मुस्लिम के मजार के पास क्यों रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा

( Muslim Ke Majar Ke Pass Kyu Ruk Jati Hai Bhagwan Jagannath Ki Rath Yatra )

मुस्लिम के मजार के पास क्यों रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा
Image Credit- Google.co.in (मुस्लिम के मजार के पास क्यों रुक जाती है भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा)

उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर साल बड़े ही भाव और धूम-धाम से मनाया जाता है | बीच कोरोना के वजह से वहाँ के कोर्ट ने कोविड के समय में रथ यात्रा पर रोक लगाने का फैसला तो लिया था | लेकिन लोगों कि आस्था और विश्वास इतनी ज्यादा प्रबल है कि कोर्ट को फिर से अपने द्वारा लिए गए फैसले पर विचार करना पड़ा और विचार करके उसे बदलना पड़ा | लेकिन जब कोर्ट ने अपना फैसला बदला तो उससे पहले उन्होंने कुछ नियम कानून और दिशा निर्देश दिए कि अगर पूरी के जगन्नाथ के क्षेत्र में यात्रा होने तक कोई भी कोविड संक्रमित व्यक्ति नहीं मिले तो ही प्रभु जगन्नाथ की रथ यात्रा होगी |

आपको जानकर हैरानी होगी कि कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के बाद से ही उस क्षेत्र में एक भी कोविड संक्रमित व्यक्ति नहीं मिला | जिससे भगवान जगन्नाथ प्रभु की बड़े भाव और प्यार से रथ यात्रा सम्पन्न हुई | वहाँ के निज निवासियों ने बताया कि रथ यात्रा के खत्म होने के एक माह बाद तक वहाँ पर कोई भी कोविड संक्रमित व्यक्ति नहीं मिला | जब स्वयं जगन्नाथ प्रभु को अपने भक्तों से मिलना था तो कोई कैसे रोक सकता है उन्हे अपने भक्तों के बीच जाने से ऐसे बड़े कृपालु है हमारे हमारे जगन्नाथ प्रभु |

वैसे भी पुरी इस दुनिया में एक एक मात्र ऐसा मंदिर है जहाँ प्रभु जगन्नाथ अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा जे साथ विराजमान है | मेरे प्रभु जगन्नाथ के दर्शन मात्र से ही भक्तों के समस्त कष्टों का अंत होता है | ऐसे कृपालु दयालु, प्रेममयी प्रभु जगन्नाथ के चरणो में मेरा कोटि-कोटि प्रमाण | लेकिन बताया जाता है कि भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा के समय प्रभु का रथ एक मजार के पास आके रुक जाता है |           

लेकिन आखिर ऐसा क्यों ? क्यों भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा एक मजार के सामने रोक दी जाती है | इसके पीछे कौन सी कथा है ? चलिए जानते है भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा के साथ-साथ भगवान जगन्नाथ का रथ आखिर क्यों रोक जाता है एक मजार के सामने ? इसके पीछे की अद्भुत एवं प्रेम भाव की कथा |

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आखिर क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा?

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ग्रंथों से पता चलता है कि भगवान जगन्नाथ अपने दिव्य रथ पर सवार होकर अपने भाई बलराम और बहन सुभद्रा के साथ अपने मौसी के घर जाते है | सभी के लिए अलग अलग रथ रवाना होता है | इसमे सबसे आगे भाई बलराम जी का रथ, बीच में बहन सुभद्रा का रथ और जगत के पालनहार अपने भाई बहन के पीछे चलते है | पौराणिक कथा के अनुसार एक बार भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने उनसे नगर देखने की इच्छा प्रकट की तो भगवान जगन्नाथ अपने भाईबलभद्र के साथ रथ पर सवार होकर पूरे नगर का भ्रमण करवाया | इसी दौरान भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर गुंडिचा भी पहुँच गए और वहाँ उन्होंने सात दिन बिताए थे | अभी भगवान के इस प्रेम रूप का दर्शन और अपनों के प्रति प्रेम की आस्था को लेकर आज भी रथ यात्रा निकली जाती है |

क्यों मजार पर रुकता है भगवान का रथ

भगवान जगन्नाथ के यात्रा के दौरान मंदिर से थोड़ा आगे निकलने पर वहाँ आगे एक मजार है जहाँ पर भगवान जगन्नाथ के रथ को लाकर रोक दिया जाता है | ये मजार ग्रेंड रोड के आगे करीब 200 मीटर पर है | जैसे ही भगवान जगन्नाथ के रथ यहाँ पहुंचते है रथ के पहिये मजार के सामने खुद ब खुद रुक जाते है | और थोड़ा समय व्यतीत करने के बाद ही वापस से आगे बढ़ता है |   

मजार पर रथ के रुकने का रहस्य ?

भगवान जगन्नाथ के रथ के मजार पर रुकने के पीछे भी एक बड़ी ही सुंदर अद्भुत और रहस्यमयी कथा है | एक ऐसी कथा जो पूर्णता प्रेम श्रद्धा से भरी है जो आपके अन्तरमन से भाव विभार कर देगी | बताया जाता है कि मुगल शासक जहांगीर के शासन काल में एक सुबेदार ने एक ब्राह्मण विधवा महिला से शादी कर ली थी और उसको एक पुत्र हुआ, जिसका नाम उन्होंने सालबेग रखा । सालबेग की मां हिंदू धर्म से होने की वजह से बचपन से ही सालबेग ने भगवान जगन्नाथ के प्रति अटल प्रेम और आस्था का संचार था । सालबेग की भगवान जगन्नाथ के प्रति अपार भक्ति थी | लेकिन किसी कारणवश वो मंदिर में प्रवेश नहीं कर पाते थे।

रथ यात्रा में शामिल होने पहुंचे सालबेग

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पौराणिक कथाओ में बताया गया है कि सालबेग पूरी तरह से भगवान के प्रेम विरह में डूब गए थे | इसलिए सालबेग वृन्दावन जाते है और अपने जीवन का काफी समय वही बिताने के बाद भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा में शामिल होने के लिए वहाँ से ओडिसा पुरी आते है लेकिन पूरी आते-आते सालबेग काफी बीमार पड़ जाते है | जिससे सालबेग भगवान जगन्नाथ के रथ यात्रा में शामिल होने में असमर्थ हो जाते है, इसलिए सालबेग अपने मालिक भगवान जगन्नाथ से मन ही मन उन्हे दर्शन देने के लिए प्रार्थना करने लगा | प्रार्थना करते-करते उसकी मृत्यु हो गई | अचानक मौत की दस्तक़ से सालबेग की जगन्नाथ दर्शन की कामना अधूरी ही रह गई थी |

लेकिन कहते है न अगर आपकी भावना और विश्वास सच्चे और पक्के है तो भगवान अपने भक्त की पुकार जरूर सुनते है | तो भगवान जगन्नाथ ने सालबेग की प्रार्थना स्वीकार कर ली और जैसे ही रथ सालबेग के कुटिया के समीप पहुंचा! रथ वही रुक गया | भगवान जगन्नाथ खुद गए अपने भक्त के मजार पर उससे मिलने के लिए | बताया जाता है कि  वहां काफी देर तक भगवान जगन्नाथ का रथ ठहरा रहा | भक्त और भगवान के इस मिलन बेला को उस दिन से अनंत काल के लिए धारण कर लिया |  जो परंपरा खुद भगवान ने शुरू किया था वो आज भी चल रहा है |

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इसलिए मज़ार पर रुक जाता है रथ

भक्त की अपार इच्छा होते हुए भी वह भक्त जिसने अपने बचपन से भगवान जगन्नाथ को सर्वस्य मान बैठा था उनके दर्शन के लिए नहीं पहुँच पाया और रास्ते में ही उसकी मृत्यु हो गई | लेकिन शस्त्रों, पुराणो में ऐसे तमाम कथाये मिल जाएगी जहाँ आपको भक्त और भगवान के सच्चे प्रेम के बारे में जानने को मिलेगा और अपने उस भक्त के लिए कैसे परम पिता परमेश्वर सब कुछ छोड़ कर उसकी सेवा करने पहुँच जाते है | उसी में एक कथा ये भी थी जहाँ खुद भगवान जगन्नाथ अपने प्रिय और सच्चे भक्त सालबेग से मिलने के लिए अपने रथ को रोक देते है, लोगों के तमाम कोशिशों के बाद भी वह रथ कुछ देर के लिए आगे ही नहीं बड़ा | फिर सभी भक्तों ने मिलकर भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना किया तब जाके रथ आगे बड़ा | भले ही उस भक्त ने प्रभु के वियोग प्रेम में जीवन त्याग दिया लेकिन प्रभु ने उसके इस प्रेम के कारण एक प्रथा ही बना दी जिससे कि आज भी भगवान जगन्नाथ का रथ उस भक्त सालबेग के मजार पर रुकता है | ये कृपया नहीं तो क्या है ?

कथा के समापन में, मैं अपने मालिक से यही प्रार्थना करूंगा कि हम सभी को भी ऐसे भाव दे जिससे हम उन्हे रिझा सके | उनके साथ अपने रिश्ते को गहरा कर सके | एक बार आप सभी बोलिए हाथ पकड़ने वाले की जय |      

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