भक्त के कटे सिर को गोद में लेकर रणभूमि में ही विलाप करने लगे श्रीकृष्ण
अगर भक्त अपने आराध्य के प्रति प्रेम पूरी निष्ठा से समर्पित होता है तो वो भक्त अपने प्रभु को पाने के लिए किसी भी हद तक चला जाता है | ये कथा इसी बात का पुष्टि करती है | भगवान कृष्ण ने अनन्य भक्त हुए लेकिन ये भक्त कुछ अलग था जिसने अपने आराध्य को पाने के लिए आगे बढ़कर मृत्यु को खुद से ललकारा | आईए जानते है पूरी कथा इस हठीले कृष्ण भक्त की –

ये पौराणिक कथा महाभारत के उस समय की है जब पांडव राजा बन चुके थे और अपने राज्य का विस्तार करने की मंशा में उन्होंने अश्वमेध यज्ञ शुरू किया | उसी समय भगवान कृष्ण के एक अनन्य भक्त अपने आराध्य के दर्शन के लिए अपने मृत्यु को ललकार बैठे | यहाँ तक कि भगवान कृष्ण को अपना वह भक्त अत्यंत प्रिय था कि उन्होंने उसकी मृत्यु टालने की भरसक प्रयास किया लेकिन वो विफल रहे | श्री कृष्ण अपने उस भक्त की मृत्यु से अति आहत हुए कि वो अपने उस भक्त का कटा हुआ सिर अपनी गोद में लेकर बहुत देर तक विलाप करते रहे | लेकिन आखिरकार वो भक्त कौन था उसने ऐसा क्यों किया ??
श्री कृष्ण की दर्शनों की लालसा ने उन्हें ऐसा करने पर किया मजबूर-
युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ सम्पन्न करने के बाद यज्ञ का घोडा छोड़ा, तो भ्रमण करता हुआ जब यब यह घोड़ा चंपकपुरी राज्य में पहुँचा तो वहाँ के राजा हंसध्वज और उनके बेटे सुरथ ने उसे पकड़ लिया | दरअसल ये पिता पुत्र दोनों ही भगवान कृष्ण के परम भक्त के और उनके दर्शनों की लालसा ने उन्हे ऐसा करने पर विवश कर दिया | ये पिता पुत्र दोनों ही भगवान कृष्ण के सत्य से अवगत थे और वे दोनों उन्ही के हाथों से संसार को त्यागना चाहते थे | घोड़े को पकड़ने के बाद उन्होंने पांडवों को युद्ध के लिए ललकारा जिसके फलस्वरूप क्रोधित होकर अर्जुन अपनी विशाल सेना के साथ युद्ध करने के लिए निकल पड़ा |
युद्ध के मैदान में पहुँचकर जब श्री कृष्ण ने अर्जुन और सुरथ को आमने सामने देखा तो वह अपने भक्त की मृत्यु का अंदेशा कर विचलित हो गए | क्योंकि श्री कृष्ण तो अंतर्यामी है तो वो जानते थे कि उनका भक्त सुरथ क्या चाहता है, लेकिन वह अपने भक्त को इस तरह अपने सामने मरता हुआ नहीं देखना चाहते थे | सुरथ ने भी जब श्री कृष्ण को अर्जुन के साथ देखा तो वह अत्यंत भावुक हो गया | श्री कृष्ण ने जब अपने भक्त को भावुक देखा, तो उन्होंने अर्जुन को बिना युद्ध किए वापस जाने की आज्ञा दि | अर्जुन, श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए आज्ञा को समझ नहीं प रहे थे लेकिन श्री कृष्ण ने कहाँ है तो उन्होंने उसके आज्ञा का पालन किया |
सुरथ ने कहाँ मैं भाग्यशाली हूं
अर्जुन और भगवान श्री कृष्ण जैसे ही लौटने लगे तो सुरथ समझ गए कि ऐसे तो उनका कभी भी उद्धार श्री कृष्ण के हाथों से नहीं हो सकता है, तो उन्होंने अर्जुन का बहुत दूर तक पीछा किया और उन्हे युद्ध के ललकारा | ललकार सुन अर्जुन खुद को रोक ना सके और उन्होंने युद्ध प्रारभं कर दिया | जिस युद्ध में अर्जुन ने सुरथ का सर घड़ से अलग कर दिया | मरते मरते भी सुरथ ने भगवान श्री कृष्ण को प्रणाम किया और कहाँ प्रभु मैं भाग्यशाली हूँ जो मुझे आपके समक्ष मृत्यु प्राप्त हो रही है | श्री कृष्ण ने सुरथ को आशीर्वाद दिया |
लेकिन वह उसकी मृत्यु से इतने आहत हुए कि युद्ध क्षेत्र में ही भगवान श्री कृष्ण अपने भक्त सुरथ का सिर अपनी गोद में लेकर बैठे रहे | बाद में उन्होंने अपने भक्त के शीश को सम्मान पूर्वक उसके राज महल भेजवा दिया |
कथा कैसी लगी कमेन्ट में जरूर बताए और सभी के साथ शेयर भी करे और उन्हे भी रहस्यमई इस कथा के बारे में अवगत कराए, लेकिन दोस्तों क्या ही भाव थे सुरथ के | मृत्यु इसलिए चाहिए क्योंकि जब मृत्यु जब भगवान के सामने होगी तो मुक्ति मिल जाएगी | क्या प्रबल इच्छा थी जिसके आगे तीनों लोको के स्वामी भी झुक गए | कान्हा सच भी है तू सामने हो तो मृत्यु कैसी भी आए स्वीकार है हमे बस तेरे गोद में मेरा सिर होना चाहिए |
|| Keep my Finger crossed || जय श्री कृष्ण ||
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