नंदलाल खुद तेरे घर आए और तेरा यश गाया। यह तेरा सौभाग्य है।”
कथा का संदेश
यह कथा सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों के प्रेम और भावनाओं को समझते हैं। उनका उद्देश्य केवल भोग स्वीकार करना नहीं, बल्कि भक्त के मन को प्रसन्न करना है। भक्ति में दिखावा नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण होना चाहिए।
निष्कर्ष
श्रीनाथ जी और सखी की यह कथा भक्त और भगवान के प्रेमपूर्ण संबंध का अनुपम उदाहरण है। यह दिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की भावनाओं को सबसे अधिक महत्व देते हैं।
जय श्रीनाथ जी। ( इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )
FAQs (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. यह कथा किसके बारे में है?
यह कथा श्रीनाथ जी और उनकी एक सखी की है, जिसमें भगवान ने भक्त के घर जाकर मक्खन चुराया।
2. ठाकुर जी ने मक्खन क्यों चुराया?
सखी ने ठाकुर जी को प्रेमपूर्वक मक्खन चुराने के लिए बुलाया था।
3. कुंभन दास जी की भूमिका क्या थी?
कुंभन दास जी ने ठाकुर जी के साथ सखी के घर जाकर मक्खन चुराने में सहायता की।
4. इस कथा से क्या संदेश मिलता है?
यह कथा सिखाती है कि भगवान अपने भक्तों की भावनाओं को समझते हैं और उनके प्रेम का आदर करते हैं।
5. यह कथा किस प्रकार भक्ति का महत्व बताती है?
यह कथा दिखाती है कि सच्ची भक्ति में दिखावा नहीं, बल्कि भगवान के प्रति पूर्ण प्रेम और समर्पण होना चाहिए।