जगन्नाथ पुरी में क्यों खाए जाते हैं एकादशी पर चावल, जानें कारण

Jagannath Puri Ki Ekadashi Ka Rahasya:

जगन्नाथ पुरी में क्यों खाए जाते हैं एकादशी पर चावल – ‘एकादशी’ हमारे सनातन हिन्दू धर्म की एक ऐसी तिथि जिसका परम महत्व है | कई सारे लोग इस दिन व्रत करते है क्योंकि संत बताते है कि एकादशी का व्रत सर्वोत्तम व्रत में एक व्रत है | इस दिन चावल खाने की मनाही होती है फिर चाहे आप व्रत करो या न करो लेकिन चावल नहीं खा सकते है |लेकिन जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ ने एकादशी को उलटा लकता दिया है इसलिए यहाँ एकादशी के दिन भी चावल खाने की परंपरा है | लेकिन ऐसा क्या हुआ जिससे प्रभु जगन्नाथ जी ने एकादशी को उलटा लटका दिया और आखिर पूरे भारत में क्यों बस इसी मंदिर में नहीं होता है एकादशी नियम का पालन आइये जानते हैं इसके पीछे का कारण –

 जगन्नाथ पुरी में क्यों खाए जाते हैं एकादशी पर चावल

हिन्दू धर्म में एकादशी तिथि का अत्यंत महत्व है। एकादशी के दिन व्रत रखने, भगवान विष्णु की पूजा करने और इससे जुड़े नियमों का पालन करने का विधान है | इस व्रत सभी वर्तों में सर्वोउत्तम व्रत है और एकादशी के दिन चावल न खाने की भी मान्यता है | इसलिए इस दिन संसार के समस्त मंदिरों और यहां तक कि घरों में भी एकादशी के दिन चावल खाना, बनाना साथ ही इसे छूना भी वर्जित माना जाता है। लेकिन जगन्नाथ पुरी की एकादशी अपने आप में एक रहस्य है क्योंकि जगत के नाथ जगन्नाथ पुरी में एकादशी के दिन चावल खाने की विशेष परंपरा है | संत बताते है कि जगन्नाथ पुरी में एकादशी उल्टी लटकी हुई है | जब भी आप जगन्नाथ पुरी जाए तो आपको मुख्य मंदिर के पीछे आपको एक रूम दिखाई देगा यह वहीं जगह है जहां भगवान जगन्नाथ ने एकदशी को उल्टा टांग रखा है | इसलिए यहां अन्य स्थानों से विपरीत एकादशी के दिन चावल खाने का खास महत्व है |

एकादशी तिथि को लेकर संत बताते है कि किसी ने एकादशी का व्रत रखा हो या न रखा हो लेकिन उसे एकादशी वाले दिन चावल ग्रहण नहीं करना चाहिए कोशिश तो ये भी करना चाहिए कि वह चावल छूए भी नहीं | इसके पीछे की एक पौराणिक मान्यता यह है कि जो भी व्यक्ति एकादशी के दिन चावल खाता है उसे रेंगने वाले कीड़े की योनी में अगला जन्म मिलता है |लेकिन जगन्नाथ पुरी में ये नियम कानून क्यों लागू न होते है तो आईए जाने इसके पीछे की पौराणिक कहानी –

संत बताते है कि एक बार ब्रह्म देव को भगवान जगन्नाथ का महा प्रसाद खाने की अतिइच्छा हुई | इसलिए श्री ब्रह्मदेव जी जगन्नाथ पुरी पहुंचे लेकिन तब तक भगवान जगन्नाथ का महाप्रसाद समाप्त हो चुका था |उन्होंने देखा की मात्र एक पत्तल में थोड़े से चावल के दाने रखे है जिसे एक कुत्ता चाट-चाटकर खा रहा था |
ब्रह्म देव जी प्रभु की भक्ति में इतने ज्यादा भाव विभोर होकर इतने डूब गए थे कि जगन्नाथ भगवान का महाप्रसाद खाने की लालसा में उन्होंने उस कुत्ते के साथ बैठकर ही चावल के बचे-कुचे दानों को खाना शुरू कर दिया | जिस दिन यह घटना घटित हुई थी संयोग से उस दिन एकादशी ही थी। ब्रह्म देव का आपार भक्ति भाव देख जगन्नाथ भगवान स्वयं प्रकट हो गए और ब्रह्म देव जी को इस तरह बिना किसी ऊंच-नीच के कुत्ते के साथ उनके महाप्रसाद का चावल खाते देख जगन्नाथ भगवान बोले कि आज से अभी से मेरे महाप्रसाद में एकादशी का नियम लागू नहीं होगा |

बस उसी दिन से जगन्नाथ पुरी में एकादशी हो या कोई अन्य तिथि भगवान जगन्नाथ के महाप्रसाद पर किसी भी व्रत या तिथि का प्रभाव नहीं पड़ता है | तो इस कारण से जगन्नाथ पुरी में मनाई जाती है उल्टी एकादशी और खाए जाते हैं चावल | कथा पसंद आई हो तो इसे अपने दोस्तों, रिश्तोंदारों के साथ शेयर करे | ऐसे और जानकारी योग्य कथाओ के लिए अपने वेबसाईट पर विजिट करे- Bhajanlyric.com

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