एक भक्त के सच्चे भाव, एक बड़ी ही सुंदर कथा है एक संत के भाव की क्या प्रबल भाव है उन संत के | यूँ कहे उन संत के बातों से ही उनका भाव प्रकट होता है | कथा में महाराज जी बताते है की ये सच्ची घटना है श्री धाम वृन्दावन के एक संत की |
एक भक्त के सच्चे भाव
महाराज जी बताते है कि एक बार एक संत श्री धाम वृन्दावन जी गए | वहाँ कुछ दिनों तक रहे घूमे फिरे दर्शन किया और जब वापस लौटने का मन बना तो सोचा कि भगवान को भोग लगाकर कुछ प्रसाद लेता चलूँ | तो संत ने वही पास की दुकान से रामदाने के कुछ लड्डू खरीदे और लेकर मंदिर गए भगवान को भोग लगाया और आश्रम मे आकर सो गए क्योंकि अलगे दिन सुबह उन संत को ट्रेन पकड़नी थी | सुबह उठकर संत ने श्री धाम वृन्दावन से पटना जाने के लिए ट्रेन पकड़ी और चल दिए श्री धाम वृन्दावन को प्रणाम करके |
शाम को ट्रेन मुगलसराय स्टेशन पर पहुंची तो संत के मन में विचार आया कि अभी तो पटना आने में काफी समय लगेगा | उन्हे भूख का भी एहसास हो रहा था तो उन्होंने सोचा कि मुगलसराय स्टेशन पर ट्रेन आधे घंटे रुकेगी चलो यही पर हाथ-पाँव धोकर संध्या वंदन कर कुछ कहा लिया जाए | संत गए स्टेशन पर हाथ-पाँव धोया फिर आकर सीट पर बैठकर संध्या वंदन किया और ज़्यूं ही उन्होंने लड्डू खाने के लिए डब्बा खोला उन्होंने देखा की लड्डू में ढेर सारे चींटे लगे थे | तो उन्होंने चींटों को हटाया और एक लड्डू निकाल कर खा लिया | और बाकी बचे जाकर प्रसाद बाँट दूंगा ये सोचकर छोड़ दिया |
वृंदावन की चींटिया-
महाराज जी कहते है कि “संत ह्रदय नवनीत समाना” इसलिए संत को लड्डुओ से अधिक उन चींटियों की चिंता सताने लगी | उन के मन में इस विचार ने उथल-पुथल मचा रखा था कि ये चींटे श्री धाम वृन्दावन से इस मिठाई के डिब्बे में आ गए है | बेचारे इतनी दूर श्री धाम वृन्दावन से मुगलसराय ट्रेन से आ गए | कितने भाग्यशाली थे ये जो इनका जन्म श्री धाम वृन्दावन में हुआ था | अब इतनी दूर से पता नहीं कितने दिन या कितने जन्म लग जाएंगे इनको वापस श्री धाम वृन्दावन पहुँचने में | पता नहीं ब्रज की धूल इन्हे वापस नसीब हो पाएगी या नहीं | मैंने कितना बड़ा पाप कर दिया जो इनसे इनका श्री धाम वृन्दावन छुड़वा दिया | यही विचार संत को परेशान करने लगे वो संत काफी विचलित हो पड़े और उन्होंने सोचा कि मुझे वापस जाना होगा |
अपने इसी भक्तिमय भाव से उन संत ने उन चींटो को वापस उसी मिठाई के डिब्बे में सावधानी से रख दिया और झट से जाकर श्री धाम वृन्दावन की ट्रेन पकड़ ली | संत श्री धाम वृन्दावन पहुँचकर उसी मिठाई की दुकान के पास गए और वहाँ पहुँचकर मिठाई के डिब्बे को नीचे धरती पर रखकर खोला और खुद हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले कि मेरे भाग्य में नहीं है कि मैं तेरे ब्रज में रह सकूँ | लेकिन मुझे कोई अधिकार भी नहीं है कि जिसके भाग्य में ब्रज की धूल लिखी है मैं उसे उससे दूर कर सकूँ | दुकानदार ये सब देखकर, संत के पास आया और बोला चींटे लग गए तो है तो कोई बात नहीं आप दूसरी मिठाई तौलवा लो | तो संत कहते है – भाई जी मिठाई में तो कोई कमी नहीं थी | इन हाथों से पाप होते होते रह गए बस उसी का प्रयश्चित कर रहा हुँ | लेकिन दुकानदार कुछ समझ नहीं पाया तो संत ने उसे सारी कथा सुनाई जिसे सुनकर दुकानदार भावुक हो कर संत के पैरों में पड़ गया | इधर दुकानदार रो रहा था उधर संत की आंखे नम थी |
पता है- “बात ना भाव की है, बात उस निर्मल मन की है, बात ब्रज धाम की है, बात मेरो श्री धाम वृन्दावन की है | बात मेरे नटवर नागर और हमारी प्यारी श्री जी की है, बात मेरे कृष्ण कन्हैया की राजधानी की है | बूझो तो सब कुछ है, नहीं तो बस पागलपन है, बस एक कहानी |
संतों की सलाह- घर से जब भी बाहर जाए, तो घर में विराजमान अपने प्रभु अपने आराध्य से मिलकर ही जाए | इससे उनकी कृपा छाया बनकर आपके साथ चलेगी | और जब लौटकर घर वापस आए तो भी अपने अपने प्रभु अपने आराध्य से जरूर मिले क्योंकि उनको भी आपके घर लौटने का इंतजार रहता है |
इसलिए घर में यह नियम बनाइए की जब भी आप या घर का कोई भी सदस्य घर से बाहर निकले तो घर के मंदिर के पास दो घड़ी खड़े हो जाए और भगवान से कहे – प्रभु चलिए…. आपको साथ में ही रहना है |
ऐसा बोलकर ही घर से निकले क्योंकि आप भले ही लाखों की घड़ी हाथ में क्यों न पहनते हो पर समय तो मेरे प्रभु के ही हाथ में है |
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