एक मोची पर रीझ गए ठाकुर जी : अद्भुत कथा भक्त रामदास की भक्ति की कहानी
परिचय
भक्ति किसी जाति, पद, धन-संपत्ति या शास्त्र ज्ञान की मोहताज नहीं होती। यह तो हृदय की शुद्धता और प्रभु के प्रति प्रेम पर निर्भर करती है। कई भक्तजन इस बात को प्रमाणित कर चुके हैं, और उन्हीं में से एक महान भक्त थे रामदास जी। यह कथा बताती है कि कैसे उनकी सरल भक्ति और प्रेम ने स्वयं भगवान को प्रसन्न कर दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति वह होती है, जो अहंकार रहित हो, जिसमें केवल प्रभु प्रेम हो।
भक्त रामदास जी का जीवन परिचय
रामदास जी गोदावरी नदी के किनारे स्थित कनकावती नामक नगरी में रहते थे। उनका जीवन अत्यंत सरल और साधारण था। वे एक गरीब चर्मकार थे, जो दूसरों के फटे-पुराने जूते ठीक करके अपनी जीविका चलाते थे। उनके पास पहनने के लिए अच्छे वस्त्र भी नहीं थे। लेकिन उनके मन में अद्भुत भक्ति भाव था।
- वे भगवत आश्रित थे, उनके पास सांसारिक कोई बड़ी संपत्ति नहीं थी।
- सत्संग में वे हमेशा सबसे पीछे बैठते और जो भी बातें समझ में आतीं, वे उन्हें ग्रहण कर लेते।
- लेकिन जब भगवान के नाम का कीर्तन होता, तो वे खुशी से झूमने लगते और नृत्य करते।
- उनका एक ही भाव था:
“हे हरि, मैं जैसो तैसो तेरो!”
यह एकमात्र वाक्य ही उनके भजन, उनकी प्रार्थना और उनके जीवन का सार था। वे इस पंक्ति को बार-बार गुनगुनाते, जिससे उनका मन पवित्र होता गया।
रामदास जी को मिले शालिग्राम भगवान
चोरों की मंडली और चमत्कारी पत्थर
एक दिन, कुछ चोर एक धनी व्यक्ति के घर से चोरी करके आए। उन्होंने वहाँ शालिग्राम भगवान को एक स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान पाया।
- चोरों ने सिंहासन को तो बेच दिया, लेकिन उन्हें समझ नहीं आया कि यह काला पत्थर क्या है।
- उन्हें वह पत्थर बेकार लगा, और उन्होंने इसे बेचने का विचार किया।
- जब वे रामदास जी को जूते सुधारते देख रहे थे, तब उन्होंने उन्हें यह पत्थर देने का प्रस्ताव रखा।
- चोर बोले, “अगर तुम हमें नए जूते दे दो, तो हम तुम्हें यह चिकना पत्थर दे देंगे। तुम इसे अपने औजार घिसने के काम में ले सकते हो।”
- रामदास जी को लगा कि यह पत्थर औजार धार देने के लिए अच्छा है, इसलिए उन्होंने सहर्ष ले लिया।
शालिग्राम पर आँसू बहाना और चरणों में रखना
अब रामदास जी अपने औजार इस पत्थर पर घिसते थे और साथ ही भावविह्वल होकर भगवान को पुकारते,
“हे हरि, मैं जैसो तैसो तेरो!”
- उनके आँसू शालिग्राम भगवान पर गिरते रहते।
- जब ज्यादा ज़ोर से घिसने की जरूरत होती, तो वे शालिग्राम भगवान को अपने पैरों के बीच में रखकर औजार घिसते।
- भगवान को यह स्नेहपूर्ण स्पर्श अत्यधिक प्रिय था।
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रामदास जी से शालिग्राम भगवान को पंडित ने लिया
पंडित जी की शालिग्राम पर दृष्टि पड़ना
एक दिन, एक ब्राह्मण (पंडित जी) रामदास जी के पास अपनी पादुका (जूती) ठीक कराने आए।
- उन्होंने जब शालिग्राम भगवान को देखा, तो पहचान लिया कि यह कोई साधारण पत्थर नहीं, बल्कि साक्षात भगवान विष्णु का स्वरूप है।
- उन्होंने आश्चर्य से कहा, “अरे, यह क्या कर रहे हो? यह तो स्वयं भगवान हैं!”
- पंडित जी बोले, “मैं इसे ले जाना चाहता हूँ, तुम्हें जितने पैसे चाहिए, मैं दूँगा!”
रामदास जी ने शालिग्राम को पंडित जी को दे दिया
रामदास जी ने उत्तर दिया,
“मैंने इसे चोरों से लिया था, और यह मेरे बहुत काम आया। लेकिन आप इसे ले जाना चाहते हैं तो ले जाइए, मैं कोई मूल्य नहीं लूँगा।”
ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए और शालिग्राम भगवान को अपने घर ले गए। ( इसे भी पढे- सबरीमाला मंदिर के रहस्य: भगवान अयप्पा की कथा और 41 दिनों की कठिन तपस्या का महत्व )
पंडित जी की सेवा से भगवान असंतुष्ट हुए
शालिग्राम की सेवा में पंडित जी की कोशिशें
ब्राह्मण जी ने घर जाकर:
- शालिग्राम भगवान का पंचामृत से अभिषेक किया।
- उन्हें चंदन, पुष्प और सुंदर वस्त्र अर्पित किए।
- मंत्रों से पूजा की, वैदिक स्तोत्रों का पाठ किया।
लेकिन शालिग्राम भगवान खुश नहीं हुए।
भगवान का पंडित जी के स्वप्न में आना
रात में भगवान स्वप्न में प्रकट हुए और एक वैष्णव का रूप धारण करके बोले,
“मुझे रामदास जी के पास वापस पहुँचा दो! मुझे उनकी स्नेहयुक्त पुकार और आँसुओं की आदत पड़ गई है।”
- ब्राह्मण के होश उड़ गए!
- उन्होंने तुरंत निश्चय किया कि वे शालिग्राम भगवान को वापस रामदास जी के पास ले जाएँगे।
भगवान ने स्वयं रामदास जी को दर्शन दिए
भगवान का रामदास जी को प्रेम परीक्षण
जब रामदास जी को शालिग्राम भगवान लौटाए गए, तो उनके भीतर भक्ति और बढ़ गई।
- उन्होंने प्रण लिया कि “हे प्रभु, यदि आप सच में भगवान हो, तो मुझे दर्शन दो!”
- उन्होंने अन्न-जल का त्याग कर दिया और प्रभु को पुकारने लगे।
भगवान कृष्ण का प्रकट होना
भक्त की पुकार सुनकर, भगवान स्वयं वैष्णव रूप में प्रकट हुए और बोले:
“रामदास, तेरा जीवन धन्य है। तूने अपने आँसुओं से मुझे जित लिया!”
- रामदास जी ने जब आँखें खोलीं, तो उन्होंने श्याम सुंदर भगवान कृष्ण को देखा!
- प्रभु ने उन्हें अपने प्रेम से निहाल कर दिया।
निष्कर्ष
रामदास जी की कथा हमें यह सिखाती है कि भक्ति के लिए कोई विशेष योग्यता आवश्यक नहीं है।
- प्रभु को धन, ज्ञान या कर्मकांड से अधिक प्रेम और भक्ति प्रिय है।
- सच्चे हृदय से पुकारने पर भगवान अवश्य मिलते हैं।
यदि रामदास जी जैसे प्रेम से कोई पुकारे, तो भगवान को भी आना ही पड़ता है!
FAQs
1. भक्त रामदास जी कौन थे?
वे एक गरीब चर्मकार थे, लेकिन उनकी भक्ति ने उन्हें भगवान का प्रिय बना दिया।
2. भगवान ने रामदास जी को क्यों पसंद किया?
क्योंकि उनकी भक्ति निश्छल, प्रेममयी और अहंकार रहित थी।
3. पंडित जी की सेवा से भगवान क्यों असंतुष्ट हुए?
क्योंकि उसमें प्रेम और अपनापन नहीं था, केवल कर्मकांड था।
4. भगवान कृष्ण रामदास जी को कैसे मिले?
उनकी प्रेमपूर्ण पुकार और आँसुओं से भगवान मोहित हो गए और स्वयं प्रकट हुए।
5. इस कथा से हमें क्या सीख मिलती है?
कि सच्ची भक्ति में जाति, धन, पदवी या कर्मकांड का महत्व नहीं, केवल प्रेम की प्रधानता है।