डाकुओं ने जब एक भक्त के हाथ पैर काट कर जंगल में फेंक दिया

डाकुओं ने जब एक भक्त के हाथ पैर काट कर जंगल में फेंक दिया


परिचय

श्री जयदेव महाप्रभु, भगवान जगन्नाथ के परम प्रिय भक्त और भारतीय भक्ति साहित्य के महान संत थे। उनके द्वारा रचित गीत गोविंद आज भी भक्तों के लिए प्रेरणा का स्रोत है। उनकी रचनाएं न केवल भगवान की लीलाओं का वर्णन करती हैं, बल्कि भक्ति और करुणा का मार्ग भी दिखाती हैं। इस लेख में, हम उनके जीवन की एक ऐसी घटना का वर्णन करेंगे, जो उनकी भक्ति, दया और क्षमा की अद्भुत मिसाल है।

Jaidev Mahaprabhu Ki katha


श्री जयदेव महाप्रभु का जीवन परिचय

श्री जयदेव महाप्रभु का जन्म आज से लगभग 1000 वर्ष पूर्व हुआ। वे बाल्यकाल से ही विद्वान, सरल और धार्मिक प्रवृत्ति के थे। भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी अनन्य भक्ति ने उन्हें भक्ति साहित्य का एक अमूल्य रत्न बना दिया।

उन्होंने गीत गोविंद की रचना की, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी की दिव्य लीलाओं का अद्भुत वर्णन है। उनके पद और भजनों में प्रेम, भक्ति और भगवान के प्रति समर्पण का संदेश मिलता है।

Jaidev Mahaprabhu Ki katha


डाकुओं के साथ जयदेव महाप्रभु की घटना

रात्रि में डाकुओं का सामना

एक बार, जयदेव महाप्रभु अपने शिष्य के घर से भोजन कर लौट रहे थे। आधी रात का समय था, और वे एक घने जंगल से गुजर रहे थे। तभी कुछ डाकुओं ने उनके रथ को रोक लिया।

महाप्रभु की दया और सरलता

डाकुओं ने उनके धन और रथ को लूट लिया। जयदेव महाप्रभु ने बिना किसी विरोध के कहा:
“जो कुछ भी मेरे पास है, वह आपका है।”
डाकुओं ने सोचा कि जयदेव महाप्रभु उन्हें पहचान गए हैं। उन्होंने आपस में विचार किया कि यदि यह जीवित रहा, तो सुबह राजा के सैनिकों को सूचना देकर हमें पकड़वा देगा।

डाकुओं की क्रूरता

डाकुओं ने जयदेव महाप्रभु के दोनों हाथ और पैर काट दिए और उन्हें एक कुएं में फेंक दिया।

भक्ति का अद्भुत उदाहरण

कुएं में पड़े हुए भी जयदेव महाप्रभु ने भगवान जगन्नाथ का स्मरण करते हुए कहा:
“प्रभु, आपने मुझे अपने जैसा बना दिया। अब मैं भी आपके समान हूं।”
उनकी भक्ति और समर्पण अद्वितीय था।


राजा द्वारा महाप्रभु की सेवा

राजा का आगमन

सुबह के समय, एक राजा उस रास्ते से गुजरा। उसने कुएं से भजन की आवाज सुनी और तुरंत अपने सैनिकों को जयदेव महाप्रभु को बाहर निकालने का आदेश दिया।

चिकित्सा और सेवा

राजा ने तुरंत वैद्य बुलाकर जयदेव महाप्रभु की चिकित्सा करवाई। उसने महाप्रभु को अपने राज्य में रहने का आग्रह किया।

गीत गोविंद का पाठ

राजा, जो स्वयं गीत गोविंद का भक्त था, यह नहीं जानता था कि जिनकी वह सेवा कर रहा है, वे स्वयं जयदेव महाप्रभु हैं।


डाकुओं का प्रायश्चित

डाकुओं का ब्राह्मण वेश में आगमन

कुछ समय बाद, वही डाकू ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा के पास पहुंचे। उन्होंने राजा से धन और दान मांगा। जैसे ही उन्होंने सिंहासन के पास बैठे जयदेव महाप्रभु को देखा, वे भयभीत हो गए।

महाप्रभु का क्षमा भाव

जयदेव महाप्रभु ने राजा से कहा:
“ये मेरे बड़े गुरु भाई हैं। इनका भव्य सत्कार करो।”
राजा ने उनका आदर किया, चरण धोए, और उन्हें मनचाहा धन दिया।

दैवी न्याय

डाकुओं ने राजा के सैनिकों को झूठी कहानी सुनाई कि जयदेव महाप्रभु ने गुरु की आज्ञा का उल्लंघन किया था। यह झूठ सहन नहीं हुआ, और पृथ्वी ने उन चारों डाकुओं को अपने भीतर समा लिया।


महाप्रभु का संदेश

क्रोध पर नियंत्रण

जयदेव महाप्रभु ने राजा से कहा:
“कभी भी किसी के क्रोध पर प्रतिक्रिया मत दो। प्रकृति स्वयं समय आने पर न्याय करती है।”

झूठ का परिणाम

उन्होंने यह भी बताया कि पृथ्वी सब प्रकार के पापों को सह सकती है, लेकिन झूठ को सहन नहीं कर सकती। इसे भी पढे- मां शाकंभरी देवी की परम आनंदमयी कथा )


शिक्षाएं जो हमें श्री जयदेव महाप्रभु से मिलती हैं

  1. भक्ति और समर्पण
    • भगवान पर अटूट विश्वास रखने से हर कठिनाई का समाधान हो सकता है।
  2. क्षमा का महत्व
    • दूसरों को क्षमा करना आत्मा को शुद्ध करता है।
  3. सत्य का पालन
    • सत्य की राह पर चलना ही सच्चा धर्म है।
  4. प्रकृति का न्याय

निष्कर्ष

श्री जयदेव महाप्रभु का जीवन एक प्रेरणा है। उनकी दया, क्षमा और भगवान के प्रति उनका अटूट प्रेम हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और सरलता से ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।


 

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