भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ

भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ

भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार पड़ते हैं भगवान जगन्नाथ Image Credit- Google.co.in
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भक्तों को बीमारी से बचाने के लिए खुद बीमार पड़ते हैं महा प्रभु भगवान जगन्नाथ और इस बीमारी के 15 दिनों तक आराम करते है प्रभु जी और इसलिए ही 15 दिन तक मंदिरों के कपाट भी बंद कर दिए जाते हैं और उनकी सेवा की जाती है | लेकिन ऐसा क्या हुआ जो खुद भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए इसके पीछे की लीला या कथा क्या है ? हम सभी को ये बात तो पता है कि अगर हमारे भाव सच्चे है हमारा प्रेम मालिक के प्रति शुद्ध है तो परमात्मा पल पल आपके साथ आपकी रक्षा करते है और ये कथा भी एक ऐसे ही भक्त की है जो भगवान जगन्नाथ का परम भक्त था  और उसी के भाव, प्रेम, श्रद्धा के कारण ही हमारे भगवान जगन्नाथ जी बीमार पड़ते है आईए जानते है उस कथा के बारे में-

ये कथा है उड़ीसा के पूरी में रहने वाले एक परम भक्त कि जो भगवान जगन्नाथ प्रभु से अत्याधिक प्रेम करता था उसके भाव उसका प्रेम काफी अटूट था जगन्नाथ प्रभु के लिए और उसका नाम माधव दास | माधव दास जी अकेले ही रहते थे उनके किसी से भी कोई मतलब लेन देन नहीं था वो बस अकेले बैठ कर जगन्नाथ प्रभु को भजन सुनाया करते थे | नित्य नियम से अपने आराध्य का दर्शन करते और उन्हे ही अपना सखा मानते थे और प्रभु के साथ ही खेलते थे | संत बताते है कि जगन्नाथ प्रभु भी अपने भक्त के साथ अनेकों लीलाएं किया करते थे | जगन्नाथ प्रभु इनको चोरी करना भी सीखाते थे भक्त वत्सल माधव दास जी अपनी मस्ती में मग्न रहते थे |

जब रोगग्रस्त हो गए थे प्रभु जगन्नाथ के परम भक्त श्री माधव दास

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संतों से सुना है कि एक बार माधव दास जी अतिसार ( उल्टी-दस्त) से ग्रसित हो गए थे | जिसके कारण वे अत्याधिक दुर्बल हो गए जिससे उन्हे उठने बैठने में भी काफी समस्या होने लगी थी | हालाकि, माधव दास जी अपने समर्थ के अनुसार अपना कार्य स्वयं ही करते थे किसी अन्य व्यक्ति के मदद के लिए बोलने पर भी वो उसे मना कर देते थे | अगर कोई कहता था कि महाराज जी हम आपकी सेवा कर दे तो माधव दास जी कहते थे कि नहीं, मेरे तो एक मेरे जगन्नाथ प्रभु ही है वो ही मेरी चिंता करते है और मेरी रक्षा भी वो ही करेंगे | जब माधव दास जी के अतिसार का रोग बढ़ गया तो वे पूर्ण रूप से उठने बैठने में असमर्थ हो गए तो जगन्नाथ प्रभु स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंच गए और माधव दास जी से कहा बाबा में आपकी सेवा करता हुँ |

माधव दास जी का रोग इतना ज्यादा बढ़ गया था कि उन्हे पता भी नहीं चलता था कि कब वे बिस्तर पर ही मल-मूत्र त्याग देते था जिससे उनके वस्त्र गंदे हो जाते थे | और उन गंदे वस्त्रों को स्वयं भगवान जगन्नाथ प्रभु अपने हाथों से साफ करते थे | जगन्नाथ प्रभु उनके पूरे शरीर को भी अच्छे से साफ करते थे | जगन्नाथ प्रभु ने अपने भक्त की ऐसी सेवा कि वैसा तो कोई अपना भी नहीं करता | इससे बस यही बात उजागिर होती है कि भगवान से ज्यादा अपना या सगा कोई नहीं है | ( क्यों नहीं है भगवान जगन्नाथ के हाथ-पाव )

सेवक के बारे में जान गए थे श्री माधव दास जी 

जब माधव दास जी को होश आया तो होश में आते ही उन्होंने तुरंत जगन्नाथ प्रभु को पहचान लिया कि ये तो मेरे सखा मेरे मालिक मेरे प्रभु है | एक दिन ऐसे ही माधव दास ने जगन्नाथ प्रभु से पूछ लिया कि प्रभु आप तो त्रिभुवन के स्वामी हो और आप मेरी सेवा कर रहे हो प्रभु, अगर आप चाहते तो मेरा ये रोग भी दूर कर सकते थे | रोग दूर हो जाता तो आपको ये सब नहीं करना पड़ता | संत जब बताते है माधव दास के इस प्रश्न पर जगन्नाथ प्रभु ने उससे कहा देखो माधव! मुझसे मेरे भक्त का कष्ट सहन नहीं होता है | इसलिए ही मैंने स्वयं तुम्हारी सेवा की | लेकिन जो प्रारब्ध में होता है उसे हर मनुष्य को भोगना ही पड़ता है | अगर उसे काटोगे तो इस जन्म में नहीं लेकिन तुम्हें अपना प्रारब्ध भोगने के लिए अगला जन्म लेना पड़ेगा और मैं ऐसा नहीं चाहता कि मेरे भक्त को जरा से प्रारब्ध के कारण पुन: इस पृथ्वी पर आना पड़े | लेकिन अगर फिर भी तुम चाहते हो कि मैं ऐसा करू तो में भक्त की बात भी नहीं टाल सकता हुँ |

जगन्नाथ प्रभु अपने भक्तों के सहायक बन उनके प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते है | जगन्नाथ प्रभु ने अपने भक्त माधव दास से कहाँ, “अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन का रोग शेष बचा हुआ है | जो तू मुझे दे दे | जिसके बाद जगन्नाथ प्रभु ने अपने परम भक्त माधव दास के बचे हुए 15 दिनों का रोग स्वयं ग्रहण किया | उसी अपने भक्त माधव दास के कारण से आज भी हमारे जगन्नाथ प्रभु बीमार होते है |

प्रभु जगन्नाथ अपने भक्तों के सहायक बन उन्हें प्रारब्ध के दुखों से, कष्टों से सहज ही पार कर देते हैं. प्रभु ने अपने भक्त माधव से कहा, ”अब तुम्हारे प्रारब्ध में 15 दिन का रोग और बचा है, इसलिए 15 दिन का रोग तू मुझे दे दे. जिसके बाद प्रभु जगन्नाथ ने अपने भक्त माधव दास के बचे हुए 15 दिन का रोग स्वयं ले लिया. यही वजह है कि भगवान जगन्नाथ आज भी बीमार होते हैं.

भक्तों के लिए हर साल 15 दिनों के लिए खुद बीमार पड़ते हैं जगन्नाथ प्रभु

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ये पूरी कथा को लिखते हुए मुझे बस इसी बात का आभाष हुआ कि हमारे जगन्नाथ प्रभु कितने ज्यादा भक्त वत्सल है | उनकी भक्त वत्सलता तो देखिए- जगन्नाथ प्रभु को आज भी साल में एक बार स्नान करवाया जाता है, जिसे स्नान यात्रा कहते है | इस स्नान यात्रा के बाद ही प्रतिवर्ष 15 दिनों के लिए जगन्नाथ प्रभु आज भी बीमार पड़ते है | इस दौरान पूरी में स्थित जगन्नाथ प्रभु का मंदिर 15 दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है | इस समय भगवान की रसोई को भी बंद कर कर दिया जाता है, जो कभी बंद नहीं होती | जगन्नाथ प्रभु के इस अवस्था के दौरान प्रभु को 56 भोग नहीं खिलाया जाता है | इस समय जगन्नाथ प्रभु को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग लगाया जाता है | ( मुस्लिम के मजार के पास क्यों रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा )

इसी बीच धाम में बीमार भगवान जगन्नाथ की जांच करने के लिए हर दिन वैध्य भी आते है | काढ़े के साथ साथ जगन्नाथ प्रभु को फलों का रस और छेने का भोग भी लगाया जाता है और रोज उन्हे शीतल लेप भी लगाया जाता है | जिससे हमारे जगन्नाथ प्रभु जल्दी स्वस्थ हो सके | रात को सोने से पहले प्रभु को मीठा दूध अर्पित किया जाता है |

ऐसे है हमारे जगन्नाथ प्रभु जो अपने भक्तों के दुखों को अपने ऊपर ले लेते है | भक्तों के सारे दुख दर्द को अपना बना लेते है | एक बार प्रेम करके तो देखो आपको अपना ना बना ले तो कहना | दुनिया के आगे रोना छोड़ इनके आगे रोना शुरू तो करो ये आपका मज़ाक नहीं बनाएगे बल्कि उस समस्या का समाधान करके आप पर अपनी कृपा बरसएंगे |
भावना की ज्योत जगा के देख ले
बोलती है मूर्ति बुला के देख ले
सौ बार चाहे अजमा के देख ले 
बोलती है मूर्ति बुला के देख ले ||

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