स्वामी श्री हरिदास जी ने कैसे तोड़ा मुगल अकबर का घमंड

स्वामी श्री हरिदास जी ने कैसे तोड़ा मुगल अकबर का घमंड ? स्वामी श्री हरिदास जी श्रीधाम वृंदावन के निधिवन में विराजमान होते थे और वही पर अपने आराध्य अपने मालिक, त्रिलोकी नंदन बाँके बिहारी जी की सेवा करते थे और उन्हे भजन सुनाते भोग लगाते बस उनका ही गुणगान करते थे | जैसा कि हम सभी को पता है कि तानसेन को अब तक का सर्वश्रेष्ठ सगीतकार कहा जाता है | लेकिन तानसेन के गुरु थे श्री हरिदास जी, उन्होंने उन्ही से ही गायन विद्या सीखी थी | इसलिए मुगल सम्राट अकबर भी कभी कभार वृंदावन जाया करता था | मुगल बादशाह के वृंदावन आने जाने के पीछे भी बिहारी जी की एक लीला और कथा है जिसको हम आने वाली कथाओ में जानेगें | 

HariDas Ji ne kaise Toda Akbar Ka Ghamand
HariDas Ji ne kaise Toda Akbar Ka Ghamand

 

मुगल बादशाह अकबर ने दिया स्वामी जी को हीरो का हार 

संत बताते है कि एक बार मुगल सम्राट अकबर, स्वामी श्री हरिदास जी के दर्शन हेतु श्री धाम वृंदवान आया जो वो अकसर आता रहता था | लेकिन इस बार जब अकबर आया तो उसके हाथों में एक अत्याधिक बहुमूल्य मणियों का हार था | स्वामी श्री हरिदास जी के सम्मुख पहुँच कर उन्हे प्रणाम किया और उनके गले में वो बहुमूल्य मणियों का हार पहना दिया | लेकिन स्वामी श्री हरिदास जी को क्या ही फर्क पड़ता | लेकिन कही ना कही अकबर के मन में अभिमान आ चुका था कि देखो मैंने कितना महंगा मणियों का हार स्वामी जी को पहनाया है, स्वामी जी तो मुझसे रीझ जाएंगे और यहाँ उपस्थित सभी मेरे ही बारे में ही सोच रहे होंगे | ऐसे तमाम विचार अकबर के मन में चल रहे थे |

स्वामी जी ने हिरण को पहनाया हीरो का हार 

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स्वामी जी ने कुछ भी ध्यान ना दिया क्योंकि स्वामी जी राग गाने में व्यस्त थे और संत बताते है कि जब स्वामी जी ऐसे राग गाते थे तो वन से कई सारे हिंसक जीव आकर स्वामी श्री हरिदास जी के पीछे बैठ जाते और स्वामी जी के भजन का आनंद लेते थे, जिससे स्वामी जी के कमर को थोड़ा आराम मिल जाता था | तो उस समय भी एक हिरण सकल कुंज से निकलकर आया और आकर स्वामी श्री हरिदास जी के पास बैठ गया | उस हिरण के सुंदर रूप को देख स्वामी जी अतिप्रसन्न हो गए और इसी प्रसन्नता में स्वामी श्री हरिदास जी ने उस मणि के हार को उतारा और उस हिरण को पहना दिया |

 

ऐसा करने के बाद हिरण जंगल में भाग गया लेकिन ये सब देख अकबर काफी परेशान हो गया और स्वामी श्री हरिदास जी को देखता रह गया और मन में विचार करने लगा कि ये क्या कर दिया इन्होंने अरे! वो इतना महंगा हार है जिससे पूरी जिंदगी खाया पिया जा सकता था और इन्होंने बिना विचार किये उस जीव को पहना दिया इससे अच्छा किसी मानव को पहनाते तो उसके कुछ काम आ जाता वो जीव तो वन में चला गया वन में वो उसे तोड़ फोड़ देगा | ये क्या किया स्वामी जी ने उसका बिल्कुल ही मूल्य नहीं समझा |


स्वामी श्री हरिदास जी ने तोड़ा मुगल अकबर का घमंड

 

अकबर के मन में चल रहे समस्त विचार को स्वामी श्री हरिदास जी समझ गए थे | इतने में अकबर ने भी अपनी जिज्ञासा प्रकट कर दी कि भगवन आपने ये ठीक नहीं किया | किसी के द्वारा भेट की गई वस्तु का थोड़ा मान तो करना चाहिए वो कितनी बहुमूल्य वस्तु थी आप ने एक बार भी विचार न किया | स्वामी श्री हरिदास जी बोले कि ये जो कुंज में बैठे है इनसे ज्यादा बहुमूल्य मेरे लिए कोई नहीं है सबसे बहुमूल्य तो ये है | स्वामी जी अकबर से बोलते है तुझे ज्यादा महसूस हो रही है कि तूने मुझे इतनी बहुमूल्य वस्तु दे दिया तो रुक अपनी बहुमूल्य वस्तु लेता जा | ऐसा बोल कर स्वामी श्री हरिदास जी ने ऐसा स्वर लगाया कि वहाँ असंख्य हिरण प्रकट हो गए और हर एक हिरण के गले में अकबर का दिया वही बहुमूल्य हीरो का हार था | ऐसी कृपया देखकर अकबर हक्का बक्का रह गया और फिर स्वामी जी ने अकबर से कहाँ अकबर जा तुझे जितने लेने है ले ले और ले जा अपने संग |

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