एक वेश्या के सामने भगवान ने झुका दिया अपना सिर

एक वेश्या के सामने भगवान ने झुका दिया अपना सिर | ये कथा हमे ये बताती है भगवान बस हमेशा अपने भक्त के भाव ही देखते है वो कैसा है उसका रंग रूप कैसा है, वह कार्य क्या करता है इन सब तमाम बातों से भगवान का कोई लेना देना नहीं है जब भी आपकी चेतना जाग्रति होगी आप उनके शरण में जाओगे प्रभु आपको स्वीकार करेंगे और ये आज की कथा भी हमे इसी बात का बोध करवाएगी आईए जानते है एक और भक्त की अपार प्रेम –

वेश्या भक्त श्री वारमुखी जी

वेश्या भक्त श्री वारमुखी जी Image Credit- Google.com

संत श्रीहित अम्बरीष जी बताते है कि श्री वारमुखी जी एक वेश्या भक्त थी | भले ही कार्य उनके वैश्या वाले थे लेकिन प्रभु की भक्ति भी करती थी | संत बताते है कि एक दिन श्री वारमुखी जी के घर के सामने एक छायादार जगह देखकर संतों की विशाल मंडली ठहरी | सभी ने यहाँ वहाँ जगह पाकर अपना आसन लगा दिया | इतने में ही वह वेश्या श्री वारमुखी जी आभूषणों से लदी हुई बाहर द्वार पर आई | अपने द्वार पर सरल भाव संतों को देखकर वह मन ही मन विचार करने लगी कि हे प्रभु आज मेरे कौन से भाग्य खुल गए है जो ये सरल संत मेरे द्वार पर आए है | निश्चय ही इन्हे मेरे बारे मई ज्ञात नहीं है | मन में चल रहे ख्यालों के साथ वह घर में गई और एक थाल में मुहरे भरकर ले आई और उसे महंत जी के आगे रखकर बोली हे! प्रभु जन कृपया कर इस धन से आप अपने भगवान को भोग लगाईए | ये सब कहते हुए उसके बातों में ऐसे भाव थे जिससे उसकी आंखे छलक पड़ी | उसके आँखों के भाव देखकर श्री महंत जी ने पूछा कि तुम कौन हो?

ये सवाल सुनकर वह चुपचाप खड़ी रही और उसे ऐसे चिंता में देख श्री महंतजी ने फिर से पूछा कि तुम बेझिझक अपने मन की व्यथा बोलो | तब श्री वारमुखी जी ये कहकर संत के चरणों में गिर पड़ी कि मैं एक वैश्या हूँ और चरणों में ही पड़े पड़े रोती रही | कुछ समय बाद संभलकर प्रार्थना किया कि हे! प्रभु जन धन से मेरा भण्डार भरा हुआ है | आप कृपया कर इसे स्वीकार करके मुझे कितार्थ कीजिए और यदि आपने मेरी जाति और कार्य का विचार कर धन नहीं लिया तो मैं जीवित नहीं रह सकूँगी | तब श्री महंतजी ने कहाँ, इस धन को भगवान की सेवा में लगाने का बस एक यही उपाय है कि तुम इस धन के द्वारा श्री रंग नाथ जी का मुकुट बनवाकर उन्हे अर्पण करो |इससे जाति बुद्धि दूर हो जाएगी और श्री रंग नाथ जी उसे अवश्य स्वीकार करेंगे |

वेश्या के सामने भगवान ने झुका दिया अपना सिर

तब वैश्या बोली- हे!प्रभु जन जिसके धन को ब्राह्मण छूते तक नहीं है उसके द्वारा अर्पित किए गए मुकुट को श्री रंगनाथ जी कैसे स्वीकार करेंगे ? तब श्री महंत जी ने उसे आस्वासन देते हुए कहाँ हम तुम्हें विश्वास दिलाते है कि वे अवश्य ही तुम्हारी सेवा स्वीकार करेंगे | इस कार्य के पूर्ण होने तक हम सभी यही रहेंगे, तुम मुकुट बनवाओ | श्री महंत जी की बात सुन वैश्या खुश हो गई जिसके उपरांत उस वैश्या ने अपने धन से भगवान का बहुत सुंदर का मुकुट बनवाया और उसे एक थाल में सजाकर संतों के पास गई | संतों की आज्ञा पाकर वह वेश्या श्री रंगनाथ जी के मंदिर की ओर चल दी | रास्ते भर वह अपने मन में अपवित्र होने का संकोच लेकर चल रही थी | संतों के कहने पर बड़ी मुश्किल से वह लजाते हुए दीनभाव से श्री रंगनाथ जी के पास पहुंची और उनके पास खड़ी हो गई |उस वैश्या ने मुकुट को हाथ में पकड़ रखा था, आखों से विरल प्रेम की अश्रु धारा बह रही थी ये सब देख भगवान श्री रंगनाथ जी ने खुद अपना शीश मुकुट पहनने के लिए उस वैश्या भक्त के आगे झुका दिया | जिसके बाद उस वैश्या श्री वारमुखी जी ने भगवान को अपने हाथों से मुकुट धारण करवाया |

जिसके बाद पूरा मंदिर भक्त व भगवान की जय-जयकार से गूंजने लगा । तो आप सभी भी कमेन्ट में भक्त और भगवान की जय जरूर लिखे | और कथा अच्छी लगी तो इसे शेयर जरूर करे |

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